लोकसभा चुनावों से पहले मध्यप्रदेश में एक बार फिर से दोनों पार्टियां EVM को लेकर आमने-सामने आ गई हैं। बुधवार को पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भोपाल स्थित अपने सरकारी निवास पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलवाई, जिसमें दिग्विजय ने गुजरात के कंप्युटर एक्सपर्ट अतुल पटेल से डेमो करवाकर दिखाया कि ईवीएम में किस तरह से गड़बड़ी की जाती है। दिग्विजय ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं है और बीजेपी के दबाव में आकर काम कर रहा है। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने 120-130 सीटों पर गड़बड़ी की थी।
दिग्विजय सिंह ने ये भी कहा कि भाजपा चुनाव के पहले माहौल बनाती है। लेकिन, चुनावों में बीजेपी को जो वोट मिलते हैं, वो जनता के नहीं मशीनों के वोट होते हैं। बीजेपी ने 2014, 2019 का लोकसभा चुनाव भी ईवीएम के साथ गड़बड़ी करके ही जीता था। इस पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कहा कि दिग्विजय ऐसी बातें अपने निजी स्वार्थ के लिए कर रहे हैं। जब कांग्रेस जीते तो ईवीएम ठीक, जब हारे तो हैक! उन्हें जवाब देना चाहिए कि क्या वे तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक का चुनाव भी कांग्रेस ईवीएम हैक करके जीती है? और राज्यों में होने वाले नगरीय निकाय चुनावों में कांग्रेस ईवीएम से मतदान कराने का विरोध क्यों नहीं करती?
ये पहली बार नहीं है जब दिग्विजय सिंह ने ईवीएम पर आरोप लगाए हों। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद से ही दिग्विजय सिंह ने ईवीएम में गड़बड़ी के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है। एक तरह प्रदेश कांग्रेस, जीतू पटवारी के नेतृत्व में लोकसभा चुनावों की तैयारियों मे जुटी हुई है, तो दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह बैलट पेपर से चुनाव करवाने को लेकर अड़े हुए हैं। वैसे देखा जाए, तो दिग्विजय सिंह ईवीएम के खिलाफ अकेले ही लड़ने निकले हैं। उनके अलावा कांग्रेस के किसी नेता द्वारा इस स्तर पर ईवीएम पर आरोप नहीं लगाए गए। आइए इस खास रिपोर्ट में नज़र डालते हैं इस पूरे मामले पर, हम ये भी जानेंगे कि पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने किस तरह अपने ट्विटर अकाउंट पर ईवीएम के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है? और दिग्विजय के इस आरोप में कितना सत्य, कितनी राजनीति है।
ये बात शुरू होती है हाल ही में हुए मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजों की घोषणा के बाद। चुनाव के पहले अपनी जीत को लेकर आश्वस्त दिखती हुई कांग्रेस के पास नतीजों की घोषणा के बाद ज्यादा कुछ कहने को नहीं बचा था। चुनाव में भाजपा जीती ही नहीं बल्कि रिकॉर्ड बहुमत से जीती। अगले ही दिन जब दिग्विजय सिंह से मीडिया ने ईवीएम में गड़बड़ी को लेकर सवाल पूछा, तो दिग्विजय ने कहा कि मुझे तो ईवीएम पर 2005 से ही भरोसा नहीं है।
4 दिसंबर को दिग्विजय सिंह द्वारा किए गए इस ट्वीट पर नज़र डालिए, जिसमें उन्होंने कुछ आँकड़े साझा किए हैं। आपको बता दें कि मतदान की तारीख से पहले कुछ विशेष मतदाताओं जैसे – दिव्यांगजन, चुनावी ड्यूटी में संलग्न अधिकारी, सशस्त्र बलों व भारतीय सेना के जवानों द्वारा मतदान किया जाता है, जो बैलट पेपर पर होता है। दिग्विजय सिंह ने इन्हीं आंकड़ों के कथित स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए लिखा था कि “तस्वीरों के आँकड़ों में एक प्रमाण है जो यह बताता है कि पोस्टल बैलेट के ज़रिए कांग्रेस को 199 सीटों पर बढ़त है। जबकि इनमें से अधिकांश सीटों पर ईवीएम काउंटिंग में हमें मतदाताओं का पूर्ण विश्वास नहीं मिल सका। यह भी कहा जा सकता है कि जब तंत्र जीतता है तो जनता (यानी लोक) हार जाती है।
