मध्यप्रदेश के महाकौशल में शहर है – जबलपुर, जिसे प्रदेश की संस्कारधानी भी कहा जाता है। यहाँ नर्मदा के घाट हैं, धुआंधार जलप्रपात है, कई मंदिर, कई पर्यटन स्थल हैं और बेहतरीन खान-पान भी है। यहाँ की राजनीत भी गजब है। ढ़ेरों बड़े नेता, उनकी बड़ी महत्वकांक्षाएं, टिकट पाने की जद्दोजहद, व्यापारियों का प्रभुत्व, जातिगत समीकरण और न जाने क्या क्या। विधानसभा चुनावों के परिणाम तो 3 दिसंबर को आएँगे, लेकिन उससे पहले मध्यप्रदेश की हर सीट की राजनीति को भांपते हुए, गलियों-चौराहों से बाज़ारों-नुक्कड़ों तक जनमत-गम्मत करते हुए और वोटिंग के दिन दोनों पार्टियों के माहौल का आंकलन करते हुए हमने जो देखा वो आपको बताएंगे, जबलपुर संभाग की सभी सीटों का एग्जिट पोल आपको बताएंगे। शुरू करने से पहले एक छोटा सा डिस्क्लेमर कि ये हमारा अनुमान है, अनुभव है। ये अनुमान सही ही होंगे, इसका हम दावा नहीं कर सकते।
सबसे पहले बात जबलपुर पूर्व की, जो अनुसूचित जाति आरक्षित सीट है। यहाँ से भाजपा के अंचल सोनकर के सामने कांग्रेस के लखन घनघोरिया मैदान मे है। घनघोरिया पिछला चुनाव जीत कर कमलनाथ सरकार में मंत्री भी बने थे। वैसे तो इस सीट पर एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस जीत दर्ज करती है। लेकिन इस बार घनघोरिया का पलड़ा भारी बताया जा रहा है। इस सीट की कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती। यहाँ ओवैसी की पार्टी AIMIM ने भी अपने उम्मीदवार के रूप मे गजेन्द्र उर्फ गज्जू सोनकर को उतारा है, जो पहले कांग्रेस मे थे। इस सीट से टिकट चाहते थे, लेकिन घनघोरिया के वजन के चलते टिकट नहीं मिल पाई। क्षेत्र मे मुस्लिम वोटर भी हैं, इसलिए गज्जू ने AIMIM का दामन थाम लिया। अगर पूर्व कांग्रेसी गज्जू ने कांग्रेस के वोट काटे, तो भाजपा को फायदा हो सकता है और अंचल सोनकर जीत सकते हैं।
अब बात जबलपुर उत्तर की, जो दशकों से बीजेपी का गढ़ रहा है। वजह हैं पूर्व विधायक और कैबिनेट मंत्री शरद जैन, जिन्हें इस बार टिकट नहीं दिया गया। टिकट मिला भारतीय जनता युवा मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष रह चुके अभिलाष पांडे को, जो जबलपुर पश्चिम से टिकट पाने की तैयारी कर रहे थे। यही कारण है कि शुरुआत से ही पांडे पर बाहरी होने के आरोप भी लगाए जाते रहे हैं। अभिलाष भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वी.डी. शर्मा के करीबी हैं, इसलिए उन्हें टिकट दे दिया गया। इन्हें टिकट मिलने के बाद शरद जैन समेत जबलपुर भाजपा के कई बड़े नेताओं ने विरोध भी किया था, जिनमें कमलेश अग्रवाल, धीरज पटेरिया और प्रभात साहू भी शामिल थे। प्रभात साहू ने तो भाजपा नगर अध्यक्ष पद से इस्तीफा भी दे दिया। वहीं कमलेश अग्रवाल निर्दलीय खड़े हो गए थे, जिन्हें शिवराज ने मनाया और इस तरह अग्रवाल ने नामांकन वापस भी ले लिया। मामला इतना बढ़ गया था कि अमित शाह और शिवराज सिंह चौहान को स्वयं डैमेज कंट्रोल के लिए उतरना पड़ा। अभिलाष पांडे के सामने पिछली बार के विजेता विनय सक्सेना खड़े हैं। ऐसा कहा जाता है कि विनय सक्सेना के साथ क्षेत्र के व्यापारियों का साथ है, जिसका फायदा उन्हें मिल सकता है। वहीं अभिलाष पांडे को लेकर ये चर्चा है कि अगर वे जीते तो केवल भाजपा के नाम के चलते ही जीतेंगे। क्योंकी उनकी ही पार्टी के कई नेता उनके विरोध मे हैं।
जबलपुर संभाग की सबसे चर्चित विधानसभा सीट है जबलपुर पश्चिम, जहां से 4 बार के सांसद और मध्यप्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता राकेश सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। उनका सामना कर रहे हैं तरुण भानोत, जो पिछला चुनाव जीतकर कमलनाथ सरकार में वित्त मंत्री भी बने थे। भानोत ने राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा के साथ मिलकर पहली बार कैबिनेट की बैठक को भोपाल से निकालकर जबलपुर मे आयोजित करवाया था। साथ ही जबलपुर मे फ्लाईओवर्स के निर्माण और कुम्भ के आयोजन के लिए जरूरी कदम भी उठाए थे। कहा जाता है कि जिस तरह इंदौर में जीतू पटवारी युवाओं में लोकप्रिय हैं, उसी प्रकार जबलपुर मे कांग्रेस के तरुण भानोत की रंगदारी है। भानोत कमलनाथ के खास भी हैं, इसलिए राकेश सिंह जैसे बड़े नाम के सामने उन्हें खड़ा किया गया। यहाँ परिणाम जो भी होगा, बेहद करीबी होगा।
