मध्यप्रदेश की राजनीति विंध्य क्षेत्र के बिना पूरी नहीं हो सकती। विंध्य ने प्रदेश को मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और कई मंत्री दिए हैं। विंध्य की सियासत का गढ़ रीवा माना जाता है। रीवा प्रसिद्ध है अपने जीआई टैग प्राप्त दसहरी आमों, सुपारी के खिलौनों के व्यापार और सफेद शेर के लिए। वर्तमान में मध्यप्रदेश के उप-मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला भी रीवा विधानसभा सीट से ही चुनकर आते हैं। विरासत के साथ-साथ रीवा की राजनीति भी बड़ी रोचक रही है। इस सीट पर कांग्रेस पिछले 24 सालों से जीत तलाश रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इस सीट से वर्तमान सांसद जनार्दन मिश्रा पर फिर से भरोसा जताया है, वहीं कांग्रेस ने सिमरिया से विधायक रहीं नीलम मिश्रा को टिकट दिया है। रीवा में दूसरे चरण के तहत 26 अप्रैल को मतदान है। तो वोटिंग के एक हफ्ते पूर्व आइए रीवा लोकसभा सीट की कहानी आपको सुना देते हैं। साथ ही जानते हैं कि इस बार किसका पलड़ा भारी है..
रीवा लोकसभा सीट पर जातिगत समीकरण सबसे ज्यादा हावी है। इस सीट पर 34 फीसदी ब्राह्मण और 25 फीसदी ओबीसी वोटर निर्णायक साबित होते हैं। इसके अलावा 17% दलित और 12% आदिवासी हैं, जिनमें मुख्यतः कोल जनजाति के वोटर शामिल हैं। पिछले 3 चुनावों से यहाँ के वोटिंग प्रतिशत में भारी इज़ाफ़ा देखने को मिला है। रीवा में वोटरों की कुल संख्या 18 लाख 45 हजार 102 है।
माना जा रहा है कि रीवा सीट पर भारतीय जनता पार्टी को ‘अपर हेंड’ प्राप्त है। इसके एक नहीं कई कारण है। पहला ये कि रीवा से भाजपा प्रत्याशी और वर्तमान सांसद जनार्दन मिश्रा 2019 लोकसभा चुनाव में सवा 3 लाख वोटों से जीते थे। दूसरा हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने क्षेत्र की 8 में से 7 सीटों पर जीत दर्ज की थी। तीसरा कि ये पहला चुनाव है, जब रीवा का ‘सफ़ेद शेर’ कांग्रेस के साथ नहीं है। अब ये सफ़ेद शेर क्या है? और कांग्रेस की जीत में इसका क्या रोल हो सकता था, आइए जानते हैं..
दरअसल, ये पहचान विंध्य की राजनीति में धाक रखने वाले तिवारी परिवार के साथ जुड़ी है। 1991 में कांग्रेस ने यहां विंध्य के सफेद शेर के नाम से प्रसिद्ध श्रीनिवास तिवारी को टिकट दिया, उन्हें बसपा के भीम सिंह पटेल के हाथों हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद वर्ष 1999 में श्रीनिवास तिवारी के बेटे सुंदरलाल तिवारी ने चुनाव जीता। वे 2004, 2009, 2014 में चुनाव लड़े लेकिन हार गए। 2019 में सुंदलाल तिवारी के निधन के बाद उनके बेटे सिद्धार्थ तिवारी को टिकट दिया गया, लेकिन इस बार भी कांग्रेस को हार मिली। सिद्धार्थ विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा में शामिल हो गए और रीवा की त्योंथर विधानसभा सीट से विधायक बन गए। यानी यहां का रसूखदार तिवारी परिवार कांग्रेस से अलग हो गया है। इसलिए ‘सफेद शेर’ के बिना रीवा में कांग्रेस का यह पहला चुनाव है।
