केशवदास का समय भक्ति-काल के अंतर्गत आता है, पर उनकी रचनाओं में पूर्णत: शास्त्रीय और रीतिबद्धता के कारण वे हिंदी कविता के आचार्य कवि के रूप में माने जाते हैं। शिवसिंह सेंगर और ग्रियर्सन ने उनका कविताकाल समर्पित किया, सन् 1567 और 1580 को अनुसरण किया। इनका जन्मकाल नहीं, लेकिन ‘मिश्रबन्धुविनोद’ में 1555 और ‘हिन्दी नवरत्न’ में 1551 को उनका जन्म संभावित माना गया है।
लाला भगवानदीन ने उनका जन्म सन् 1559 में ओरछा में हुआ होता बताया। उनका निधन, मिश्रबन्धु और रामचंद्र शुक्ल द्वारा 1617 में और लाला भगवानदीन द्वारा 1623 में माना गया। तुलसीदास ने केशव को प्रेत-योनि से उद्धार किया जाने की किंवन्दति के आधार पर, उनका निधन सन् 1623 के पूर्व का माना जाता है। उनकी अंतिम रचना ‘जहाँगीरजसचन्द्रिका’ 1612 में हुई। जिसमें उन्होंने वृद्धावस्था का विवेचन किया। इससे, 1561 में उनका जन्म हुआ हो तो उनका निधन सन् 1621 के आसपास हो सकता है। केशवदास ने ‘कविप्रिया’ में अपने वंशज का विवरण दिया है।
ओरछा के राजा इंद्रजीत सिंह उनके प्रमुख प्रयासकर्ता थे। उन्हें वीरसिंहदेव का भी सहारा था। उनके समय में वे अकबर, बीरबल, टोडरमल, और उदयपुर के राणा अमरसिंह से भी जाने जाते थे। तुलसीदास के साथ काशी यात्रा के दौरान भी उनका अवगमन संभव है। वे आस्तिक और बौद्धिक दोनोंथे। अपने इन्हीं गुणों के कारण वे प्रसिद्ध थे।
उनकी नीति-निपुणता, स्पष्टवाद, और विनोदी प्रकृति की बजाय सभी विषयों में उन्होंने अद्वितीय ज्ञान प्राप्त किया था। केशवदास की प्रमुख रचनाएँ ‘रसिकप्रिया’ (1591), ‘कविप्रिया’ और ‘रामचन्द्रिका’ (1601), ‘वीरचरित्र’ या ‘वीरसिंहदेव चरित्र’ (1606), “विज्ञानगीता’ (1610), और ‘जहाँगीरजसचन्द्रिका’ (1612) हैं।