कुछ दिनों पहले एक खबर अखबारों का हिस्सा बनी। खबर आज से लगभग 40 साल पहले हुए, दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिक डिजास्टर कहे जाने वाले भोपाल गैस कांड से जुड़ी थी। दरअसल, भोपाल गैस कांड के 40 साल बाद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का कचरा जलाया जा रहा है। इस बेहद ही जहरीले कचरे का निपटान इंदौर के पास स्थित पीथमपुर की रामकी कंपनी में किया जाएगा। लेकिन, इस कचरे के निपटान का भयावह खामियाजा पीथमपुर के लोगों को भुगतना पड़ सकता है। कैसे? आइए समझते हैं इस स्पेशल रिपोर्ट में..
इस जहरीले कचरे के जलने से पीथमपुर और इंदौर के लोगों के स्वास्थ्य और जीवन पर क्या असर पड़ेगा, इसे समझने से पहले ये समझ लेते हैं कि कचरे के निपटान को लेकर सरकार की योजना क्या है? पीथमपुर की कंपनी रामकी भोपाल गैस त्रासदी के बाद उत्पन्न हुआ 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा जलाएगी। इसके लिए 126 करोड़ रुपए का बजट तय किया गया है। सड़क मार्ग से यह कचरा भोपाल से पीथमपुर जाया जाएगा, जिसके बाद कंपनी इसे अपने उपकरणों की मदद से जलाएगी।
ये तो वो बातें थीं, जो सरकार की तरफ से कहीं गईं थी। अब आइए आपको कुछ छुपे हुए तथ्यों से रूबरू करवाते हैं:
– पहला ये कि जो कचरा पीथमपुर की कंपनी जलाएगी, वो कुल कचरे का महज़ 5 प्रतिशत है।
– लगभग 12 वर्ष पहले, जर्मनी की एक कंपनी ने इतना ही कचरा 22-25 करोड़ रुपए की लागत में जलाने का प्रस्ताव रखा था। जर्मनी की यह कंपनी अपने देश में ही ले जाकर इस कचरे का निपटान करने वाली थी। लेकिन, राज्य सरकार ने प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया था। बता दें, उस समय केंद्र में कांग्रेस और राज्य में बीजेपी की सरकार थी। अब सरकार उसी कचरे को लगभग 5 गुना ज्यादा दाम में जलाने जा रही है।
– एक और बात ये कि जिस स्थान पर पीथमपुर की रामकी कंपनी मौजूद है, उससे 2 किलोमीटर की ही दूरी पर रिहायशी इलाका है, जहां सैंकड़ों परिवार रहते हैं।
– डराने वाली बात ये है कि पीथमपुर की इस कंपनी ने जहरीले कचरे के निपटान के 7 प्रयोग किए हैं, जिसमें से 6 असफल रहे हैं। इन असफल प्रयासों का खामियाजा आस-पास के लोगों को भुगतना पड़ा। इसके बाद लोगों ने कंपनी के खिलाफ अधिकारियों को शिकायत और आंदोलन भी किए थे।
विशेषज्ञों का मानना है कि 337 मीट्रिक टन कचरा यदि जलाया जाएगा, तो आस-पास के लगभग 10 किलोमीटर के रैडियस में रहने वाले लोग प्रभावित होंगे। इस कचरे के धुएं से भारी मात्रा में ओरगेनोक्लोरीन, डायऑक्सीन और फ्यूरॉन जैसे कार्बन भी निकल सकते हैं, जो कैंसर जैसी बीमारियों की वजह बनते हैं। हालांकि, खबर ये भी है कि इस कचरे में भारी मात्रा में दूसरे अन्य आइटम भी मिलाए जाएंगे, जिससे कचरे के जहर का प्रभाव कम हो। यदि शुरुआती चरण में लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं आती हैं, तो लोग विरोध करेंगे और प्रशासन भी इस पर विचार करेगा।
पूर्व में भी पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाने की बात सामने आई थी। तब शिवराज सिंह चौहान, जयंत मलैया, बाबूलाल गौड़ जैसे बड़े नेताओं ने खुले तौर पर इसका विरोध किया था। अधिकारियों ने इस बात की भी चिंता जताई थी कि इससे यशवंत सागर बांध के पानी पर भी असर पड़ सकता है। बीच बीच में अन्य राज्य जैसे महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश जैसे राज्य आर्थिक प्रोत्साहन के बाद भी भोपाल गैस कांड के कचरे को जलाने से इनकार कर चुके हैं।
आखिर क्या वजह है कि 40 साल पुराने औद्योगिक हादसे का कचरा जलाने से ये सभी राज्य इतना खौफ़ खाते हैं। वजह ये है कि 2 दिसंबर 1984 में यूनियन कार्बाइड से रिसी एमआईसी गैस की वजह से 5 हजार से ज्यादा लोगों ने अपनी जानें गंवा दी थी। हादसे के बाद के कुछ दिनों में ही इस गैस ने फैक्ट्री के आस-पास की 42 बस्तियों की हवा और पानी को अपनी चपेट में ले लिया था।
आज भी भोपाल की उन बस्तियों में ऐसे कई परिवार हैं, जो इस हादसे का दंश झेल रहे हैं। कहीं बूढ़ों को हृदय व श्वास से संबंधी बीमारियाँ हैं। तो कहीं बच्चे मानसिक व शारीरिक विकलांगता से जूझ रहे हैं। एमआईसी उस वक्त जमीन में चली गई थी। जमीन में जाकर इस जहरीली गैस ने आस-पास के कई किलोमीटेर तक के एरिया का ग्राउंडवॉटर दूषित कर दिया था। भोपाल के उन इलाकों के लोग अब तक दूषित और जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं।
तो इस रिपोर्ट से आप समझ ही गए होंगे कि यदि कथित तौर पर इस असुरक्षित कंपनी में यदि यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाया जाता है, तो पीथमपुर के लोगों पर क्या आफ़त आती है। बहरहाल, ये कचरा कब जलाया जाएगा, इस संबंध में अब तक कोई जानकारी सामने नहीं आई है। अब देखना ये होगा कि यह सरकार, प्रशासन और आम जनता के लिए कार्य क्या चुनौतियाँ सामने लाता है।