विदिशा लोकसभा सीट कई मायनों में मध्यप्रदेश की सबसे चर्चित सीट कही जा रही है। यहाँ भाजपा शिवराज मामा को लोकसभा ले जाने की प्लानिंग बना चुकी है। शिवराज विदिशा से 4 बार के सांसद भी रह चुके हैं। लेकिन, यहाँ की कहानी इतनी सरल नहीं है। शांति का नोबेल जीतने वाले कैलाश सत्याार्थी इसी क्षेत्र में जन्मे हैं। ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र मध्यभारत का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यह नगर वैस नदी के किनारे बसा है। यहां हिंदू,बौद्ध तथा जैन धर्म के स्माथक आज भी मौजूद हैं। यह क्षेत्र मालवा की राजधानी भी रहा। रामायण और महाभारत में कई जगह विदिशा का जिक्र मिलता है। कालिदास ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ मेघदूत में इस क्षेत्र का वर्णन किया है।
इसी सीट से पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेयी सांसद रह चुके हैं। पूर्व विदेश मंत्री स्व. सुषमा स्वराज भी लोकसभा जीत चुकी हैं। और इन दोनों के पहले 10 साल गद्दी संभाली, कांग्रेस के प्रताप भानु शर्मा ने, जिन्हें पार्टी ने इस बार फिर से मैदान में उतारा है। जब कोई सीट 35 सालों से भाजपा का गढ़ रही हो और सत्ताधारी दल ने 18 साल सूबे के मुख्यमंत्री रहे नेता को प्रत्याशी बनाया हो, तो विपक्षी दल द्वारा भी टक्कर के नेता को उतारा जाना लाज़मी था। लेकिन, क्या प्रताप भानु शर्मा शिवराज को टक्कर दे पाएंगे? क्या कहता है विदिशा लोकसभा सीट का इतिहास? और इन सबके बीच छुपकर रह गए जनता के मुद्दों पर कितनी बात हो रही है? ये सब जानेंगे इस खास रिपोर्ट में..
इस सीट पर मतदाताओं की संख्या 25 लाख से ज्यादा है। विदिशा विधानसभा के अंतर्गत 8 विधानसभाएं आती हैं, जिनमें से 7 बार भाजपा का कब्ज़ा है। महज़ एक सिलवानी सीट है, जहां से कांग्रेस के देवेंद्र पटेल विधायक हैं। 2019 विधानसभा चुनाव की बात की जाए, तो विदिशा से भाजपा के रमाकांत भार्गव चुनाव जीते थे और वोटों का अंतर 5 लाख से भी ज्यादा का था। 1984 के बाद से विदिशा लोकसभा सीट पर कांग्रेस जीत दर्ज नहीं कर पाई है। विदिशा अनुसूचित जाति – जनजाति के भी अच्छे खासे वोटर हैं।
मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही शिवराज सिंह चौहान का लोकसभा चुनाव लड़ना तय माना जा रहा था। लेकिन वे किस सीट से लड़ेंगे, इस पर बात नहीं बन पा रही थी। पहले-पहल शिवराज के छिंदवाड़ा और भोपाल से चुनाव लड़ने की खबरें चली। मगर, अंततः उन्हें उसी सीट से चुनाव लड़ाने का फैसला किया गया, जहां से वे मुख्यमंत्री बनने के पहले 4 बार के सांसद रह चुके हैं।
कांग्रेस प्रत्याशी प्रताप भानु शर्मा का राजनैतिक इतिहास भी जानना जरूरी है। प्रताप भानु शर्मा कांग्रेस की टिकट पर 1980 और 1984 लोकसभा चुनाव जीतकर विदिशा के सांसद रह चुके हैं। 1991 के चुनाव में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपायी को कड़ी टक्कर दी थी। इसके अलावा वे इमरजेंसी के दौरान मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
प्रताप भानु शर्मा की विदिशा की राजनीति पर पुरानी पकड़ है। वे दशकों तक यहाँ की राजनीति में सक्रिय रहे हैं। यही वजह है कि इस चुनाव में भी वे जनता के उन मुद्दों को लेकर मैदान में है, जिनका शिवराज मामा को अता-पता भी नहीं है। वे गाँव-गाँव जाकर सभाएं ले रहे हैं। लोगों से कह रहे हैं कि जब वे सांसद थे, तो उन्होंने विदिशा के 250 से अधिक गांवों में बिजली लाने का काम किया था। शिवराज को घेरे में लेते हुए वे ये भी कहते दिख रहे हैं कि विदिशा नदी का पानी भोपाल को मिल रहा है, लेकिन विदिशा के कई गाँव आज भी प्यासे हैं। जब गाँववालों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। तो बांध, फ्लाईओवर की बात ही क्या करना।
दूसरी तरफ 18 सालों तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, कथित तौर पर साफ़ छवि वाले नेता शिवराज सिंह चौहान है। टिकट मिलने के बाद लगभग 10 दिनों तक उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर विदिशा के लोगों से मिलते-जुलते हुए ढेरों भावात्मक पोस्ट डाली थीं। भाजपा के बड़े नेताओं को भी शिवराज से ये शिकायत है कि वे विदिशा में इतने व्यस्त हैं कि अन्य सीटों को समय नहीं दे पा रहे हैं। लेकिन, विदिशा के लोगों का कहना है कि मामा यहाँ भी ज्यादा नहीं आ रहे। पिछले कुछ हफ्तों में उन्हें केवल गंज बसौदा में ही देखा गया है।
दूसरी सीटों की तरह विदिशा में भी भाजपा ‘मोदी की गारंटी’ के नाम पर ही चुनाव लड़ रही है। 35 सालों से सीट पर कब्जा होने और पिछला चुनाव रिकॉर्ड मतों से जीतने के चलते भाजपा यहाँ अपनी जीत को लेकर आश्वस्त दिखाई दे रही है। कांग्रेस प्रत्याशी प्रचार तो कर रहे हैं। लेकिन 8 में से 7 विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा होने के चलते संगठन एकजुट नहीं है, जिससे सभाओं में मन मुताबिक जनता इकट्ठी नहीं हो पा रही। कांग्रेस के झंडे भी कम ही दिखाई दे रहे हैं।
इस सीट पर बसपा भी अपना प्रत्याशी उतारती है। लेकिन वह 15 हजार वोटों का आंकड़ा भी पूरा नहीं कर पाता। प्रचार के लिए बड़े नेताओं के आने की बात की जाए, तो इस सीट से शिवराज प्रत्याशी हैं। इस वजह से भाजपा किसी बड़े नेता को यहाँ भेजने की जहमत नहीं उठा रही। हालांकि, उप-मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला जरूर यहाँ सभा कर चुके हैं। दूसरी ओर, केंद्रीय कांग्रेस के किसी बड़े नेता के विदिशा में आने की कोई संभावना अब तक तो नहीं है। बता दें कि पिछले दिनों हरदा में आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने मंच से आह्वान किया था कि विदिशा की जनता शिवराज को जिताए, मैं उन्हें लोकसभा ले जाना चाहता हूँ।
बहरहाल, इस सीट पर लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण के तहत 7 मई को मतदान होना है। इसी दिन भाजपा के शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस के प्रताप भानु शर्मा के भाग्य का फैसला विदिशा के 25 लाख से ज्यादा वोटर करेंगे।