कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम के नामांकन वापस लेकर भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस बौखला गई है। कांग्रेस ने कभी नहीं सोचा था कि इंदौर लोकसभा सीट पर चुनाव के कुछ दिनों पहले इतना बड़ा कांड हो जाएगा। इंदौर सीट पर इंडिया गठबंधन एक साथ चुनाव लड़ रहा है, जिसके चलते सपा और आम आदमी पार्टी ने भी यहाँ से अपना उम्मीदवार नहीं उतारा। अब कांग्रेस किसे समर्थन दे? ऐसे में कांग्रेस ने एक नई युक्ति निकाली – नोटा का बटन दबाने की। कांग्रेस इंदौर के मतदाताओं से नोटा का बटन दबवाने के लिए हर संभव प्रयास करने में लगी है। कांग्रेस के इस मूव से बीजेपी भी डरी हुई है। सभी यह सोचकर बैठे थे कि अक्षय बम के नामांकन वापस लेने के दिन ही इंदौर सीट का चुनावी रोमांच खत्म हो गया। लेकिन, रोमांच तो अभी बस शुरू ही हुआ है।
इस रिपोर्ट में आपको इंदौर में हो रही ‘नोटा पर नौटंकी’ की असली कहानी बताएंगे। बताएंगे कि कैसे डैमेज कंट्रोल करते हुए कुछ दिनों के भीतर ही कांग्रेस ने अपने सुर बदल लिए, क्यों भाजपा को अपनी चाल उल्टी पड़ने का डर सता रहा है? और इस बीच इंदौर की जनता का क्या मूड है? सब कुछ आपको बताएंगे।
पहले बात भाजपा की। वो वीडियो याद होगा, जिसमें इंदौर से लोकसभा टिकट किसे दिए जाने के सवाल पर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था कि इस बार किसी महिला प्रत्याशी को मौका दिया जा सकता है। इस समय तक लालवानी का टिकट कन्फर्म नहीं हुआ था। हालांकि, अगले ही दिन विजयवर्गीय ने अपने बयान से पलटी मार ली थी। भाजपा की लिस्ट जारी हुई, इंदौर से लालवानी के नाम पर मुहर लगी। लेकिन, विजयवर्गीय के महिला प्रत्याशी वाले बयान पर इंदौर से लेकर दिल्ली तक चर्चाएं हुई। लोगों ने कहा कि क्या विजयवर्गीय को लालवानी के काम पर संदेह है? क्या इंदौर सीट पर 10 लाख वोटों से जीत दर्ज करवाने में लालवानी सक्षम नहीं हैं और भी बहुत कुछ। लोगों में ये तक चर्चाएं थी कि यदि लालवानी का वोटिंग पर्सेनटेज कम हुआ, तो ठीकरा विजयवर्गीय के सिर पर ही फूटेगा।
उसी दिन के बाद से इंदौर भाजपा लालवानी को निर्विरोध जितवाने की प्लानिंग में लग गई। अक्षय कांति बम पर भी कथित तौर पर पुरानी आपराधिक फ़ाइलों को खुलवाने के दबाव बनाया गया और उन्होंने नामांकन वापस ले लिया, इतना ही नहीं वे तुरंत भाजपा में शामिल भी हो गए। कुछ और प्रत्याशियों को भी ऐसे ही बैठा लिया गया, कुछ के नामांकन चुनाव आयोग ने ही निरस्त कर दिए। इन सबके बाद भी लालवानी के अलावा 10 से अधिक प्रत्याशी मैदान में बाकी रह गए। बीजेपी लालवानी को सूरत के भाजपा प्रत्याशी की तरह निर्विरोध तो नहीं जितवा सकी, लेकिन कांग्रेस के लिए चुनाव लड़ने का दरवाज़ा ज़रूर बंद कर दिया। एक दरवाज़ा बंद हुआ, तो कांग्रेस एक खिड़की खोल ली, जिसका नाम है – नोटा। कांग्रेस इंदौरियों से 13 मई को नोटा का बटन दबाने को कहने लगी। इससे बीजेपी को अपनी चाल उल्टी पड़ जाने का डर सताने लगा। बीजेपी को अब ये लगने लगा है कि कहीं भाजपा के इस कृत्य से नाराज़ होकर मतदाता सही में नोटा का बटन न दबाने लग जाएं।
