काव्या धाकड़, मध्यप्रदेश के अखबारों-न्यूज़ चैनलों के लिए ये नाम जाना पहचाना है। बेशक! आपमें से भी कई लोगों ने सुना होगा। कहने को तो ये लड़की एक 20 साल की स्टूडेंट है। लेकिन, इसने अपने फ़र्ज़ी अपहरण कांड में दो मुख्यमंत्रियों, दो राज्यों की पुलिस और एक केंद्रीय मंत्री तक को उलझा दिया। विदेश जाने के लिए पैसों की व्यवस्था करने का ऐसा तरीका ढूंढा, जिससे हड़कंप मच गया। आखिरकार, इस पूरे घटनाक्रम के मुख्य आरोपी पुलिस के साथ लग गए हैं। इंदौर क्राइम ब्रांच ने अपना ही अपहरण करवाकर पिता से 30 लाख रुपए की फिरौती मांगने वाली काव्या धाकड़ और उसके दोस्त हर्षित को पकड़ लिया है। आइए विस्तार से जानते हैं ये पूरा मामला आखिर है क्या? इसकी शुरुआत कैसे हुआ और क्या वजह रही, जो 20 साल की लड़की करवाना पड़ा अपना ही किडनैप..
इंदौर पुलिस के एडिशनल डीसीपी राजेश दंडोतिया की माने तो दोनों को इंदौर के देवगुराड़िया की शिवाजी वाटिका से पकड़ा गया। तहकीकात के सिलसिले में जब कोटा पुलिस इंदौर आई, तो काव्या हर्षित के साथ अमृतसर के गोल्डन टेंपल चली गई थी। पैसों की कमी की वजह से दोनों गुरुद्वारे में रहे। वे पकड़े जाने के दो दिन पहले ही इंदौर आए, और शिवाजी वाटिका में किराए का कमरा लेकर रह रहे थे। दोनों के इंदौर में होने की सूचना इंदौर पुलिस को एक मुखबिर ने दी। इंदौर क्राइम ब्रांच ने तुरंत जाकर दोनों को पकड़ा और कोटा पुलिस को भी इस बात की सूचना दे दी। अब कोटा पुलिस किसी भी समय आकर उन्हें यहाँ से ले जा सकती है।
ये कहानी शुरू हुई थी 18 मार्च को, जब कोटा में नर्सिंग की पढ़ाई कर रही, बैराड़ (शिवपुरी) की रहने वाली काव्या धाकड़ की कुछ तस्वीरें सामने आईं। एक अन-नोन नंबर से यह तस्वीरें काव्या के पिता रघुवीर धाकड़ को भेजी गईं थीं। इन तस्वीरों में काव्या के हाथ-पैर बंधे हुए थे और मुँह पर पट्टी बंधी हुई थी। तस्वीर भेजने वाले ने 30 लाख रुपयों की फिरौती भी मांगी। मध्यप्रदेश और राजस्थान की पुलिस फ़ौरन इस मामले की तफ़तीश में लग गई। शिवपुरी में धाकड़ समाज का खासा प्रभाव है और माहौल तो चुनावी है ही। इस वजह से मामले में ज्योतिरादित्य सिंधिया को दखलअंदाज़ी करनी पड़ी। मंत्री सिंधिया ने राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा को फोन मिलाया और जल्द से जल्द काव्या को ढूँढने को कहा।
लेकिन, इस फ़र्ज़ी अपहरण की कहानी कोटा नहीं, बल्कि इंदौर में ही रची जा रही थी। काव्या हर्षित के साथ पिपलिया राव के सिमरन पीजी हॉस्टल आई, जहां हर्षित का दोस्त बृजेन्द्र रहता था। यहाँ तीनों ने मिलकर फ़र्ज़ी अपहरण की कहानी गढ़ी। फिर काव्या और हर्षित कोटा वापस चले गए। हॉस्टल वार्डन के अनुसार काव्या पेपर देने के बहाने से इंदौर आई, 2 दिन के लिए कमरा लिया, लेकिन 3 घंटे में ही कमरा छोड़ कर चली गई।
पुलिस ने बताया कि काव्या ये बात जानती थी कि शिवपुरी में उसके पिता की ज़मीन 54 लाख रुपए में बिकी है और ये रकम दो हिस्सों में आने वाली थी। इसका मतलब जल्द ही उसके पिता के पास 27 लाख रुपए आने वाले थे। इस बात को ध्यान में रखते हुए ही उसने 30 लाख रुपए फिरौती में मांगे। वह ये पैसे लेकर रूस भाग जाना चाहती थी।
इस बात को समझा जाए कि इस लड़की का कोई पुराना आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। इसने पूर्व में इस तरह के कार्य करने की कोई ट्रैनिंग नहीं ली और न ही ये किसी गिरोह का हिस्सा है। लेकिन, फिर भी शिवपुरी में जन्मी, कोटा में नर्सिंग की पढ़ाई कर रही इस 20 वर्षीय छात्रा ने फ़र्ज़ी अपहरण की ऐसी कहानी रची कि असलियत पता लगाने में पुलिस के भी पसीने छूट गए।
इंदौर के मनोवैज्ञानिक पवन राठी ने कुछ कारण बताए, जिनकी वजह से काव्या ने इस घटना को अंजाम दिया। उन्होंने कहा कि काव्या के अपने परिवार से संबंध अच्छे नहीं थे। माता-पिता को जानकारी ही नहीं रहती थी कि बेटी कहाँ है, कैसी है और किसके साथ है। परिवार को इस बात की ख़बर भी नहीं थी कि काव्या 7-8 महीनों से कोटा छोड़ इंदौर में रह रही थी। काव्या अपने मन की बातें भी अपनी परिवार को नहीं बताती थी। कम उम्र में ही अपने निर्णय स्वयं लेने लगी थी और अपने जीवन में किसी तरह की दखलअंदाज़ी बर्दाश्त नहीं करती थी। ऊपर से उसे नशे की लत भी लग गई थी। पढ़ाई में मन न लगने के कारण वह अपना काफ़ी समय सोशल मीडिया को ही देती थी। अपना अपहरण करने में भी उसे सोशल मीडिया और इंटरनेट से काफ़ी मदद मिली।
मनोरोग विशेषज्ञ इसे एक तरह का एडोलसेंट क्राइसिस भी मानते हैं। इसका मतलब ये कि कई बार बच्चे समझ नहीं पाते कि वे क्या कर रहे हैं। उन्हें घर में खुशी नहीं मिलती। धीरे-धीरे वे अंतर मुखी हो जाते हैं और बाहर की चीज़ों में खुशी ढूँढने लगते हैं। बहरहाल, काव्या धाकड़ के इस केस से माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश को लेकर कई चीज़ें सीख सकते हैं।