कुछ दिनों बाद दिग्विजय ने एक कार्टून भी शेयर किया, जो आप स्क्रीन पर देख सकते हैं। बैलट पेपर पर बहस करने के कुछ दिनों बाद दिग्विजय बेल्जियम की वोटिंग प्रणाली की वकालत करने लगे,हालांकि वहाँ भी ईवीएम का ही उपयोग किया जा रहा है। 10 जनवरी को दिग्विजय सिंह ने ट्वीट कर लिखा कि भारत में इंडिया एलाइंस की मांग यही है कि बेल्जियम में जिस तरह वोट डालने के बाद जो रसीद मतदाता द्वारा मतपेटी में जमा की गई है उसकी काउंटिंग हो जिससे निष्पक्ष परिणाम प्राप्त हो सके। इसे बेहतर तरीके से समझाने के लिए उन्होंने एक वीडियो को भी रीट्वीट किया। दिग्विजय का कहना था कि कई सीटों पर ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की शिकायत भी की गईं, लेकिन चुनाव आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की। इंडिया गठबंधन ने बैठक के लिए समय भी मांगा, लेकिन चुनाव आयोग ने नहीं दिया।
बुधवार की हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक्सपर्ट अतुल पटेल ने बताया कि ईवीएम के साथ कनेक्ट होने वाली वीवीपैट मशीन में वोट डालने के बाद 7 सेकंड के लिए जो वोट दिखाया जाता है, वह प्रिन्ट नहीं होता। डेमो में पटेल ने ईवीएम से जुड़ी वीवीपैट पर 10-10 वोट डलवाए, तो जिस पर ज्यादा वोट डाले गए उस पर वोट नहीं गए। कुल मिलाकर पटेल ये समझाना चाहते थे कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है।
अब ये छेड़छाड़ कब की जा सकती है? इसका जवाब है कि जब किसी निर्वाचन क्षेत्र को ईवीएम अलॉट की जाती है, तब उसमें प्रत्याशी का नाम, फोटो, पार्टी का नाम आदि जानकारी डाली जाती है। एक्स्पर्ट्स के मुताबिक उस समय यह संभव है कि ईवीएम की कुछ ऐसी प्रोग्रामिंग कर दी जाए कि कोई कहीं भी वोट डाले, वोट एक ही प्रत्याशी के खाते में जाएं। हालांकि, चुनाव आयोग ने इस दावे को लेकर अभी तक कोई पुष्टि नहीं की है।
इस पूरे मुद्दे के इतर अगर कांग्रेस की वर्तमान राजनीति पर जाएं, तो हमें कुछ दिनों पहले जाना पड़ेगा, जब नए पीसीसी अध्यक्ष जीतू पटवारी की अध्यक्षता में हुई कांग्रेस के हारे हुए प्रत्याशियों की बैठक बुलाई गई थी। इस बैठक में किसी विधायक ने ईवीएम मे हुई गड़बड़ी को लेकर कोई बात नहीं की थी। किसी ने कहा था कि लाड़ली बहना योजना से पैदा हुए अंडर करंट को हम नहीं भांप पाए, तो वहीं किसी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी में ही कुछ ऐसे आस्तीन के सांप हैं, जिन्होंने बीजेपी प्रत्याशियों का समर्थन किया है। यहाँ पूर्व विधायक प्रेमचंद गुड्डू का बयान भी उल्लेखनीय है। उन्होंने हार के लिए पूर्व सीएम कमलनाथ की ही जिम्मेदार ठहराया दिया और कहा कि कमलनाथ ने पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर गैर राजनैतिक तत्वों और बीजेपी से कांग्रेस में आए नेताओं को टिकट दिया, जिसके कारण कांग्रेस की चुनाव में ये हालत हुई। आपको बता दें कि कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले 79 नेताओं को कांग्रेस ने कुछ दिनों पूर्व निष्कासित कर दिया था। इस सूचि में प्रेमचंद गुड्डू और अंतर सिंह दरबार जैसे नेताओं के नाम शामिल थे।
दिग्विजय सिंह के इन आरोपों पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कहा कि शर्मा ने कहा- दिग्विजय सिंह अभी से लोकसभा चुनाव में प्रत्याशित हार के बहाने तलाश रहे हैं, क्योंकि वे अपने नकारा नेतृत्व और गांधी परिवार को हार के कलंक से बचाना चाहते हैं। दिग्विजय सिंह उस समय कहां थे, जब चुनाव आयोग ने उन्हें ईवीएम हैक करके दिखाने की चुनौती दी थी? दिग्विजय यह बात क्यों भूल जाते हैं कि ईवीएम कांग्रेस की ही देन है। कांग्रेस सरकार के समय ही 2003 के चुनाव में लाई गई थी, तब 2004 के चुनाव ईवीएम के द्वारा ही कराए थे।