उज्जैन (Ujjain) एक तीर्थ नगरी है जो प्राचीन समय से ही अपना एक सांस्कृतिक महत्व रखती है। यहां 33 कोटि देवी-देवताओं का वास माना जाता है। बाबा महाकालेश्वर (Mahakaleshwar Temple,Ujjain), मां हरसिद्धि (Harsiddhi Temple,Ujjain), चिंतामन गणेश (Chintaman Ganesh Ujjain) के साथ ही यहां कई जागृत मंदिर है। इन्हीं में से एक है माता गजलक्ष्मी (Gajlakshmi Temple Ujjain) का मंदिर। कहा जाता है कि पूरे भारत में यही एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां देवी लक्ष्मी गज यानि हाथी पर विराजित है। माता लक्ष्मी का वाहन उल्लू है, सदैव हमने माता लक्ष्मी को कमल पर विराजते देखा होगा या अपने वाहन उल्लू पर विराजते देखा होगा लेकिन यहां हाथी पर बैठी माँ लक्ष्मी की प्रतिमा अपना अलग महत्व रखती हैं।
दीपावली पर होते है 5 दिनों तक विशेष आयोजन
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दीपावली पर होते है 5 दिनों तक विशेष आयोजन
दीपावली के 5 दिन यह मंदिर 24 घंटे खुला रहता है। यहां अनेक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। धनतेरस (Dhanteras) के दिन यहां व्यवसाय क्षेत्र से जुड़े लोग अपने बही-खाता लेकर आते हैं और देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद लेकर यहां मंत्र जाप और बही-खाते में यंत्र बनाते हैं और माँ का आशीर्वाद लेते हैं कि आने वाले वर्ष में उन्हें धन-धान्य और सफलता की प्राप्ति हो। धनतेरस के दिन से ही यहां श्रद्धालुओं को माता के आशीर्वाद स्वरुप बरकत वितरित की जाती है। सभी को पीले चावल, कोढ़ियाँ, सिक्के और हल्दी की गांठ वितरित की जाती है, जिसे लोग अपने दुकानों के गल्ले में , अपने कार्य क्षेत्र में और घर की तिजोरियों में रखते हैं ।
यहां एक अलग परंपरा भी चलती है। दीपावली के अगले दिन यानी सुहाग पड़वा को यहां सुबह से प्रसाद वितरण होता है। जो महिलाएं यहां वर्ष भर में मंदिर में बिंदिया, कुमकुम, साड़ी आदि जैसा सुहाग का सामान भेंट करके जाती है वह सब एकत्रित करके सुहाग पड़वा पर महिलाओं को वितरित किया जाता है और अखंड सुहाग की कामना की जाती है । मंदिर के पुजारी जी के अनुसार यह परंपरा 200 वर्ष पहले तत्कालीन शंकराचार्य जी ने आरंभ की थी तब से यह चली आ रही है।
गजलक्ष्मी की कृपा से ही मिला था, पांडवों को अपना खोया हुआ राज्य
कहा जाता है कि जब अज्ञातवास के दौरान पांडव जंगलों में भटक रहे थे, तब माता कुंती अष्ट लक्ष्मी पूजन के लिए परेशान थीं। पांडवों ने जब मां को परेशान देखा तो देवराज इंद्र से प्रार्थना की। पांडवों की प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र ने स्वयं अपना ऐरावत धरती पर भेज दिया। इसी इंद्र के हाथी पर मां लक्ष्मी स्वयं विराजमान हुई और माता कुंती ने अष्ट लक्ष्मी की पूजन किया। तो वहीं दूसरी ओर इंद्र ने भारी बारिश की जिसमें कौरवों का मिट्टी से बना हाथी बह गया और वह पूजन नहीं कर पाए। जबकि इस पूजा से प्रसन्न होकर मां गज लक्ष्मी के आशीष से पांडवों को उनका खोया राज्य वापस मिला।
आपको बता दें कि वर्ष 2022 में यहां दीपावली के दिन 5000 लीटर दूध से माता का अभिषेक किया था । यदि उज्जैन में बाबा महाकालेश्वर का आशीर्वाद लेने आते हैं तो विश्व की एकमात्र गज पर बैठी लक्ष्मी अर्थात मां गजलक्ष्मी का आशीर्वाद लेने अवश्य जाएं।
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