चौथा और अंतिम कारण ये कि कांग्रेस इस सीट पर दल बदलने वाले नेताओं से भी परेशान है। पूर्व सांसद देवराज पटेल, जिला पंचायत सदस्य पूर्णिमा तिवारी, जिला सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष रमाशंकर मिश्रा सहित कांग्रेस के कई कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो गए हैं। चुनाव में पूर्व राज्यसभा सांसद राजमणि पटेल भी नज़र नहीं आ रहे हैं। और तो और रीवा नगर निगम के कई पार्षद सीधे तौर पर कांग्रेस प्रत्याशी नीलम मिश्रा के विरोध में आ गए हैं। नीलम मिश्रा पूर्व में सिमरिया से विधायक रही हैं। वर्तमान में सिमरिया से उनके पति अभय मिश्रा विधायक हैं, जो चुनाव प्रचार में उन्हें अच्छा सहयोग दे रहे हैं। लेकिन, नीलम मिश्रा की भी अपनी मुश्किलें हैं। हाल ही में चुनाव आयोग ने उन्हें चुनाव खर्च के विवरण में कमियाँ पाए जाने पर नोटिस भेजा है।
इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी भी अपना प्रत्याशी उतारती है। इस बार बसपा ने फिर से अभिषेक पटेल को टिकट दिया है, जिन्हें 2019 में 8.9 प्रतिशत वोट मिले थे। पिछले तीन चुनावों में बसपा के वोटिंग प्रतिशत में गिरावट आई है। वरना 2014 में बसपा को 21.15 वोट मिले थे। वहीं 2009 में सर्वाधिक 28.49 प्रतिशत वोट मिले थे। 19 अप्रैल को मायावती ने बसपा प्रत्याशी अभिषेक पटेल के समर्थन में सभा की, जिसमें उन्होंने भाजपा-कांग्रेस दोनों पार्टियों पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस व भाजपा ने अपना सबसे ज्यादा समय देश हित के बजाय देश के धन्नासेठों और पूंजीपतियों को मालामाल बनाने में लगाया।
भाजपा के जनार्दन मिश्रा की ओर से प्रचार करने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आए। उन्होंने चुनाव के पहले मध्यप्रदेश से नदारद कांग्रेस के शीर्ष नेताओं पर तंज कसा। शिवराज ने मऊगंज में कहा कि सोनिया गांधी चुनाव छोड़कर भाग गईं। शिवराज ने राहुल गांधी को भी रणछोड़दास कहा। इसके पहले केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी रीवा में चुनावी सभा कर चुके हैं। कांग्रेस की ओर से मोर्चा संभाला है प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और राज्यसभा सांसद विवेक तनखा ने।
स्थानीय लोगों का कहना है कि रीवा में कांग्रेस हथियार डाल चुकी है। यही वजह है कि अब तक कांग्रेस आलाकमान से कोई बड़ा चेहरा क्षेत्र में प्रचार करने नहीं आया। हालांकि एक अन्य चेहरा जरूर है, जो कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने का कार्य कर सकता है। वह है ‘एमपी में का बा’ और ‘यूपी में का बा’ जैसे गीतों से ख्याति प्राप्त करने वाली लोक गायिका नेहा सिंह राठौर। नेहा अपने गीत ‘रीवा में का बा’ के चलते चर्चाओं में है, जिसमें उन्होंने रीवा के स्थानीय मुद्दों को लेकर सरकार पर निशाना साधा है। इस वीडियो को एमपी कांग्रेस, रीवा कांग्रेस सेवादल, रीवा यूथ कांग्रेस आदि के एक्स अकाउंट से शेयर भी किया गया है।
कांग्रेस रीवा के 12% आदिवासी, 17% दलित वोटों और किसानों को अपना मानकर चल रही है। वहीं भाजपा पिछली सभी चुनावी जीतों से बने मजबूत संगठन का फायदा उठाकर हर तरफ से प्रचार करने में लगी हुई है। हालिया विधानसभा चुनाव में रीवा ने भाजपा को 8 में से 7 सीटें दें, जिसके बदले में भाजपा ने रीवा विधायक राजेंद्र शुक्ला को उप-मुख्यमंत्री बना दिया। इसे लेकर भी रीवा वासियों में भाजपा के प्रति सकारात्मक रवैया है कि पार्टी क्षेत्र के नेताओं को स्थान देती है।
बहरहाल, भाजपा के जनार्दन मिश्रा, कांग्रेस की नीलम मिश्रा और बसपा के अभिषेक पटेल समेत रीवा लोकसभा सीट के 14 उम्मीदवारों की किस्मत क्षेत्र के 18 लाख से अधिक मतदाताओं के हाथ में है, जो 26 अप्रैल को वोट डालेंगे।