मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पिछले दिनों एक ऐसा फैसला सुनाया, जिसने सोशल मीडिया पर एक बड़ी बहस छेड़ दी है। 27 मई, सोमवार को जबलपुर हाईकोर्ट में एक मुस्लिम युवक और हिंदू युवती ने विशेष विवाह अधिनियम या स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत अपनी शादी पंजीकृत कराने के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग की थी। हाईकोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से ये कहते हुए इनकार कर दिया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार एक मुस्लिम लड़के और हिंदू लड़की की शादी ही वैध नहीं है। ऐसे में शादी रजिस्टर कराने के लिए सुरक्षा नहीं दी जा सकती।
मामला अनूपपुर का बताया जा रहा है। जहां एक मुस्लिम युवक और हिंदू युवती ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपनी शादी रजिस्टर कराने के लिए विवाह पंजीकरण अधिकारी के समक्ष आवेदन दायर किया है। उन्होंने मांग की है कि विवाह पंजीकरण अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने के लिए उन्हें पुलिस सुरक्षा दी जाए। दोनों की उम्र 23 साल है तथा दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं। लड़की के पिता अंतर जातीय विवाह का विरोध कर रहे हैं। सुनवाई के दौरान उन्होंने बताया कि लड़की घर से सभी आभूषण लेकर गई है। अगर वह मुस्लिम लड़के से विवाह करती है, तो समाज उसका बहिष्कार कर देगा।
मामले पर फैसला सुनाने वाले न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने कहा कि एक मुस्लिम लड़के और एक हिंदू लड़की के बीच विवाह को मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत एक अनियमित विवाह माना जाएगा। कोर्ट ने कहा है कि मोहम्मडन कानून के अनुसार, एक मुस्लिम लड़के की एक ऐसी लड़की से शादी, जो मूर्तिपूजक या अग्नि-पूजक है, वैध शादी नहीं है। भले ही विवाह विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत हो, विवाह अब वैध विवाह नहीं होगा।
याचिककर्ता के अधिवक्ता की ओर से दलील पेश की गई कि विवाह के बाद दोनों अपने-अपने धर्मों का पालन करेंगे। दोनों का धर्म परिवर्तन करने का भी कोई इरादा नहीं है। इस पर हाईकोर्ट ने एक पुराने केस का हवाला देते हुए कहा कि विवाह के बाद दोनों के बीच उत्तराधिकार को लेकर विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। एकलपीठ ने ये भी कहा कि पर्सनल लॉ के तहत विवाह के कुछ नियमों का पालन भी किया जाता है।
कोर्ट ने कहा कि एक मुस्लिम युवक किसी ऐसी लड़की से शादी नहीं कर सकता, जो मूर्तिपूजक या अग्निपूजक हो। अगर विशेष विवाह अधिनियम के तहत उनका विवाह रजिस्टर हो भी जाता है, तो भी मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत उसे वैध नहीं माना जाएगा। अंत में कोर्ट ने कहा कि यह मामला लिव-इन रिलेशनशिप या धर्म परिवर्तन से संबंधित नहीं है। इसलिए, इसमें न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा दिए गए इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। इस मामले के खबरों में आने के बाद #MadhyaPradesh ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा है। इस हैशटैग के तहत हज़ारों लोग कोर्ट के इस निर्णय को लेकर अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि यदि इस तरह का जजमेंट दिया जाएगा, तो फिर संविधान में दिए गए स्पेशल मैरिज का मतलब क्या है? लोगों ने ये सवाल भी उठाए हैं कि कोर्ट तब क्या निर्णय लेती, जब लड़का गैर-मुस्लिम होता और लड़की मुस्लिम होती? कुछ लोगों ने कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए ये कहा है कि यदि इस्लाम में मुशरीक (गैर-मुस्लिम, मूर्तिपूजक, अग्निपूजक) लड़की से विवाह की अनुमति नहीं है, तो ऐसे में विवाह करना ही क्यों? मुस्लिम पर्सनल लॉ का यह नियम गैर मुस्लिम लड़कियों को विवाह के लिए अपना धर्म बदलने के लिए प्रेरित करने का कार्य करता है।