मध्यप्रदेश चुनावी दंगल के विजेता की घोषणा हो चुकी है। प्रदेशभर की ज्यादातर सीटों पर बड़ी जीत के साथ एक बार फिर भोपाल के वल्ल्भ भवन में कमल खिलने जा रहा है। बीजेपी की ऐसी जीत की उम्मीद किसी ने नहीं की थी। एग्जिट पोल जारी होने के बाद तक ये कहा जा रहा था कि मध्यप्रदेश में मामला करीबी होने वाला है। इस बीच एक नेता ऐसा था, जिसे अपने 18 बरस के काम-काज पर भरोसा था, लाड़ली बहनों के आशीर्वाद पर भरोसा था। उसे भरोसा था कि विपक्ष चाहे जो करे, आंकड़े चाहे जो कहें। लेकिन, जीत भाजपा की ही होगी। वो व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान है।
यूँ तो मध्यप्रदेश में बीजेपी का कैंपेन MP के मन में मोदी के नाम पर चला, लेकिन चुनावों के नतीजे आते-आते सियासी गलियारों में ‘मामा-मैजिक’ की चर्चाएं तेज़ हो गईं। चुनावों के 6 महीने पहले ही शिवराज ने मोर्चा संभाल लिया था। महिलाएं, OBC, युवा, आदिवासी, अल्पसंख्यक आदि सभी वोट बैंकों को अपने पाले में करने की योजना बनाई जा चुकी थी। बीजेपी की बम्पर जीत में सबसे बड़ा हाथ रहा लाड़ली बहना योजना का, जिसका विरोध शुरुआत में केंद्र सरकार ने भी किया था। लेकिन, शिवराज ने प्रदेश की महिलाओं को लाड़ली बहना बनाने में पूरी ताकत झोंक दी। कई जिलों में बड़े आयोजन हुए, जिनमें लाखों महिलाएं सम्मिलित हुईं। राशि 3000 करने का वादा, 450 रूपए में सिलिंडर, गरीब महिलाओं को आवास जैसे वादों ने बहनों का भैया शिवराज को आशीर्वाद मिलना सुनिश्चित कर दिया। शिवराज और बीजेपी मध्यप्रदेश के सोशल मीडिया हैंडलों ने इसका जमकर प्रचार किया। ‘अब जियो लाड़ली बहना’ गीत हर जगह सुनाई देने लगा।
सरकारी परीक्षाओं में गड़बड़ी और परिणामों में देरी के साथ-साथ पटवारी भर्ती घोटाले को लेकर शिवराज के प्रति युवाओं के आक्रोश की भी कई बातें हुई। लेकिन, शिवराज ने इन सबका ज़रा भी असर चुनावों पर पड़ने नहीं दिया। घोटाले की पुष्टि होते ही नियुक्तियों को रद्द किया, सीखो-कमाओ योजना निकाली, मेधावी विद्यार्थियों को स्कूटी बांटी और प्रोफेसरों को नियुक्ति पत्र भी दिए। ये तो मानना पड़ेगा की चुनावी प्रचार के दौरान भाजपा का डैमेज कंट्रोल काबिल-ए-तारीफ रहा।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण सीधी पेशाब कांड को माना जा सकता है, कि किस तरह मामला सामने आने के कुछ ही घंटों बाद शिवराज ने दशमत रावत को निज निवास बुलवाकर स्वयं उसके पैर धुलवाए और अगले ही दिन आरोपी बीजेपी कार्यकर्ता का घर जमींदोज करवा दिया। क्योंकि, 2018 की हार के बाद ये तय हो गया था कि अगर प्रदेश में बहुमत हासिल करना है, तो जनजातीय क्षेत्रों की सीटों पर बढ़त बनानी होगी। इसके लिए शिवराज का PESA कानून लागू करना, आदिवासियों को जमीन के पट्टे दिलवाना, PM मोदी को झाबुआ-शहडोल बुलवाना, अपने अपर सचिव लक्ष्मण सिंह मरकाम और युवा आयोग अध्यक्ष डॉ. निशांत खरे को ग्राउंड जीरो पर उतारना कारगर साबित हुआ।
ST सीटों के अलावा SC सीटों को साधने के लिए शिवराज ने संत रविदास यात्रा निकालकर पूरे प्रदेश के SC वोटरों को साधने का प्रयास किया। सागर के बड़तूमा में संत रविदास भव्य स्मारक बनाने की घोषणा भी की गई। देशभर में सनातन के लिए होते कार्यों के देख, ऐसे कई अन्य धार्मिक कॉरिडोर और तीर्थ स्थलों के निर्माण की घोषणा के साथ, शिवराज हिंदुओं पर प्रभाव भी बनाते गए। महाँकाल लोक में मूर्तियों के गिरने के बाद जब ओम्कारेश्वर में प्रधानमंत्री मोदी कथित नाराजगी के चलते नहीं आए, तो शिवराज ने खुद आदि शंकराचार्य की प्रतिमा का अनावरण किया और कार्यकर्ताओं का हौंसला बनाए रखा।
इन सभी कार्यों की बदौलत ही, जहाँ हर तरफ शिवराज का रिप्लेसमेंट ढूंढें जाने की बात हो रही थी, बीजेपी खुलकर शिवराज को पुनः सीएम बनाने की घोषणा नहीं कर पा रही थी। वहीं अधिकतर ओपिनियन पोल में जनता शिवराज को ही मुख्यमंत्री बनते देखना चाह रही है। जनता का कहना है कि ये मामा शिवराज का जादू ही तो है कि कांग्रेस की इतनी जटिल रणनीतियों के बावजूद मध्यप्रदेश में प्रचंड बहुमत के कारण कमल खिला है।