पिछले कुछ घंटों से सोशल मीडिया पर खबरें वायरल हैं कि पूव मुख्यमंत्री कमलनाथ भाजपा में शामिल हो सकते हैं। यह कथन अपने आप में आश्चर्यजनक है, लेकिन बीते कुछ हफ़्तों में ऐसे राजनैतिक समीकरण बने हैं कि कल को अगर कमलनाथ ये फैसला ले भी लें, तो कोई ताज्जुब की बात नहीं है। इन सभी खबरों और क़यासों की पड़ताल आइए इस खास रिपोर्ट में करते हैं।
इस बात को स्वीकार करने में कोई दो राय नहीं है कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के चलते राहुल-सोनिया गांधी और कमलनाथ के बीच तकरार तो हुई है। चुनाव के बाद की समीक्षा बैठकों में प्रेमचंद गुड्डू जैसे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने कमलनाथ पर बीजेपी से साँठगांठ करने जैसे गंभीर आरोप भी लगाए थे। इन सबके बाद कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया और कमान संभाली युवा जीतू पटवारी ने। कमलनाथ को नेता प्रतिपक्ष तक नहीं बनाया गया।
कांग्रेस से जुड़े सूत्रों की मानें तो कमलनाथ का राज्यसभा जाने का मन भी था। लेकिन, पार्टी आलाकमान ये नहीं होने देना चाहती थी। सिंधिया के जाने के बाद से ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस का प्रभाव कमजोर हो रहा था। इसलिए, अशोक सिंह को राज्यसभा भेजकर पार्टी ने उन्हें प्रोत्साहन दिया है। इस हिसाब से देखा जाए तो फिलहाल मध्यप्रदेश की राजनीति में कमलनाथ का कोई स्थान नहीं है। इसलिए, वे लगातार दिल्ली जाने की कवायदों में लगे हुए हैं।
कमलनाथ की कांग्रेस के प्रति नाराज़गी सामने निकलकर तो नहीं आई है। भाजपा में जाने की बातों को वे हमेशा सिरे से नकारते आए हैं। लेकिन, पिछले महीने जब कांग्रेस ने राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में सम्मिलित होने का विरोध किया था, तब कमलनाथ ने राम मंदिर का समर्थन किया था। वे अयोध्या तो नहीं गए, लेकिन उन्होंने सैंकड़ों राम नाम लिखकर अयोध्या भिजवाए।
अब सवाल ये उठता है कि विधानसभा चुनावों में जिस नेता के खिलाफ भाजपा का पूरा कैम्पैन चला, जिसे ‘करप्शननाथ’ तक कहकर संबोधित किया गया, क्या उस नेता को भाजपा अपने साथ शामिल करेगी। इसके जवाब में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने तो कहा है कि जो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और भाजपा की नीतियों से प्रभावित है, वह भाजपा में आ सकता है। पूर्व सांसद सुमित्रा महाजन ने भी कहा कि कमलनाथ श्री राम की नाम लें और भाजपा में आ जाएं। हालांकि, नगरीय विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने साफ तौर पर कह दिया है कि कमलनाथ की बीजेपी में कोई जगह नहीं है। पीएम मोदी इस समय जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं, उससे यह साफ है कि वे विपक्ष के हर उस नेता को अपने साथ लाने के लिए तैयार हैं, जिसकी जमीनी स्तर पर पकड़ मजबूत हो या जिसका अपना वजूद हो। उदाहरण के लिए नीतीश कुमार, अजित पँवार, एकनाथ शिंदे और अशोक चव्हाण को गिना जा सकता है। कमलनाथ लगभग 50 साल से राजनीति में सक्रिय हैं। लोकसभा व विधानसभा दोनों का अनुभव रखते हैं। ऐसे में अगर वे भाजपा में आते हैं, तो भाजपा को फायदा ही होगा।
फायदा क्या होगा? ये भी जान लेते हैं। दरअसल, बीजेपी की लहर के बाद भी छिंदवाड़ा लोकसभा सीट और छिंदवाड़ा की सभी विधानसभा सीटें केवल कमलनाथ की वजह से ही अब तक कांग्रेस के कब्जे में हैं। अगर वे भाजपा में आ जाते हैं, तो बीजेपी 29 में से 29 लोकसभा सीटें जीतने का अपना संकल्प पूरा करने में सफल हो सकती है।