अयोध्या में रामलला के मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा के 3 दिन बाद ही वाराणसी स्थित ज्ञानवापी का मामला फिर से सुर्खियों में आ गया है। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) के तीन महीनों तक चले सर्वे की रिपोर्ट आखिरकार सार्वजनिक कर दी गई है। ASI ने कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद हजार साल पुराने एक बड़े हिंदू मंदिर पर बना है। इस मस्जिद को मंदिर के अवशेषों से ही बनाया गया है। ASI की टीम को मस्जिद के नीचे कुछ 32 ऐसे सबूत और 34 शिलालेख मिले हैं, जो ये सिद्ध करते हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद नहीं मंदिर है।
गुरुवार को वाराणसी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के आदेश पर ASI द्वारा सर्वे रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया। हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने देर शाम प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि 839 पन्नों की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार ज्ञानवापी परिसर में स्वास्तिक के निशान, नाग देवता, कमल पुष्प, टूटी हुई हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियाँ मिली हैं। सर्वे के दौरान एक शिलालेख भी बरामद किया गया है, जिसमें मंदिर को तोड़ने और मस्जिद बनाने के संबंध में कई बातें महत्वपूर्ण बातें लिखी हुई हैं। इस रिपोर्ट पर मुस्लिम पक्ष की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
सर्वे खत्म होने के बाद से ही यह लगने लगा था कि रिपोर्ट में कोई बड़ी बात तो ज़रूर है। क्योंकि, ASI ने कोर्ट को सर्वे रिपोर्ट एक सीलबंद लिफ़ाफ़े में बंद करके सौंपी थी, जिस पर हिंदू पक्ष की ओर से आपत्ति जताई गई थी। मुस्लिम पक्ष भी ये जानता था कि दशकों तक भगवान शिव के विश्वव्यापी उपासकों से छुपाई गई बात सर्वे में सामने आ ही जाएंगी। इसलिए मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट से मांग की थी कि ASI की रिपोर्ट को सार्वजनिक न किया जाए।
थोड़ी देर के लिए ASI के सर्वे की बात न भी की जाए, तो ज्ञानवापी को देखकर ही कोई बच्चा भी यह कह सकता है कि पूर्व में यह मंदिर ही रहा होगा। क्योंकि इसकी संरचना नीचे से ऊपर तक किसी मंदिर के समान दिखती है। थोड़ा ऊपर जाने पर मंदिर के शिखर की जगह गुंबद दिखते हैं, जो बाद में बनाए गए हैं।
ASI की रिपोर्ट में उजागर हुए कुछ ठोस सबूत इस प्रकार हैं:
- मस्जिद के तहखाने में स्तंभ मिले हैं, जिनके ऊपर मस्जिद बना दिया गया।
- तहखाने में हिंदू देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियाँ भी मिली हैं।
- दीवारों में ऐसे कई स्थान मिले, जहां से मूर्तियाँ उखाड़ी गईं।
- परिसर की दीवार पर कमल और स्वास्तिक आदि चिह्न मिले हैं।
- परिसर की पश्चिमी दीवार नागर शैली की है।
- कुल 34 ऐसे शिलालेख मिले हैं, जिनपर देवनागरी, कन्नड़, और तेलुगु में लिखा हुआ है।
- मध्य के चैंबर में फूलों की डिजाइन मिली है, जिसे पश्चिम दिशा से पत्थर लगाकर बंद किया गया है।
- प्रवेश द्वार पर पक्षी और तोरण बनाए गए थे, जिन्हें तोड़ दिया गया है।
- एक स्तंभ पर घंटियाँ बनी हुई हैं, जहां संवत 1669 (1 जनवरी 1613, शुक्रवार) लिखा हुआ है।
- तहखाने S2 के नीचे हिंदू देवी-देवताओं के अवशेष मिले हैं। यानि मस्जिद के नीचे मूर्तियों को दबाया गया था।
- एक कमरे में अरबी-फारसी में लिखा एक पत्थर मिला। इस पर लिखा है कि मस्जिद का निर्माण मुगल आक्रांता औरंगज़ेब के 20वें शासनकाल (1676-77) में किया गया था। इस पत्थर का फोटो ASI के पास सुरक्षित है। हालांकि, मस्जिद के निर्माण और विस्तार के संबंध में लिखी गई लाइन को मिटा दिया गया था।
- दीवारों पर पशु-पक्षियों के चित्र हैं, गलियारे में कुआं भी है।
- औरंगज़ेब की जीवनी मासिर-ए-आलमगिरी में उल्लेख है कि औरंगज़ेब ने इलाके के सभी मंदिरों और स्कूलों को ढहाने का आदेश दिया था। तभी काशी विश्वनाथ मंदिर को भी ढहाया गया था।
- परिसर में मिले शिलालेखों में रुद्र, जनार्दन और उमेश्वर तीन नाम लिखे पाए गए हैं।
आपको बता दें कि 3 महीने तक चले ASI के इस सर्वे में कई प्रकार के आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया गया है। इन सभी सबूतों के बारे में जानकर ये बात समझ में आती है कि साल-दर साल बड़ी ही चतुराई से ज्ञानवापी में मौजूद हिंदू मंदिर के अवशेषों को नष्ट किया गया, जिससे हिंदू कभी नहीं जान पाएं कि ज्ञानवापी मस्जिद नहीं मंदिर है। ख्यात इतिहासकार जादूनाथ सरकार ने काशी-विश्वनाथ मंदिर के बारे में जो बातें लिखी थी, उनमें से कई बातों की पुष्टि ASI की इस रिपोर्ट में हो गई है।
अब सबसे बड़ा सवाल ये मन में आता है कि आगे क्या? इस पर हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा है कि चूंकि ASI ने दावा किया है कि यहाँ पहले एक हिंदू मंदिर का स्ट्रक्चर था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट से मांग की जाएगी कि सील वजूखाने का भी सर्वे किया जाए। हिंदू पक्ष को उम्मीद है कि वजुखाने से भी कई सबूत बरामद हो सकते हैं।