खबरों में मध्यप्रदेश के बैतूल की चर्चा कम ही होती है। यह शहर गेहूं की खेती, अंग्रेज़ों से लोहा लेने वाले आदिवासी नायक विष्णु सिंह गोंड, बालाजीपुर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। बैतूल लोकसभा सीट का इतिहास भी बड़ा रोचक है। वो दौर था, जब इंदिरा गांधी सरकार को उखाड़ने के लिए अटल बिहारी बाजपाई ट्रैन यात्रा करते थे। 1971 चुनाव से पहले आदिवासी समाज को साधने के लिए बाजपाई बैतूल आए थे।
इस सीट पर पिछले 28 सालों से भाजपा का ही कब्ज़ा है। भाजपा ने इस बार भी यहाँ से वर्तमान सांसद दुर्गादास उईके को अपना प्रत्याशी बनाया है, तो वहीं कांग्रेस ने भी अपने पिछले लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी रामू टेकाम को रिपीट किया है। भाजपा ने हर लोकसभा सीट की तरह यहाँ भी स्थानीय प्रत्याशी से ज्यादा ‘मोदी की गारंटी’ को तरजीह दी है, तो वहीं कांग्रेस रोजगार, खराब स्वास्थ्य सुविधाओं और ‘सांसद लापता है’ जैसे मुद्दों के सहारे है.. बैतूल लोकसभा सीट का इतिहास और आगामी चुनाव में हवा का रुख क्या कहता है, जानेंगे इस खास रिपोर्ट में..
बैतूल लोकसभा सीट पर आदिवासी वोटरों की ही चलती है। क्षेत्र के कुल 18 लाख 86 हजार 155 वोटरों में से 46% वोटर आदिवासी ही हैं। यूं तो 1991 में यहाँ से कांग्रेस के असलम शेर खान सांसद बने, फिर 1996 से 2008 तक बीजेपी के विजय खण्डेलवाल और उनके बेटे हेमंत खण्डेलवाल ने भी कुर्सी संभाली। इसके बाद खेल बदल गया और यह सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित कर दी गई। अब यहाँ कोई भी पार्टी जीते, सांसद कोई आदिवासी ही बनता है।
यही वजह है कि इस बार भी भाजपा की ओर से दुर्गादास उईके और कांग्रेस से रामू टेकाम उम्मीदवार हैं। महाराष्ट्र बॉर्डर से सटी यह सीट आजादी के बाद से कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी। लेकिन 1996 में स्थानीय उम्मीदवार विजय खण्डेलवाल के चुनाव जीतने के बाद भाजपा पावर में आई, तब से यही सिलसिला बरकरार है।
हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की तगड़ी फील्डिंग के चलते आदिवासी समाज ने मध्यप्रदेश में कमल के फूल को ही बहुमत दिलाई। इसका असर बैतूल पर भी पड़ना ही था। यहाँ की 4 विधानसभा सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है। विधानसभा चुनाव में बैतूल संसदीय क्षेत्र की 8 सीटों में से 6 पर बीजेपी ने कब्ज़ा जमाया। केवल टिमरनी और हरदा कांग्रेस के पाले में आई। भाजपा इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त दिखाई दे रही है कि विधानसभा चुनाव की तरह आदिवासी वोटर इस बार भी उसी के प्रत्याशी को वोट देंगे।
ऐसी और कोई बातें हैं, जिनके आधार पर बीजेपी यह कह सकती है कि वह इस बार भी बैतूल लोकसभा सीट पर कांग्रेस का 28 साल का सूखा खत्म नहीं होने देगी। पिछले 10 वर्षों में बनी हजारों किलोमीटर की सड़कें, 600 बेड का अस्पताल, कृषि आधारित उद्योग, मेडिकल कॉलेज के लिए मिली स्वीकृति जैसे कई कार्य हैं, जिन्हें सांसद दुर्गादास उईके की टीम सोशल मीडिया पर प्रचारित कर रही है।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी रामू टेकाम आरोप लगा रहे हैं कि बैतूल सांसद लापता हैं, उन्हें जनता की सुध ही नहीं है। आदिवासी लगातार पलायन कर रहे हैं। उन्हें रोजगार देने के प्रयास भी नहीं किए गए हैं। किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं नहीं मिल रहा है। 20 लाख से ज्यादा आबादी होने के बाद भी बैतूल में तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश, केरल और दिल्ली आने-जाने वाली ट्रैनों के स्टॉपेज ही नहीं हैं। कोयले की खदानें बंद हो गई हैं, जिससे पावर हाउस बंद होने को आ गया है। कई लोगों की नौकरियां खतरे में है।
बैतूल के लोगों का कहना है कि रामू टेकाम द्वारा लगाए गए अधिकतर आरोप सही साबित होते हैं। लेकिन, मोदी मैजिक, विधानसभा चुनाव में मिली 8 में से 6 सीट और दुर्गादास उईके के आदिवासी नेताओं से संपर्क के बीच टेकाम के लगाए गए आरोपों पर वोटर कम ध्यान दे रहे हैं। आपको बात दें कि नेताओं के दलबदल का असर इस सीट पर भी हुआ है। कांग्रेस के ज़िला शहर कांग्रेस अध्यक्ष समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए हैं, जिससे कांग्रेस को खासा नुकसान हुआ है।
बैतूल लोकसभा सीट पर पहले चुनाव दूसरे चरण के तहत 26 अप्रैल को होना था। लेकिन, बहुजन समाज पार्टी प्रत्याशी अशोक भलावी के निधन की वजह से इसे स्थगित कर दिया गया। इस सीट पर तीसरे चरण में अब 7 मई को मतदान होना है। बसपा ने इस सीट से अशोक भलावी के बेटे अर्जुन भलावी को टिकट दिया है।
बहरहाल, बैतूल में 24 अप्रैल के पूर्व चुनाव प्रचार उस स्तर का नहीं हुआ था। शहरी इलाके के साथ गांवों में भी इक्का दुक्का झंडे और पोस्टर चिपके दिखाई दे रहे थे। फिर 24 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी बैतूल आए। मोदी ने हरदा विधानसभा आकर टिमरनी और हरदा के लोगों को साधने का प्रयास किया। क्योंकि यही दो सीटें थीं, जिन्हें भाजपा हालिया विधानसभा चुनाव में गंवा बैठी थी।
इसी के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने हरदा से चार शुगर फैक्ट्री, दो एथानॉल प्लांट भी शुरू किए, जिनसे क्षेत्र के हजारों लोगों को रोज़गार मिलने की संभावनाएं हैं। 2019 में हुए पिछले लोकसभा चुनाव में इस सीट से भाजपा के दुर्गादास उईके जीते थे और जीत का मार्जिन 3 लाख वोटों से भी ज्यादा का था। कांग्रेस के रामू टेकाम और बसपा के अर्जुन भलावी इन्हें कितनी टक्कर दे पाते हैं, इस बात का फैसला बैतूल की जनता 7 मई को करेगी।