समाज को एकजुट और संगठित करने से लेकर भारतीय संस्कृति और नागरिक समाज को बढ़ावा देने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर केंद्रीय सरकार ने सरकारी अधिकारियों पर लगी रोक को 58 साल बाद पूर्ण रूप से हटा दिया है। इंदौर प्रशासनिक हाई कोर्ट ने इस विषय पर विस्तृत आदेश जारी किया है, जिससे फिर से कोई संशोधन की गुंजाइश न हों।
पहले संघ की गतिविधियों में हिस्सा लेने पर दंड का प्रावधान था।कोर्ट में रिटायर्ड कर्मचारी पुरुषोत्तम गुप्ता ने ये याचिका लगाई थी।इस पर प्रशासनिक जज एसए धर्माधिकारी और जस्टिस गजेंद्र सिंह ने कहा कि केंद्र ग्रह विभाग ने इस पर सर्कुलर में संशोधन किया था लेकिन अब इसे विस्तृत आदेश के रूप में जारी किया है ताकि बाद में कोई संशोधन नहीं किया जा सकें।
याचिका में उल्लेख किया था कि रिटायर होने के बाद बचा हुआ जीवन संगठन को समर्पित करना चाहते हैं, लेकिन रोक की वजह से नहीं कर पा रहे हैं। हाई कोर्ट ने केंद्र को जवाब देने कई बार समय दिया, लेकिन जवाब पेश नहीं हो रहा था। आखिर में हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए केंद्रीय गृह सचिव को वर्चुअली हाई कोर्ट में उपस्थित होकर जवाब देने को कहा था।
कोर्ट ने कहा कि अफसोस की बात है कि केंद्र सरकार को अपनी गलती का अहसास होने में 5 दशक लग गए कि उसने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) को गलत तरीके से ऐसे प्रतिबंधित संगठन की सूची में रखा था। इस संशोधन से कई केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों की देश सेवा की आकांक्षाएं पुनर्जीवित होंगी। सरकार ने संबंधित सर्कुलर को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर डालने और जनसंपर्क विभाग के माध्यम से देशभर में प्रचारित करने का निर्णय लिया है। अब सरकारी कर्मचारी अपनी सेवा समाप्ति के बाद आरएसएस में शामिल हो सकते हैं। यह कदम कर्मचारियों के बीच देशभक्ति और सेवा भावना को प्रोत्साहित करेगा।