मई के महीने के आखिरी सप्ताह में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय सुर्खियों में आ जाता है। एमबीए फर्स्ट सेमेस्टर के दो पर्चे इंदौर के कुछ प्राइवेट कॉलेजों के विद्यार्थियों के व्हाट्सएप ग्रुप्स पर लीक होते हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद आदोंलन करता है। मामले में कॉलेजों के कर्मचारियों के साथ-साथ विश्वविद्यालय के अधिकारियों की भी मिलीभगत की चर्चा होती है। बात उच्च शिक्षा मंत्री तक पहुँचती है। वे विश्वविद्यालय में धारा 52 लगाने की बात भी करते हैं। लेकिन, कोई कार्रवाई नहीं होती।
कुछ दिनों बाद ख़बर आती है कि पेपर लीक करने में हाल ही में भाजपा में शामिल हुए अक्षय कांति बम के कॉलेज आइडलिक इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के कर्मचारी का हाथ है। कर्मचारी समेत व्हाट्सएप ग्रुप पर पेपर वायरल करने वाले दो विद्यार्थियों को पुलिस गिरफ्तार कर लेती है। मामला हज़ारों बच्चों के भविष्य से जुड़ा था, इसलिए इसी दिन से कॉलेज की संबद्धता (Affiliation) रद्द करने की मांग उठने लगती है। लेकिन, हद तो तब होती है, जब बुधवार 12 जून को डीएवीवी कार्यपरिषद की बैठक होती है। इस बैठक में यूनिवर्सिटी दबाव में आकर अक्षय बम के कॉलेज पर मेहरबान हो जाती है। कोई भी सख्त कार्रवाई नहीं करती है। बल्कि, 5 लाख का जुर्माना और कॉलेज 3 सालों के लिए परीक्षा सेंटर न बनाने का निर्णय देकर छोड़ देती है।
यूनिवर्सिटी को भी होगा 13 लाख रुपए का नुकसान:
अब इस मिलीभगत का खामियाज़ा वो 13 हज़ार छात्र भुगतेंगे, जिन्हें दोबारा पेपर देना होगा। एमबीए फर्स्ट सेमेस्टर की परीक्षा पहले ही साढ़े 3 महीना देरी से हुई थी। अब बच्चों का और समय बर्बाद होगा। और तो और दूसरा सेमेस्टर भी 2 महीना देरी से शुरू होगा। उल्लेखनीय बात ये है कि इस फैसले से नुकसान केवल विद्यार्थियों का ही नहीं हुआ है। बल्कि, फिर से एक्जाम कराने में यूनिवर्सिटी को भी लगभग 13 लाख का फटका लगेगा।
परीक्षा की गोपनीयता भंग करने वाली प्राचार्या पर भी कार्रवाई नहीं:
पेपर लीक मामले में दोषी अक्षय कांति बम के कॉलेज का कर्मचारी है। लेकिन, अक्षय रसूखदार नेता हैं इसलिए उनके कॉलेज की संबद्धता रद्द करने का साहस डीएवीवी नहीं कर सकी। मामले में परीक्षा की गोपनीयता भंग करने वाली कॉलेज की प्राचार्या बबीता काकड़िया पर भी कार्रवाई नहीं की गई, जबकि उन्होंने खुद स्वीकारा था कि उन्होंने प्रश्न पत्र का बंडल थाने के बचाए प्राचार्य कार्यालय में रखा था। बबीता ने इस अपराध के लिए लिखित माफी भी मांगी थी, लेकिन फिर भी उनपर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
पहले ही ले लिया गया था सख्त कार्रवाई न करने का फैसला:
वहीं, पर्चा लीक होने के बाद जब यूनिवर्सिटी से अगले 7 दिन के पर्चे वापस बुलाए गए, तो संघवी इंस्टिट्यूट ने जो पर्चे भेजे थे, उनकी सील टूटी हुई थी, कई पर्चे फटे भी हुए थे। संघवी कॉलेज को भी तीन साल तक परीक्षा केंद्र बनाने से रोका जा सकता है। संघवी के अलावा तीन कॉलेजों से पर्चे थाने में भेजने के बारे में पूछताछ करने पर तीनों कॉलेजों ने अब तक जवाब नहीं दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि कॉलेजों पर कोई भी बड़ी कार्रवाई न करने का फैसला पहले ही लिया जा चुका था। इसलिए, इस फैसले से किसी को आपत्ति नहीं हुई।
पहले टाल दी गई जांच रिपोर्ट खोलने की बात:
अब आपको बंद कमरे के अंदर की कहानी बताते हैं। बुधवार दोपहर 12 बजे डीएवीवी कार्यपरिषद की बैठक शुरू हुई। शुरुआत में किसी ने जांच रिपोर्ट खोलने पर सवाल उठाए, लेकिन कुलपति महोदया ने बात टाल दी। फिर आधे घंटे बाद अचानक बैठक में उच्च शिक्षा विभाग के आयुक्त निशांत वरवड़े पहुंचे। उन्होंने सवाल किया कि कोई पेपर लीक हुआ है क्या? मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है। फिर आखिरकार बैठक शुरू होने के 3 घंटे बाद 14 बिंदुओं पर तैयार की गई जांच रिपोर्ट खोली गई। जांच रिपोर्ट खुली ही नहीं थी कि परिषद के सदस्य कॉलेज के बचाव में उतार आए और कहने लगे कि पुलिस की कार्रवाई पूरी होने से पहले रिपोर्ट खोलना उचित नहीं होगा। तब उच्च शिक्षा आयुक्त ने कहा कि कॉलेज पर 5 लाख का जुर्माना लगाया जाना चाहिए। इस बार पर सब राजी हो गए।
“अभी बच्चे उन कॉलेजों में पढ़ रहे हैं, संबद्धता रद्द नहीं की जा सकती” – कुलपति
बैठक के बाद कुलपति डॉ. रेणु जैन का कहना है कि कॉलेज की संबद्धता रद्द करने का निर्णय अभी नहीं लिया गया है। अभी वहाँ छात्र पढ़ रहे हैं। संबद्धता अगले साल रद्द हो सकती है। अभी करना ठीक नहीं होगा। एक विशेष कमेटी बनाई जाएगी, जो कॉलेज का निरीक्षण करेगी तथा खामियाँ मिलने पर कार्रवाई करेगी। बहरहाल, इस मामले के विरोध में शुरुआत से ही एक्टिव रहने वाले एबीवीपी की ओर से अब तक विश्वविद्यालय के फैसले पर कोई बयान नहीं आया है।