कांग्रेस ने नोटा के प्रचार के लिए अच्छी खासी तैयारी शुरू कर दी। ऑटो के पीछे पोस्टर चिपकवा दिए हैं। पीआर टीम से कहकर एक अलग इंस्टाग्राम अकाउंट बानाकर, अपने लोगों से नोटा के समर्थन वाली बाइट भी चलवा दी है। यहाँ तक की नोटा के लिए गाना भी बनवा दिया हैं, जिसके बोल हैं – लोकतंत्र के लुटेरों को सबक सिखाना है, याद रहे इंदौर में हमको नोटा बटन दबाना है। बीजेपी कांग्रेस के तैयारियों से प्रभावित तो है। इस बात का सबूत कुछ दिनों पहले ट्विटर पर वायरल हुए एक वीडियो में देखने को मिला, जिसमें पार्षद संध्या राय ऑटो चालकों से नोटा दबाने वाले पोस्टर हटाने को कह रही थीं।
अब अक्षय बम की पर्चा वापसी को लोकतंत्र की हत्या करार देने वाली कांग्रेस की कहानी भी जान लेते हैं। संजय शुक्ला, विशाल पटेल, स्वप्निल कोठारी, पंकज संघवी, राजा मांधवानी, अंतर सिंह दरबार, राम किशोर शुक्ला और अंत में अक्षय कांति बम जैसे दिग्गज नेता 2 महीनों के भीतर भाजपा में गए, लेकिन कांग्रेस कुछ नहीं कर पाई। कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं का कहना है कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी का शहर के नेताओं से सामंजस्य ही नहीं है। 2019 में लालवानी के सामने चुनाव लड़े पंकज संघवी ने तो ये तक कह दिया कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के इंदौर के नेताओं से संपर्क ही नहीं है। यही वजह है कि इंदौर कांग्रेस के लगभग सभी बड़े नेता आज भाजपा में है।
ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है कि कांग्रे पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की किसी बात का समर्थन करे। लेकिन, आपको बात दें महाजन ने कहा था कि बीजेपी द्वारा अक्षय का नामांकन वापस करवाने की कोई जरूरत नहीं थी। अब महाजन के इस बयान का सहारा लेकर कांग्रेस अपनी नाकामियों को छुपाने लगी है। कांग्रेस को एकदम से ताई की पीड़ा नजर आने लगी है।
बहरहाल, इन सभी बातों को लेकर द जर्नलिस्ट की टीम इंदौर की गलियों और ठियों पर उतरी और जो पाया, वह हैरान कर देने वाला था। युवाओं का कहना है कि नोटा का बटन दबाने से शहर में विकास नहीं होगा, नोटा आपके लिए संसद में जाकर आवाज़ नहीं उठाएगा, नोटा जीत भी जाता है, तो उससे कोई फायदा नहीं होगा। और तो और कई कांग्रेस समर्थक भी नोटा पर वोट डालकर अपने मतदान के अधिकार को ज़ाया नहीं करना चाहते।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी भी पिछले कई दिनों से नोटा दबाने पर ज़ोर डाल रहे हैं। उनका कहना है कि भाजपा ने हमारा प्रत्याशी ही लूट लिया। हालांकि, हाल ही में उन्होंने भी इंदौर में मीडिया के सामने यह कह ही दिया कि जीत तो बीजेपी की ही होगी। लेकिन, मतदाता अपनी अंतरात्मा की पुकार सुनकर वोट डाले।
अब दोनों प्रत्याशियों का हाल भी जान लेते हैं। तो एक तरफ भाजपा प्रत्याशी शंकर ललवानी मतदान के पहले ही जश्न मनाते हुए प्रचार सभा में डांस करते हुए देखे गए हैं, तो वहीं दूसरी ओर पूर्व कांग्रेसी अक्षय कांति कम के खिलाफ पुलिस ने उसी 17 साल पुराने मामले में गैर जमानती वारंट जारी कर दिया है, जिससे बचने के लिए वे भाजपा में आए थे। नोटा के लिए की गई तैयारियों का परिणाम और लालवानी का 10 लाख वोटों से जीतने का दावा, दोनों के साथ न्याय इंदौर की जनता 13 मई, सोमवार को करेगी।