Jabalpur । भारत में ऐसे कई मंदिर है जो अपनी खगोल विद्या, स्थापत्य कला और भगवान की आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए विख्यात हैं। ऐसा ही एक मंदिर संस्कारधानी जबलपुर (Jabalpur) में है। यह मंदिर मां लक्ष्मी (laxmi) का है और कई विशेषताओं से भरपूर है। यह मंदिर जबलपुर के अधारताल (Adhartal) में स्थित है और पचमठा (Pachmatha) मंदिर के नाम से जाना जाता है ।
बताया जाता है कि जनजाति संस्कृति में भी इस मंदिर का बहुत महत्व है । इतिहासकारों के अनुसार गोंडवाना शासन में यहां देवी की पूजा की जाती थी । रानी दुर्गावती( Rani Durgawati) के सलाहकार एवं विशेष सेनापति अधार सिंह ने यहां मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था । उन्हीं के नाम पर निकट के तालाब का नाम अधार तालाब रखा गया है । ऐसा बताया जाता है कि एक समय यहां तंत्र साधना हुआ करती थी और यह तांत्रिकों का केंद्र बन गया था । मंदिर के चारों ओर श्रीयंत्र लगे हैं जिनके समक्ष तंत्र विद्याएं धनप्राप्ति की इच्छा हेतु की जाती थी । अभी भी प्रत्येक अमावस्या को यहां बड़ी संख्या में भक्त आते हैं ।
यहां प्रत्येक शुक्रवार विशेष रूप से लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं । यहां मान्यता है कि यदि सात शुक्रवार आकर माता का विशेष पूजन एवं आराधना करते हैं तो हमें धन प्राप्ति के योग प्राप्त होते हैं । यहां रात्रि को छोड़कर मंदिर के कपाट हमेशा खुले रहते हैं एवं दीपावली के दिन मंदिर 24 घंटे भक्तों के लिए खुला रहता है ताकि महालक्ष्मी अपने प्रत्येक समर्पित भक्तों को अपना आशीर्वाद दे सके ।
जीवन में धन-वैभव की पूर्ति करने वाला इन्द्रदेव द्वारा लिखा गया Mahalakshmi Ashtakam पढ़िए
महालक्ष्मी अष्टकम Mahalakshmi Ashtakam का सर्वप्रथम पाठ स्वर्ग के राजा इन्द्रदेव Indra ने किया था और इसकी रचना भी उन्होंने ही की थी। इस प्राचीन पाठ का उल्लेख पद्म पुराण में बताया जाता है। ऐसा माना जाता है कि सुख-समृद्धि, वैभव, धन की प्राप्ति के लिए इस प्राचीन महालक्ष्मी अष्टकम का पाठ करना चाहिए।
Mahalakshmi Ashtakam का पाठ –
श्री शुभ ॥ श्री लाभ ॥ श्री गणेशाय नमः॥
नमस्तेस्तू महामाये श्रीपिठे सूरपुजिते ।
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥१॥
नमस्ते गरूडारूढे कोलासूर भयंकरी ।
सर्व पाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥२॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी ।
सर्व दुःख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥३॥
सिद्धीबुद्धूीप्रदे देवी भुक्तिमुक्ति प्रदायिनी ।
मंत्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ४ ॥
आद्यंतरहिते देवी आद्यशक्ती महेश्वरी ।
योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ५ ॥
स्थूल सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ती महोदरे ।
महापाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥ ६ ॥
पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्हस्वरूपिणी ।
परमेशि जगन्मातर्र महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥७॥
श्वेतांबरधरे देवी नानालंकार भूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मार्त महालक्ष्मी नमोस्तूते ॥८॥
महालक्ष्म्यष्टकस्तोत्रं यः पठेत् भक्तिमान्नरः ।
सर्वसिद्धीमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥९॥
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनं ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्य समन्वितः ॥१०॥
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रूविनाशनं ।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥११॥
॥ इतिंद्रकृत श्रीमहालक्ष्म्यष्टकस्तवः संपूर्णः
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