मध्यप्रदेश इस वक्त एक गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। हालांकि, इस संबंध में मीडिया में खबरों की कमी है। लेकिन सीएम मोहन यादव और मंत्रालयों की पिछले एक महीने की बैठकों पर नज़र डाली जाए, तो तस्वीर साफ हो जाएगी कि बात में दम तो है। मध्यप्रदेश सरकार पर करीब साढ़े 3 लाख करोड़ का कर्ज़, चुंगी क्षतिपूर्ति के पैसों में सात महीनों में 463 करोड़ रुपए की कटौती, 38 विभागों की योजनाओं पर रोक लगाने और केंद्र से अतिरिक्त 5727 करोड़ की राशि मांगने जैसी खबरें आना प्रदेश सरकार के लिए सोचने योग्य विषय है।
प्रदेश पर वित्तीय संकट की खबर पहले पहल तब सामने आई, जब सीएम मोहन यादव ने अपने शपथ ग्रहण के 2 हफ्ते बाद ही राज्य के खर्चों को पूरा करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से 2000 करोड़ रुपए का कर्ज़ मांगा। जबकि प्रदेश पहले से ही 3 लाख 31 हजार करोड़ के कर्ज में डूबा हुआ है। इतना कर्ज सीएम मोहन यादव को शिवराज सरकार से विरासत में मिला है। बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज ने अकेले 2023 में ही 44,000 करोड़ का कर्ज़ लिया था। चुनावों के पूर्व जिन बड़ी योजनाओं और निर्माणों की घोषणा की गई थीं, उनकी पूर्ति के लिए ही सरकार को कर्ज लेना पड़ रहा है। नई सरकार का खजाना दिन पे दिन खाली होता जा रहा है, क्योंकि उसके पास वादों की लंबी सूचि है। बता दें कि डॉ. मोहन यादव सीएम बनने के बाद, जब पहली बार पीएम मोदी से मिलने दिल्ली गए, तब प्रदेश को केंद्र सरकार की ओर से 5727 करोड़ रुपए अतिरिक्त रूप से दिए गए।
इस सूचि में सबसे पहला नाम लाड़ली बहना योजना का आता है, जिसकी वजह से सरकार को प्रतिमाह लगभग 1600 करोड़ रुपए चुकाने पड़ रहे हैं। इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है कि लाड़ली बहना योजना ने भाजपा की जीत में एक बड़ा रोल अदा किया है, लेकिन, यह योजना प्रदेश का बजट बिगाड़ रही है। हालांकि, सीएम मोहन ने तब कहा था कि सरकार ने सभी योजनाओं के लिए पर्याप्त धन की व्यवस्था की हुई है। सभी पात्र हितग्राहियों के खातों में तय समय पर पैसे डाल दिए जाएंगे। नगरीय विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से जब कर्ज लेने को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने जवाब दिया कि “जरूरत पड़ी तो कर्ज ज़रूर लेंगे, कर्ज लेना कोई बुरी बात नहीं है”। भाजपा के इस रवैये से कांग्रेस कतई सहमत नहीं दिखाई दी। कांग्रेस प्रवक्ता अब्बास हफीज ने कहा कि “मध्यप्रदेश में जन्म लेने वाला हर बच्चा आज 40 हजार रुपए के कर्ज में है।”
अगली खबर आई दिसंबर के दूसरे हफ्ते में, जब मोहन सरकार ने 38 विभागों की योजनाओं पर आर्थिक रोक लगा दी। इन योजनाओं में सीएम ऋण समाधान योजना, खेलों इंडिया एमपी योजना, विद्यार्थियों को लैपटॉप आपूर्ति, निःशुल्क पाठ्य सामग्री वितरण, नए आईटी पार्क की स्थापना, भू-अर्जन के लिए मुआवजा, सड़कों का नवीनीकरण, पीएम ई-बस योजना, एनसीसी का विकास, आंगनवाड़ी भवन निर्माण, टंट्या भील मंदिर के जीणोद्धार, अपंजीकृत मजदूरों को अंत्येष्टि एवं अनुगृह राशि, श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा आदि ढेरों बड़ी योजनाओं पर फिलहाल आर्थिक अंकुश लगा हुआ है। तब चर्चाएं ये भी थीं कि सरकार 15 हजार करोड़ का अतिरिक्त लोन ले सकती है। लेकिन, सरकार की कोशिश यही रहेगी कि आय के स्त्रोतों के प्रबंधन को ही प्राथमिकता दी जाए। इसी वजह से सीएम ने सभी विभागों को निर्देश दिए कि राजस्व संग्रहण (Tax Collection) के टार्गेट किसी भी हालत में पूरे किए जाएं।
एक और फैसला आया, जिसे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने भी सख्ती के साथ रेखांकित किया। वह ये था कि जिस चुंगी क्षतिपूर्ति के पैसों से 16 नगर निगम के साथ 400 निकायों की गाड़ी दौड़ती है, सात महीने में सरकार ने वहां 463 करोड़ रु. की कटौती कर दी है। इस पर सरकार ने तर्क दिया कि काटे हुए पैसों का इस्तेमाल विभागों के बिजली बिल भुगतान में किया जाएगा। सोचने का विषय है कि यदि विभागों का बिजली बिल भरने के लिए सरकार को चुंगी क्षतिपूर्ति के पैसों में कटौती करना पड़ रहा है, तो यह आर्थिक संकट नहीं है तो और क्या है? इसके अलावा आगामी आदेश तक मंत्री अपने आवास की मरम्मत के लिए भी पैसे नहीं मांग पाएंगे।
चुंगी क्षतिपूर्ति में कटौती के फैसले पर जीतू पटवारी ने कहा कि “7 महीने से चल रही कटौती 30 करोड़ से लेकर 100 करोड़ के बीच है! सरकार के इस “दूरदर्शी-निर्णय” से शहरी सरकारों का खजाना न केवल खाली हुआ है, बल्कि माली हालत ही खराब हो गई है! इसीलिए, सवाल उठ रहा है वित्तीय समझ के ऐसे कौन “विशेषज्ञ” हैं, जिनकी सलाह पर सरकार की आर्थिक नीतियां सरक रही हैं?”
कांग्रेस का आरोप ये भी है कि लोकसभा चुनावों तक सभी योजनाओं का विधिवत संचालन करेगी, लेकिन चुनाव खत्म होते ही क्या होगा वह सर्वविदित है।