मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जनता की मांग को मानकर उस पर मुहर लगा दी है। दरअसल सोशल मीडिया पर एक विमर्श चलाया जा रहा था जिसमें उज्जैन में महाकाल बाबा की निकलने वाली सवारी को ‘शाही’ ना कहकर ‘राजसी सवारी’ कहने पर जोर दिया गया था। कुछ ही दिनों में हिन्दू समाज ने इस बात को सही मानते हुए इसे स्वीकार किया और इस सोशल मीडिया पर नाम परिवर्तन के अभियान में सहयोग भी किया। बात दें कि 5 दिनों में ही सोशल मीडिया से उठाया गया यह मुद्दा प्रदेश में फैल गया।
आज सोमवार को उज्जैन में महाकालेश्वर बाबा की इस वर्ष की अंतिम सवारी निकलनी थी। लेकिन इसे हिन्दू समाज की मांग पर शाही ना कहते हुए राजसी ही कहा गया है। इसके अलावा देशभर की समाचार एजेंसियों द्वारा भी इसे “महाकाल की राजसी सवारी” ही संबोधित किया गया। बड़ी घटना तब हुई जब मुख्यमंत्री मोहन यादव ने एक साक्षात्कार में राजसी सवारी शब्द कहे। उन्होंने अपने बयान में कहा “आज उज्जैन में बाबा महाकाल की आखिरी “राजसी सवारी” निकल रही है। बाबा का जनता से सीधा सरोकार है। उनकी कृपा सब पर बनी रहे। इस साल आदिवासी कलाकार शामिल किये गए और शासकीय बैंड शामिल किए गए।“ सीएम डॉ. मोहन यादव ने आगे कहा कि “यह मात्र सवारी नहीं, अपितु बाबा का जनता के साथ सीधा सरोकार है। मैं देश-विदेश से पधारे श्रद्धालुओं का बाबा महाकालेश्वर की राजसी सवारी में स्वागत, वंदन एवं अभिनन्दन करता हूं।“
मुख्यमंत्री के इस बयान से यह समझा जा रहा है कि आने वाले समय में महाकाल की सवारी को राजसी सवारी ही कहा जाएगा।
क्यों उठा ‘शाही’ सवारी पर विवाद
हिन्दू समाज के संत और प्रबुद्ध जन लंबे समय से मांग करते आ रहे हैं कि इस सवारी का नाम बदला जाना चाहिए क्योंकि ‘शाही’ शब्द इस्लामी संस्कृति का प्रतीक है और महाकालेश्वर भगवान की यात्रा में इस शब्द का प्रयोग अनुचित होने के साथ-साथ अधार्मिक भी है। इसलिए इस शब्द के स्थान पर राजसी, भव्य या दिव्य जैसे शब्दों का प्रयोग करने की मांग लंबे समय से उठ रही थी।
चूंकि महाकाल बाबा को उज्जैन का राजा माना जाता है इसलिए उनकी सवारी के लिए ‘राजसी’ शब्द उचित समझा गया है। हिन्दू समाज का मानना है कि आने वाले समय में हमेशा ‘राजसी सवारी’ ही निकली जाएगी और इसी प्रकार गुलामी के प्रतीकों को हटाकर सांस्कृतिक जागरण किया जाएगा।
- अथर्व पँवार