मध्यप्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीट ST या अनुसूचित जनजाति आरक्षित हैं। प्रदेश के 20 जिलों के अंतर्गत कुल 89 विकासखंड हैं, जिनमें रहने वाले डेढ़ करोड़ से अधिक आदिवासी ही यह तय करते हैं कि कौन सरपंच बनेगा, कौन विधायक और कौन सांसद? चुनावों के दौरान दोनों बड़ी पार्टियां भाजपा और कांग्रेस अन्य वर्गों की तरह आदिवासी समाज को भी साधने का काम करती हैं। लेकिन, पिछले कुछ सालों में एक और संगठन है, जो जनजातीय समाज के आगे एक थर्ड फ्रंट बनकर उभर रहा है। इस संगठन ने आदिवासियों के मुद्दों को उठाने, सरकार के खिलाफ उन्हें एकजुट करने और उनके मतों को प्रभावित करने में अच्छी खासी भूमिका निभाई है। हम बात कर रहे हैं – जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन या जयस (JAYS) के बारे में, जिसकी राजनैतिक दखल के चलते सरकार को भी झुकना पड़ा, आदिवासियों के लिए नए नियम-कानून और योजनाएं बनानी पड़ी। अबके चुनावों में स्थिति कुछ यूँ है कि जिस पार्टी अनुसूचित जनजाति बाहुल्य सीटों पर जीत दर्ज कर ली, सरकार उसी की बनेगी।
ख़ुद को महज़ एक सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन मानने वाली जयस की स्थापना 16 मई 2013 में हुई। डॉ. हीरालाल अलावा, लोकेश मुजाल्दा और विक्रम अछलिया, डॉ. आनंद राय जयस के संस्थापक सदस्य माने जाते हैं। कहने को तो इस संगठन की शुरुआत बड़े नेक इरादों के साथ हुई, जिसमें जनजातीय क्षेत्रों के युवाओं को जोड़कर उन्हें नशामुक्ति, शिक्षा, कौशल विकास, रोज़गार और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया गया। देखते ही देखते हज़ारों आदिवासी युवा जयस से जुड़ने लगे। जयस ने आवाज़ उठाई कि सरकारों ने सदैव आदिवासियों की अनदेखी की। न उनकी संस्कृति का सम्मान किया न भाषा का, न रीति रिवाज़ों का, जिसके कारण प्रदेश में जनजातीय समाज अपने अधिकार खोता चला गया और अन्य समाजों द्वारा शोषण का शिकार होने लगा। जयस ने आक्रामकता के साथ छठी अनुसूची, PESA एक्ट, कुपोषण, नशामुक्ति जैसे मुद्दों पर आवाज़ उठाना शुरू किया। इसके लिए जयस ने ‘आदिवासी हिंदू नहीं हैं’ कार्ड भी खेला, जिसको लेकर देश में काफी बहस भी हुई।
राजनैतिक विशेषज्ञ जयस को एक भटका हुआ संगठन मानते हैं, जिसकी स्थापना तो जनजातीय समाज को एक जाजम पर लाने और उन्हें क्रांति के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से हुआ था। लेकिन, जयस के महत्वाकांक्षी लीडरों के चलते यह प्रदेश में कांग्रेस की B टीम बनकर रह गया। जयस के नेताओं ने माना कि बिना राजनीति के समाज मे बदलाव लाना संभव नहीं है। इसलिए जयस ने चुनावों मे दखल देना और उम्मीदवारों की सूची में जयस समर्थित लोगों को सेट करना शुरू कर दिया। पंचायत स्तर पर जयस के लोगों ने कई चुनाव जीते भी हैं। कुछ सालों में जयस मध्यप्रदेश के बाहर भी आदिवासियों से जुड़े आंदोलनों में सक्रीय भूमिका निभाने लगा।
जयस द्वारा आदिवासी गाँवों की गलियों-नुक्कड़ों से शुरू हुई क्रांति की गूँज भोपाल-दिल्ली तक सुनाई देने लगी। अनुसूचित क्षेत्रों में बीजेपी सरकार के विरोध में ऐसा माहौल बना कि 2018 विधानसभा चुनावों में ज्यादातर ST बाहुल्य सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। पुनः पावर में आने के बाद भाजपा ने आदिवासियों वोटबैंक को अपने पाले में करने का बेहिसाब प्रयास किया। PESA कानून, चरण पादुका योजना, टंट्या मामा आर्थिक कल्याण और बिरसा मुंडा स्वरोजगार सहित ढेरों योजनाओं का प्रचार किया गया। 