अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने और ज्ञानवापी के पुरातत्व सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद अब मध्यप्रदेश के धार जिले में स्थित भोजशाला का विवाद सुर्खियों में आ गया है। ज्ञानवापी का केस लड़ने वाले संगठन हिंदू फ्रन्ट फॉर जस्टिस ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ में सोमवार को सुनवाई हुई। याचिककर्ताओं ने कोर्ट में अपील की है कि कोर्ट पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को भोजशाला का विस्तृत सर्वे कराने के निर्देश दे और वहाँ पर पूजा की अनुमति एक्ट का पालन कराया जाए। पिछले फैसले के अनुसार वर्तमान में मंगलवार को पूजा करने और शुक्रवार को नमाज़ पढ़ने की अनुमति दी गई है।
कोर्ट ने माना कि भोजशाला का मुद्दा भी अयोध्या जैसा ही है। इसलिए भोजशाला को लेकर जितनी भी याचिकाएं हैं, उन्हें सूचीबद्ध करके कोर्ट के सामने प्रस्तुत किया जाए। इसके बाद निर्णय लिया जाएगा। हिंदू पक्ष भोजशाला के पुरातात्विक सर्वे की मांग कर रहा है, जबकि ASI का कहना है कि यह स्थल का सर्वे साल 1902-03 में हो चुका है, जिसकी रिपोर्ट कोर्ट के पास मौजूद है।
हिंदू पक्ष के वकील की ओर से दलील पेश की गई कि 1902 के सर्वे में भोजशाला में सरस्वती मंदिर होने की पुष्टि की गई थी। सरस्वती माता की वह मूर्ति आज भी लंदल के म्यूजियम में कैद है। वकील ने गुंबद की दीवारों और पिलरों पर प्राकृत और संस्कृत में लिखे श्लोकों के फोटो भी कोर्ट के सामने पेश किए और इस आधार पर मांग की कि ज्ञानवापी की तरह ही भोजशाला का भी पुरातात्विक सर्वे कराया जाए। हाई कोर्ट ने मामला सुरक्षित रखते हुए जबलपुर हाई कोर्ट से भी अन्य विचाराधीन याचिकाएं मांगी हैं।
वहीं मुस्लिम पक्ष मौला कमालउद्दीन ट्रस्ट के वकील ने कहा कि हाई कोर्ट ने ही 2003 में शुक्रवार को नमाज़ और मंगलवार को पूजन करने की अनुमति दी थी। इस अंतरिम आदेश को जब तक अंतरिम रूप से निराकृत नहीं कर दिया जाएगा, तब तक इस याचिका का कोई महत्व नहीं है। यहाँ मौलाना कमालउद्दीन की दरगाह है। 1985 में वक्फ बोर्ड के बनने पर उसके आदेश पर इसे जामा मस्जिद कहा जाता था। साल 1307 के समय से यह मुस्लिम धर्म स्थल है।
हिंदू पक्ष मानता है की यह धर्म स्थल हिंदुओं का ही है। दीवारों व पिलरों पर कीर्तिमुख, घंटियाँ, शंख आदि के निशान (जिन्हें ढकने व मिटाने की कोशिश की गई है), फर्श पर लगे पत्थर, जिनमें प्राकृत भाषा में श्लोक लिखे गए हैं, मध्य में स्थित यज्ञ कुंड, जिसका उल्लेख समकालीन लेखकों ने भी किया है, गर्भगृह जहां सरस्वती माता की मूर्ति थी, उसकी छत पर की गई कारीगरी, जो नागर शैली की है और भोजशाला की बाईं ओर संरक्षित कर रखे गए कई अन्य सबूत, जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह सरस्वती सदन ही है, जिसे परमार काल में सन 1034ई में बनवाया गया था।
यहाँ पर एक महाविद्यालय था, जो भोजशाला के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राजा भोज के कार्यकाल के दौरान यहाँ पर सरस्वती माता की मूर्ति को स्थापित किया गया। साल 1875 की खुदाई में यह मूर्ति मिली थी, जिसे ब्रिटिश सरकार का पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड विदेश ले गया। यह मूर्ति लंदन के संग्रहालय में आज भी सुरक्षित है।
फिर साल 1456 में महमूद खिलजी ने मालवा-निमाड़ पर आक्रमण किया और मौलाना कमालउद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण कराया। तब से मुस्लिम समाज के लोग यहाँ नमाज़ अदा करने लगे। क्योंकि भोज काल की समाप्ति के बाद से यह इमारत अनुपयोगी पड़ी थी। विवाद की शुरुआत 1902 में तब हुई, जब तत्कालीन शिक्षा अधीक्षक काशीराम लेले ने भोजशाला के फर्श पर संस्कृत में श्लोक गुदे हुए देखे। गौरतलब है कि हिंदू परंपरा में लिखी हुई चीज़ को सरस्वती का रूप माना जाता है और हिंदू राजा इतने परिपक्व और समझदार तो थे ही कि वे संस्कृत के श्लोकों को फर्श पर न लिखाएं, जिससे आने जाने वाले लोगों के पैर उसपर पड़ें।
इतिहासकारों का मानना है कि आक्रान्ताओं ने बड़ी चालाकी से मंदिर की दीवारों के पत्थरों को निकलवाकर फर्श पर लगवाया, जिससे हिंदू मान्यताओं का अपमान किया जा सके। लेले की आपत्ति के आधार पर 1909 में भोजशाला एक संरक्षित इमारत घोषित कर दी गई, जिसके बाद यह पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन हो गई। विवाद का दूसरा पड़ाव 1935 में आया, जब धार के महाराज ने इमारत के बाहर तख्ती टंगवाई। तख्ती पर भोजशाला और मस्जिद कमाल मौलाना लिखा था। धार स्टेट ने 1935 में ही इस परिसर में नमाज पढ़ने की अनुमति दी थी। यही आदेश आगे चलकर विवाद का कारण बना।
अब जब-जब वसंत पंचमी का पर्व शुक्रवार को पड़ता है, तो धार में माहौल खराब हो ही जाता है। धार के लोगों के अनुसार शहर में कर्फ्यू लगा दिया जाता है, भोजशाला के आस पास बैरीकेडिंग कर दी जाती है और भारी धार्मिक उन्माद भी होता है, जिसे काबू में करना पुलिस के लिए भी मुश्किल हो जाता है। फिलहाल, भोजशाला के बाहर एक बोर्ड लगा हुआ है, जिसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि मंगलवार को हिंदुओं को पूजा की अनुमति है और शुक्रवार को मुस्लिम समाज के लोग नमाज़ पढ़ सकते हैं। बाकी के दिनों में कोई भी आ जा सकता है। यह अनुमति ASI द्वारा दी गई है।