इंदौर (Indore) के प्रसिद्ध राजवाड़ा चौक पर प्रसिद्ध महालक्ष्मी (Mahalaxmi) मंदिर स्थित है। यह मंदिर इंदौर मे शासन करने वाले “होलकर” (Holkar) राजवंश के द्वारा बनाया हुआ बताया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां विराजित देवी के आशीर्वाद के कारण ही होलकर राज्य में कभी भी धन वैभव की कमी नहीं हुई। यह मंदिर 190 वर्ष पुराना है। इतिहासकार बताते हैं कि यह मंदिर 1833 में हरीराव होल्कर (Harirav Holkar) ने बनवाया था। पहले यहां एक घर था, जिसमें प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। लेकिन समय के साथ इसे एक मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया। होलकर काल में राजवंश के लोग यहां नवरात्रि (Navratri) एवं दीपावली (Deepawali) पर विशेष पूजन करते थे। ऐसा भी बताया जाता है कि प्रत्येक वर्ष खजाना खोलने के पहले होलकर राजवंश में यहां विराजित देवी के सर्वप्रथम दर्शन करने की परंपरा भी चलती थी, उसके बाद ही खजाना खोला जाता था।
पाँच दिन तक मनाया जाता है, दीपोत्सव
वर्तमान मे प्रत्येक वर्ष यहां पांच दिवसीय दीपावली का उत्सव का आयोजन होता है। यह उत्सव धनतेरस (Dhanteras) से आरंभ होता है जो भाईदूज (Bhaidooj) तक चलता है । यहां हजारों लोग इन पांच दिनों में दर्शन करने आते हैं। दीपावली के दिन तो सुबह 3:00 बजे ही यहां के पट खोल दिए जाते हैं और 11 पुजारी महालक्ष्मी देवी की व्यवस्था एवं पूजन में लग जाते हैं और वे यहां माता का अभिषेक एवं श्रृंगार भी करते हैं।
पीले चावल चढ़ाने से हर मन्नत पूरी होती है
इस मंदिर से मान्यता जुड़ी है कि यहां पीले चावल का आमंत्रण देने पर माता लक्ष्मी हमारे घर और व्यवसायिक स्थल पर आती हैं । दीपावली के 5 दिनों के अलावा भी यहां लोग अन्य दिनों में भी पीले चावल देने आते हैं और आशीर्वाद स्वरुप कुछ पीले चावल लेकर अपने दुकान के गल्ले या घर की तिजोरियों में रखते हैं। जिसे देवी का आशीर्वाद माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पूर्ण श्रद्धा से यहां पर मन्नत मांगने पर माता विशेष प्रतिफल प्रदान करती है।
चमत्कार -: तीन बार मंदिर छतिग्रस्त हुआ पर मूर्ति ओर प्रतिमा को कुछ नहीं हुआ
इस मंदिर के साथ एक चमत्कार भी जुड़ा हुआ है। बताया जाता है कि मंदिर तीन बार क्षतिग्रस्त हुआ लेकिन कभी भी देवी की प्रतिमा और व्यवस्थापक पुजारी को क्षति नहीं पहुंची । मंदिर में कार्य करने वाले एक पुजारी जी ने बताया कि सर्वप्रथम 1928 में मंदिर की छत गिरी थी। उस समय मंदिर कच्चा बना था और छत मिट्टी की थी। अचानक से छत गिरने के कारण छत की लड़कियां एक ढाल के स्वरूप में बन गई और माता की प्रतिमा सुरक्षित मलबा गिरने के बाद भी बच गई। दूसरी बार 1972 में मंदिर में आग लग गई थी जिसमें पूरा मंदिर जल गया था। लेकिन प्रतिमा को आंच तक नहीं लगी। अंतिम बार 2011 में मंदिर की छत का प्लास्टर गिर गया था लेकिन देवी की प्रतिमा और पुजारी पूरी तरह सुरक्षित बच गए।
शहर के केंद्र में होने के कारण यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। कई व्यापारी दुकान खोलने के पहले माता का आशीर्वाद भी लेते हैं। इंदौर के बड़े प्रशासनिक अधिकारी और प्रतिष्ठित जन भी दीपावली में यहां दर्शन करने तो आते ही हैं। इस दीपावली आप भी माता का दर्शन करने अवश्य जाएं।