उज्जैन एक तीर्थनगरी है जहां कण-कण धार्मिकता प्रकट करता है। यह भारत के प्राचीनतम नगरों में से एक है। यहाँ महाकालेश्वर तो बिराजित हैं ही, लेकिन इस नगर में द्वापरयुग में जन्में कृष्ण भी आए थे। संदीपनि आश्रम के अलावा यहाँ एक और स्थान है जिससे मान्यता जुड़ी है कि यहाँ भी कृष्ण आए थे।
वह स्थान है उज्जैन के खाकचौक क्षेत्र में स्थित “गयाकोटा” मंदिर। इस मंदिर में वैसे तो वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन श्राद्ध पक्ष के 16 दिन विशेष रूप से यहाँ असीमित भीड़ पड़ने लगती है। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जो यहाँ दूध चड़ा देता है उसके पितृ प्रसन्न हो जाते हैं। वर्ष भर यहाँ श्राद्ध करवाने एयर पिंडदान करवाने वालों की भीड़ रहती है लेकिन श्राद्ध पक्ष के अंतिम दिन सर्व पितृ अमावस्या होती है और इस दिन केवल दूध चढ़ाने के लिए ही यहाँ कई किलोमीटर लंबी लाइन लगती है। यहाँ पर 16 पदचिन्ह बने हुए हैं जिनपर तथा शिवलिंग पर दूध चढ़ाकर श्रद्धालु पितृों को तृप्त करते हैं।
गया जितना है महत्व
आपको बता दें कि सनातन संस्कृति में पितृ ऋण से मुक्ति के लिए पितृों को तर्पण पूजन किया जाता है। इसके लिए श्राद्ध करना, पिंडदान आदि पूजन करना और तर्पण करना अनिवार्य है। मान्यताओं के अनुसार जो एक बार बिहार के गया में पितृ की श्राद्ध पूजा करवाता है उसके पितृ हमेशा के लिए तृप्त हो जाते हैं। वैसे ही उज्जैन के ‘गयाकोटा’ का भी उतना ही महत्व है। इसीलिए देश विदेश से यहाँ श्रद्धालु पितृों को तृप्त करने के लिए यहाँ पूजा करवाने आते हैं।
कृष्ण ने भी करवाया है यहाँ ‘तर्पण’
मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण भी यहाँ आए थे। कहा जाता है कि अपने गुरु के पुत्रों का तर्पण उन्होंने यहीं करवाया था। माना जाता है कि यहाँ पर बनाए गए 16 पदचिन्ह (चरण) उनके द्वारा ही निर्मित हैं। हर चरण श्राद्ध की प्रत्येक तिथि को समर्पित हैं। यहाँ इन पर दूध, जल, पुष्प आदि अर्पित करने से पितृ तृप्त होते हैं।