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाने लगा। जबलपुर में रानी दुर्गवाती का भव्य स्मारक बनाने की घोषणा भी की गई। पातालपानी का नाम बदलकर टंट्यामामा के नाम पर रखना और हबीबगंज स्टेशन का नाम रानी कमलापति रखना भी इसी रणनीति के तहत हुआ। इंदौर के भंवरकुआं चौराहे का नाम भी जननायक टंट्या मामा चौराहा इसलिए रखा गया, क्योंकि इस इलाक़े में निमाड़ के आदिवासी गाँवों से आने वाले विद्यार्थी भारी मात्रा में रहते हैं। आदिवासी समाज को साधने के लिए शिवराज सिंह चौहान को अपने मुख्य सचिव लक्ष्मण सिंह मरकाम और अपने करीबी डॉ. निशांत खरे को उतारना पड़ा, जिससे बीजेपी को फायदा होने की उम्मीद भी बताई जा रही है। इसी तरह कांग्रेस ने भी अपने वचन पत्र आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर तैयार किया।
2018 चुनावों के आने तक सब ठीक ही चल रहा था। चुनाव आते ही पार्टी के लीडरों के बीच मतभेद शुरू हो गए और जयस 4 भागों में बंटता नजर आने लगा। जयस की बढ़ती लोकप्रियता को देख कांग्रेस ने भी दांव खेला और डॉ. हीरालाल अलावा कांग्रेस की टिकट पर मनावर सीट से उम्मीदवार घोषित हो गए। अलावा ने भारी मतों से जीत भी दर्ज की। अलावा इस बार भी मनावर से चुनाव लड़ रहे हैं। बता दें कि हीरालाल अलावा ने दिल्ली AIIMS के प्रोफेसर की नौकरी त्यागकर जयस की स्थापना की थी।
इसी तरह लोकेश मुजाल्दा और रामदेव काकोड़िया राष्ट्रीय जयस को खड़ा करने की जद्दोजहद में जयस के मूल उद्देश्य से भटकते चले गए। जयस की स्थापना में व्यापम घोटाले के व्हिट्सल ब्लोअर कहे जाने वाले डॉ. आनंद राय ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी, लेकिन अपनी बढ़ती राजनैतिक महत्वकांक्षाओं के चलते उन्होंने भी तेलंगाना की BRS पार्टी का हाथ थाम लिया और जयस का पीला गमछा छोड़ BRS का गुलाबी गमछा ओढ़ लिया। चुनाव के पहले उन्होंने कहा था कि मध्यप्रदेश की जनता दोनों पार्टियों के कामकाज से असंतुष्ट है और एक तीसरा विकल्प चाहती है। BRS पार्टी वो तीसरा विकल्प बनकर उभरेगी और पार्टी का आदेश हुआ तो मैं शिवराज सिंह चौहान के सामने बुदिनी से चुनाव लड़ना चाहूंगा। ये बात तब की है, इन दिनों जब आनंद राय का ट्विटर अकाउंट देखें, तो पता चलता है कि आनंद राय BRS नहीं, बल्कि कांग्रेस की जीत का दावा ठोकते नजर आ रहे हैं। इस तरह आदिवासी समाज में क्रांति लाने के उद्देश्य से शुरू किया गया संगठन अपने नेताओं के लालच के चलते कांग्रेस की B टीम बनकर रह गया।
इसके अलावा जयस ने आदिवासी अधिकारों के हनन से जुड़े लगभग सभी मामले उठाए। सिवाए एक के, और वो है – ईसाई मिशनरियों द्वारा जनजातीय क्षेत्रों में तेजी से कराया जा रहा धर्मांतरण। जयस ने अपने पूरे कार्यकाल मे भी तक धर्मांतरण रोकने के लिए कोई आंदोलन नहीं किया। यही कारण है कि कई बार जयस को क्रिप्टो क्रिस्चियन कहकर भी पुकारा जाता है। इन सबके बाद भी जयस की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। 9 अगस्त, विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर लोकेश मुजाल्दा की अध्यक्षता में इंदौर में भव्य रैली निकाली गई, जिसमें हज़ारों की तादाद में युवा शामिल हुए थे।
ऐसा माना जा रहा था दलित और आदिवासी अधिकारों की बात करके जयस, भीम आर्मी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी आदि गुट मिलकर भाजपा-कांग्रेस से इतर एक थर्ड फ्रंट खड़ा कर सकते हैं। लेकिन, पिछले दिनों भीम आर्मी और आज़ाद समाज पार्टी के नेताओं की बीजेपी से सांठगांठ का मामला सामने आया था और जयस की कहानी हम आपको बता ही चुके हैं। ऐसे में थर्ड फ्रंट खड़ा होना मुश्किल ही प्रतीत हो रहा है।