पत्रकारिता ने जहां देश-समाज की रूढ़िवादी रीति-नीति व व्यवस्थाओं पर सवाल उठाने का कार्य किया है, तो वहीं साहित्य समाज के दर्पण की तरह काम करता आया है। भारत में साहित्य और पत्रकारिता का संबंध बेहद पुराना है। यदि स्वतंत्रता आंदोलन की ही बात की जाए, तो उस वक्त भी कई बड़े लेखकों ने पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान देने का निर्णय लिया और सामाजिक व्यवस्था को सशक्त बनाने का प्रयास किया।
आज 30 मई यानि कि हिंदी पत्रकारिता दिवस है। आज ही के दिन साल 1826 में हिंदी के पहले समाचार पत्र ‘उदंत मार्तंड’ का प्रकाशन हुआ था। तो आइए भारतीय इतिहास के पन्नों को टटोलते हैं और जानते हैं कुछ ऐसे लेखकों के बारे में, जो उम्दा पत्रकार भी बने।
पंडित मदन मोहन मालवीय:
महामना मदन मोहन मालवीय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता तो थे ही। साथी ही एक आदर्श पुरुष भी थे। वे भारत के पहले और अन्तिम व्यक्ति थे जिन्हें महामना की सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया गया। हिन्दी के उत्थान में मालवीय जी की भूमिका ऐतिहासिक है। भारतेंदु हरिश्चंद्र के नेतृत्व में हिन्दी गद्य के निर्माण में संलग्न मनीषियों में ‘मकरंद’ तथा ‘झक्कड़सिंह’ के उपनाम से विद्यार्थी जीवन में रसात्मक काव्य रचना के लिये ख्यातिलब्ध मालवीयजी ने देवनागरी लिपि और हिन्दी भाषा को पश्चिमोत्तर प्रदेश व अवध के गवर्नर सर एंटोनी मैकडोनेल के सम्मुख 1898 ई0 में विविध प्रमाण प्रस्तुत करके कचहरियों में प्रवेश दिलाया। साथ ही उन्होंने हिन्दू अधिकारों की रक्षा के लिए कई समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में लेखन व संपादन का कार्य किया।
महावीर प्रसाद द्विवेदी:
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के महान साहित्यकार , पत्रकार एवं युगप्रवर्तक थे। उन्होंने हिंदी साहित्य की अविस्मरणीय सेवा की और अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान की। उनके इस अतुलनीय योगदान के कारण आधुनिक हिंदी साहित्य का दूसरा युग ‘द्विवेदी युग’ के नाम से जाना जाता है।[1] उन्होंने सत्रह वर्ष तक हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती का सम्पादन किया। हिन्दी नवजागरण में उनकी महान भूमिका रही। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन को गति व दिशा देने में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा।
बाल गंगाधर तिलक:
बाल गंगाधर तिलक, जिन्हें अक्सर “भारतीय अशांति का जनक” कहा जाता है, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक प्रमुख नेता थे। वह एक विपुल लेखक और विद्वान भी थे, जिन्होंने भारतीय राजनीतिक और सांस्कृतिक विचारों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। तिलक की साहित्यिक रचनाएँ भारत की स्वतंत्रता के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता और राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने की उनकी इच्छा को दर्शाती हैं। उन्होंने समाचार पत्र केसरी और मराठा का कई वर्षों तक संपादन किया। इसी के साथ वे एक बेहद परिपक्व राष्ट्रवादी लेखक भी रहे। उन्होंने गीता रहस्य, वेद सारांश जैसी कई पुस्तकों का लेखन किया।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र:
भारतेंदु हरिश्चंद्र, जिन्हें अक्सर आधुनिक हिंदी साहित्य और रंगमंच का जनक माना जाता है, हिंदी पत्रकारिता में भी अग्रणी थे। पत्रकारिता में उनका योगदान आधुनिक विमर्श की भाषा के रूप में हिंदी के विकास में सहायक था, विशेषकर राजनीति, संस्कृति और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में। उन्होंने कवि वचन सुधा, हरिश्चंद्र पत्रिका, बालबोधिनी जैसे अखबारों व पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। उन्होंने हिंदी भाषा में बेहतर व संगठित लेखन की भी वकालत की। उन्होंने भारत दुर्दशा, अंधेर नगरी जैसे नाटक लिखे और भक्त सर्वस्व, प्रेम प्रबंधक जैसी कविताओं की भी रचना की।