मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पीएम मोदी की तीसरी कैबिनेट में कृषि, किसान कल्याण व ग्रामीण विकास मंत्री बनाया गया है। शपथ ग्रहण समारोह में शिवराज पहली पंक्ति में भाजपा के शीर्ष नेताओं के साथ बैठे भी नजर आए। लेकिन, इसी बीच राजनैतिक हलकों में एक और बात को लेकर चर्चा है कि कहीं भाजपा शिवराज को धीरे-धीरे मध्यप्रदेश से दूर तो नहीं ले जा रही? भाजपा ने शिवराज को सम्मान देने के साथ कहीं उन्हें शिफ्ट करने की रणनीति तो नहीं बना ली? ये बातें क्यों उठ रही है। आइए जानते हैं..
2023 का मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव बीजेपी ने कहने को तो ‘एमपी के मन में मोदी’ के स्लोगन पर लड़ा, लेकिन 160 से ज्यादा सीटें जीतने की सबसे बड़ी वजह शिवराज सिंह चौहान के ताबड़तोड़ चुनाव प्रचार और लाड़ली बहना योजना के जरिए महिला वोटरों को हासिल करने के प्रयास को ही माना गया। भाजपा ने मध्यप्रदेश में बहुमत के साथ चुनाव जीता, लेकिन शिवराज फिर से मुख्यमंत्री नहीं बने। मगर शिवराज की लोकप्रियता कम नहीं हुई। नए सीएम ने शिवराज के कई फैसलों को पलटा, पोस्टर से उनके फोटो हटाए गए, लाड़ली बहना योजना की तारीख को 10 से बदलकर 4 तारीख कर दिया गया। लेकिन, जो छाप पूर्व सीएम ने एमपी की जनता के दिलों पर छोड़ी उसे मिटाया नहीं जा सका।
बीजेपी आलाकमान इस बात से कतई बेखबर नहीं था कि शिवराज को पद से हटाना उनके समर्थकों में कितना गुस्सा पैदा कर सकता है। शिवराज अनुभवी भी हैं, राजनीति और सरकार की कार्यप्रणाली की समझ भी रखते हैं। इसलिए उन्हें विदिशा से चुनाव जितवाकर केंद्रीय मंत्री बना दिया गया। शिवराज मंत्री पद की शपथ लेने के लिए जैसे ही स्टेज पर पहुंचे। वैसे ही जो शोर हुआ, वो सुनने लायक था। मंत्री बनने के बाद जब शिवराज पहली बार भोपाल आए, तो जिस तरह उनका स्वागत हुआ, वो भी अपने आप में एक दृश्य था। इन दोनों वीडियो को सोशल मीडिया पर लाखों बार देखा गया। ये वीडियो ही ये बताने के लिए पर्याप्त हैं कि मध्यप्रदेश में शिवराज की लोकप्रियता किसी भी नेता के मुकाबले सबसे ज्यादा हैं। समर्थक तो ये भी कह रहे हैं कि ‘मामा मतलब मध्यप्रदेश’।
एक तरफ शिवराज पर मेहरबान आलाकमान के नारे चल रहे हैं। दूसरी ओर राजनैतिक विशेषज्ञ इस बात को लेकर भी चर्चा कर रहे हैं कि अगले 5 सालों में बीजेपी मध्यप्रदेश की जनता के बीच शिवराज की लोकप्रियता को कम करने का काम करेगी। शिवराज अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों और कृषि मंत्रालय के कामकाम में इस तरह व्यस्त रहेंगे कि वे मध्यप्रदेश कम ही आ पाएंगे।
इस कयास को एक और ख़बर हवा देती है। वो ये है कि शिवराज को झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए प्रभारी के रूप में नियुक्त किया गया है। अब से कुछ महीनों तक वे झारखंड में भाजपा के लिए चुनाव प्रचार करेंगे। इन सबसे शिवराज की छवि एक राष्ट्रीय नेता के रूप में तो बनेगी, लेकिन ये भी संभव है कि शिवराज को मध्यप्रदेश की जनता से दूर रखा जाएगा और तब तक नए मुख्यमंत्री मोहन यादव अपने ‘गरीबों की सरकार’ वाले नारे के साथ स्थापित हो चुके होंगे।