बारी आती है जबलपुर कैंट सीट की। पिछली बार इस सीट पर भाजपा के अशोक रोहाणी ने 26000 वोटों से जीत हासिल की थी। अशोक रोहाणी, ईश्वरदास रोहाणी के पुत्र हैं, जो मध्यप्रदेश की राजनीति का बड़ा नाम माने जाते हैं। इसी का फायदा उनके पुत्र अशोक को 10 बरसों से मिल रहा है। इस सीट पर भाजपा का प्रभाव इतना है कि कुछ महीनों पूर्व हुए नगरीय निकाय चुनाव में जब पूरे जबलपुर में कांग्रेस का माहौल था, तब भी कांग्रेस कैंट से एक भी पार्षद नहीं जिता पाई थी। उनके सामने खड़े हैं कांग्रेस के चिंटू चौकसे, जिन्होनें कैंट उपाध्यक्ष के रूप मे क्षेत्र में पकड़ बनाने का बढ़िया कार्य किया है। लोग कहते हैं कि अगर सीट के कैंट में चिंटू चौकसे को बढ़त है, तो राँझी, गोकलपुर, आधारताल में रोहाणी का पलड़ा भारी है, क्योंकि सिंधी समाज के वोटर भी उनके पक्ष मे हैं। फिर भी संयुक्त रूप से रोहाणी ही आगे चल रहे हैं।
पनागर विधानसभा में भाजपा के इंदू तिवारी हैं। लोग कहते हैं कि उन्होनें पिछले 5 वर्षों में केवल एक कार्य पूरी श्रद्धा से करवाया है, वो है बागेश्वर धाम सरकार, धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की रामकथा। इसके अलावा ब्राह्मण वोट उनके साथ हैं, पिछले 2 चुनावों से साथ है हीं। बहरहाल, सामने कांग्रेस के राजेश पटेल हैं, जिन्हें क्षेत्र के ओबीसी वोटरों का खुले तौर पर समर्थन है। लेकिन, पलड़ा इंदू तिवारी का भारी है। जिसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि पनागर ग्रामीण इलाका है, इसलिए लाड़ली बहना योजना का असर देखने को मिल सकता है।
बात करते हैं पाटन की, जहां से मध्यप्रदेश भाजपा के प्रमुख नेता और पूर्व विधायक अजय विश्नोई उम्मेदवार हैं। इस बार इस सीट से कांग्रेस के नीलेश अवस्थी का पलड़ा भारी लग रहा है, क्योंकी विश्नोई के पिछले 5 बरस के कार्यकाल से जनता असन्तुष्ट नजर आ रही है। ये कुछ सीटें हैं, जहां भाजपा प्रत्याशी जीते तो भाजपा के नाम के बल पर भी जीतेंगे।
सिहोरा सीट भी जबलपुर संभाग मे ही आती है, जहां से भाजपा ने जनपद अध्यक्ष संतोष बरकड़े को उतारा है, उनके सामने कांग्रेस की एकता ठाकुर हैं। इस सीट से पिछली बार भाजपा की नंदनी मरावी चुनाव जीती थी, जिनके काम इतने संतोषजनक नहीं थे कि पुनः भाजपा को जीत दिला सकें। यह एक आदिवासी बहुल सीट है, इसलिए पलड़ा कांग्रेस का भारी बताया जा रहा है।
अंत मे बरगी सीट पर आते हैं। इस सीट पर यादवों की बहुलता है। बीजेपी के कार्यों से असंतोष के साथ कांग्रेस का प्रभाव भी है। इसलिए बीजेपी के नीरज ठाकुर के आगे कांग्रेस के संजय यादव बढ़त बनाते दिखाई दे रहे हैं।
जबलपुर से राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा कांग्रेस की ओर से महकौशल के प्रभारी हैं, जिसका फायदा जबलपुर संभाग को निश्चित ही मिलेगा। इसके अलावा क्षेत्र में भाजपा का तगड़ा माहौल है। इस बार संभाग मे कांग्रेस को मिलती बढ़त का सबसे बड़ा कारण है कई मोर्चों पर भारतीय जनता पार्टी की नाकामी। इसे एक उदाहरण के माध्यम से समझिए कि जबलपुर सीट के इतने महत्वपूर्ण होने के बावजूद भी 10 वर्षों से भाजपा ने एक यहाँ से एक भी कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया। कांग्रेस की सरकार आई, तो लखन घनघोरिया और तरुण भानोत को कैबिनेट मंत्री का पद दिया गया। राकेश सिंह के 20 वर्षों से लोकसभा सांसद होने के बावजूद क्षेत्र आज भी तकनीकी विकास, अवैध कॉलोनियों, अस्पतालों और उच्चशिक्षण केंद्रों की कमी से जूझ रहा है।