मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव के लिए माहौल बनना शुरू हो गया है। यूं तो प्रदेश में 29 सीटें हैं। लेकिन इस बार सभी पार्टियों और उनके बड़े नेताओं का फोकस सिर्फ एक ही सीट पर आकर टिक गया है। ये सीट और कोई नहीं बल्कि कमलनाथ का गढ़ कही जाने वाली छिंदवाड़ा सीट ही है। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रदेश की 28 सीटों पर जीत हासिल की, बस छिंदवाड़ा नहीं जीत पाई। अबके बीजेपी इस सीट को फतह करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही। वहीं कांग्रेस भी अपने गढ़ को बचाने में जी-जान झोंके हुए है।
चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद से ही इस सीट पर खासी उथल-पुथल मची हुई है। आदिवासियों का हितैषी कौन है? छिंदवाड़ा के लिए किसने क्या किया और कौन छिंदवाड़ा की जनता का सच्चा सेवक है? यही बताने की जद्दोजहद हर ओर मची हुई है। इस खास रिपोर्ट में सब कुछ जानेंगे और साथ ही पता लगाएंगे कि आखिर क्यों दोनों पार्टियों के लिए इतनी ज़रूरी रही है छिंदवाड़ा लोकसभा सीट?
कहने को यह आदिवासी बहुल इलाका है और पिछले 27 वर्षों से कांग्रेस के पाले में है। आखिरी बार बीजेपी इस सीट पर 1997 में जीती थी, जब सुंदर लाल पटवा सांसद बने थे। उसके बाद से आज तक के सभी चुनावों में पिता पुत्र कमलनाथ और नकुलनाथ ने ही बाज़ी मारी है। इसकी वजह जब छिंदवाड़ा के लोगों से पूछी गई, तो उन्होंने कहा कि क्षेत्र की जनता का कमलनाथ और उनके परिवार के साथ भावात्मक संबंध जुड़ा हुआ है। इसलिए देश और प्रदेश की हवा जो भी हो, छिंदवाड़ा की जनता कांग्रेस का ही बटन दबाती है।
इस भावात्मक संबंध की याद दिलाने के लिए कमलनाथ कई बार भावात्मक बयान भी देते रहते हैं। जैसा कुछ दिनों पहले दिया था, पांढुर्ना में आयोजित एक सभा में। कमलनाथ ने कहा था कि “भाजपा वाले आपसे बहुत सी बातें करेंगे, लेकिन मैं जनता हूँ कि काम कैसे कराया जाता है। मैं यह विश्वास दिलाता हूँ कि आपका कोई काम नहीं रुकेगा। मैं आखिरी सांस तक आपकी सेवा करता रहूँगा।” ऐसा ही एक भावात्मक संबंध कुछ हफ्तों पूर्व छिंदवाड़ा के खेतों में भी देखा गया, जब कमलनाथ की बहू प्रिया नाथ महिलाओं के बीच वोटों की फसल बोने पहुंची थीं।
लेकिन, इस बार यह सीट बचा पाना कमलनाथ के लिए आसान नहीं होने वाला। प्रदेश के अखबारों में आए दिन ये खबरें नियमित रूप से छपने लगी हैं कि कांग्रेस के किसी नेता ने बीजेपी की सदस्यता ली। इस फेहरिस्त में अब अमरवाड़ा से विधायक कमलेश शाह और महापौर विक्रम अहके का नाम भी जुड़ गया है। इस पर कमलनाथ ने बीजेपी पर छिंदवाड़ा को रणभूमि बनाने और कांग्रेस नेताओं को डराने-धमकाने जैसे गंभीर आरोप भी लगाए हैं। तो वहीं कमलनाथ पुत्र और छिंदवाड़ा से सासद नकुलनाथ कहते हैं कि मणिपुर से सीधी तक भाजपा आदिवासियों के साथ अत्याचार कर रही है। बीजेपी आदिवासियों का आरक्षण भी छीनना चाहती है।
इसके जवाब में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि नकुलनाथ ने छिंदवाड़ा के आदिवासी भाइयों का अपमान किया है। गोंड समाज के विधायक कमलेश शाह को बेईमान और गद्दार बोलना उन्हें शोभा नहीं देता। वहीं बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कहना है कि छिंदवाड़ा में कमलनाथ एक्सपोस हो गए हैं। आयकर विभाग की रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस कार्यालय से लेकर कमलनाथ आवास तक सब कुछ भ्रष्टाचार में लिप्त है।
इस बात में कोई संदेह नहीं कि छिंदवाड़ा लोकसभा चुनाव 2024 में मध्यप्रदेश की रणभूमि बन चुका है। यह बात आने वाले दिनों में और साफ होती नज़र आने लगेगी। बहरहाल, इस बार भी कांग्रेस ने छिंदवाड़ा से नकुलनाथ को ही मैदान में उतारा है। 700 करोड़ की संपत्ति घोषित करने वाले नकुलनाथ का छिंदवाड़ा में वजन तो बहुत है। इस बात का सबूत जनता को हाल ही में हुई कमलनाथ की नामांकन रैली में दिखा, जहां वे हजारों कार्यकर्ताओं की भीड़ को लेकर पर्चा दाखिल करने पहुंचे।
दूसरी और भाजपा ने किसी बड़े चेहरे को न लाते हुए छिंदवाड़ा के ही भाजपा अध्यक्ष विवेक बंटी साहू को टिकट दिया है, जो अपनी जीत को लेकर खासे आश्वस्त नज़र आ रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में छिंदवाड़ा सीट से नकुलनाथ ही जीते थे और वोटों का अंतर था साढ़े 5 लाख का। अब इस बार देखना ये होगा कि छिंदवाड़ा में कमलनाथ का विश्वास रंग लाएगा या भारतीय जनता पार्टी का चौतरफा अटैक।