मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटीज़ में से एक राजीव गांधी प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) अचानक सुर्खियों में आ जाता है। विश्वविद्यालय द्वारा साढ़े 19 करोड़ के घोटाले की शिकायत दर्ज कराई जाती है और आरोप किसी क्लर्क या सामान्य अधिकारी नहीं, बल्कि तत्कालीन कुलगुरु, कुलसचिव और वित्त नियंत्रक पर लगाए जाते हैं। मुख्यमंत्री फटकार लगाते हैं कि आखिर कैसे इन तीनों आरोपियों समेत 5 अन्य लोगों ने विश्वविद्यालय का पैसा निजी खातों में ट्रांसफर करवा लिया।
यह मामला अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के आंदोलन के बाद सामने आता है। मामला इतना बड़ा था तो सीएम संज्ञान लेते हुए एसआईटी गठित करते हैं और उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार को जल्द से जल्द कार्रवाई करने के निर्देश देते हैं। साथ ही विश्वविद्यालय के वित्त विभाग में पदस्थ सभी अधिकारियों को भी हटा दिया जाता है। फिर होता है कुछ ऐसा, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। तीनों मुख्य आरोपी यानि तत्कालीन कुलगुरु, कुलसचिव और वित्त नियंत्रक फरार हो जाते हैं। ये केस अभी तक सुलझा नहीं है। सभी आरोपी पकड़े नहीं गए हैं। लेकिन, अब तक जो हुआ वो भी किसी हॉलिवुड की फिल्म की कहानी से कम नहीं है। आइए जानते हैं, आखिर क्या है पूरा मामला और इसकी शुरुआत कहाँ से हुई..
बात शुरू होती है 2 मार्च को, जब पहली बार यह मामला सामने आता है। प्रारंभिक जांच में कुल 19.48 करोड़ रुपए के घोटाले की जानकारी मिलने पर रजिस्ट्रार डॉ. आरएस राजपूत को निलंबित कर दिया जाता है। इस समय तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता भी परिसर में पहुँच चुके थे और उन्होंने विश्वविद्यालय के अधिकारियों और कर्मचारियों को बंधक भी बनाकर रख लिया था। तभी उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार आरजीपीवी पहुंचते हैं और मामले में संलिप्त हर व्याप्ति के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई का आश्वासन देते हैं।
3 मार्च को आरजीपीवी के वीसी समेत 5 लोगों के खिलाफ़ धोखाधड़ी, फ़र्ज़ी दस्तावेज़ बनाने और षड्यन्त्र रचने का प्रकरण दर्ज कर लिया जाता है। जांच में ये बात सामने आती है कि ऐक्सिस बैंक की दो शाखाओं में एक जैसे नंबर वाली 25-25 करोड़ रुपयों की 4 एफड़ी मिली है। आरोप लगते हैं की यह घोटाला 200 करोड़ से ज्यादा का भी हो सकता है। विद्यार्थी परिषद यह मांग करता है कि कुलपति स्वयं इस्तीफ़ा दें या उन्हें हटाया जाए।
कुछ घंटों बाद ही यह पता चलता है कि रजिस्ट्रार ने जांच कमेटी को जो बैंक खाता बताया था, वह यूनिवर्सिटी का था ही नहीं। इसका मतलब रजिस्ट्रार ने जांच कमेटी को दिखाने के लिए फ़र्ज़ी दस्तावेज़ बनाए। आरोपी अब इस बात से बेखबर नहीं थे कि उनकी काली करतूत सामने आकर ही रहेगी। फिर क्या था, इन्हीं दिनों अखबारों की हेडलाइन बनती है कि आरजीपीवी के तत्कालीन कुलगुरु, रजिस्ट्रार और वित्त नियंत्रक के साथ फरार हैं। इन्हें भोपाल पुलिस के द्वारा भगोड़ा भी घोषित कर दिया जाता है। शुरुआत में इनका पता बताने वालों के लिए 3-3 हजार के इनाम की घोषणा की जाती है, जिसे कुछ दिनों बाद बढ़ाकर 10 गुना कर दिया जाता है। बाद मे पता चलता है कि ये तीनों एफआईआर दर्ज होने के बाद से ही फरार हैं।
इतना सब होता है और पुलिस को भनक भी नहीं लगती। जांच में हो रही देरी को लेकर 7 अप्रैल को एबीवीपी के कार्यकर्ता सीएम हाउस का घेराव करते हैं और आरोप लगाते हैं कि राजनीतिक संरक्षण के चलते मामले के बड़े आरोपियों की गिरफ़्तारी नहीं की जा रही है। इसी दिन पुलिस को आरजीपीवी स्कैम में बड़ी सफलता मिलती है। पुलिस आरबीएल बैंक के मैनेजर कुमार मयंक, एक्सिस बैंक पिपरिया के तत्कालीन मैनेजर रामकुमार रघुवंशी और सोहागपुर की संस्था दलित संघ के सह सचिव सुनील रघुवंशी को गिरफ्तार कर लेती है।
इस मामले पर सबसे लैटस्ट अपडेट के अनुसार पुलिस ने वीसी सुनील गुप्ता, रजिस्ट्रार राकेश सिंह राजपूत एवं वित्त नियंत्रक ऋषिकेश वर्मा की चल-अचल संपत्ति की जानकारी जुटाई है और संपत्ति कुर्क करने के संबंध में न्यायालय के समक्ष गुहार भी लगाई है।
अब सवाल ये निकलकर आता है कि एक महीने से ज्यादा का समय होने के बाद भी पुलिस को इस मामले में कोई बड़ी कामयाबी क्यों नहीं मिली? क्या अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा लगाए गए आरोप में कहीं कुछ सत्य है कि फरार आरोपियों को सरकार का संरक्षण है? क्या यह बात छुपाई जा रही है कि घोटाला 20 करोड़ से ज्यादा का है? इन सवालों के जवाब आज नहीं तो कल सामने आ ही जाएंगे। बहरहाल, सुनील गुप्ता की जगह वर्तमान में राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी) के कंप्यूटर व सूचना प्रौद्योगिकी संकाय की संकायाध्यक्ष रूपम गुप्ता को प्रभारी कुलपति बनाया गया है। साथ ही तत्कालीन कुलपति प्रो. सुनील कुमार को राज्य शासन ने निलंबित कर दिया है।