हिन्दू संस्कृति में नारी की पूजा और नारी द्वारा पूजा का बहुत महत्व है। कहा जाता है कि नारी को वरदान प्राप्त है कि वे सच्चे मन से जो भी मनोकामना करेगी ईश्वर उसे पूर्ण करेगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार सावित्री इसकी श्रेष्ठ उदाहरण है जिन्होंने यमराज से अपने पति के प्राणों को लेकर आने का साहस किया था। हिन्दू संस्कृति में महिलाएं परिवार की धुरी होती है। वे अपने परिवार को एक-दूसरे से स्नेह सूत्र में पिरोकर रखती है। ऐसे में उनके द्वारा की गई मनोकामना का प्रतिफल अधिक लाभकारी होता है। अनेक त्यौहार ऐसे हैं जिसमें महिलाएं अपने परिवार के लिए कुशल कामनाएं करती है। ऐसा ही एक त्यौहार है करवाचौथ जो वैवाहिक महिलाओं का एक विशेष पर्व है।
क्यों मनाया जाता है करवा चौथ
करवा चौथ प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। महिलाएं अपने पति के अच्छे स्वास्थ, परिवार के सुख-समृद्धि और सभी के दीर्घायु जीवन की मनोकामना के लिए यह व्रत करती है। इससे उनके वैवाहिक जीवन में प्रेम बढ़ता है। यह त्यौहार परिवार के मधुर संबंधों को बढ़ाता है। इस दिन महिलाएं पूरे दिन बिना अन्न और जल के रहती हैं और शाम को चंद्रमा का पूजन करके अपने पति और परिवार के लिए मंगलकामना करती है, जिसके बाद वे अपने पति के हाथों से पानी पीकर अपना व्रत खोलती है। महिलाएं अपना व्रत मिट्टी के बने लौटे जैसे पात्र से पानी पीकर खोलती हैं, इस पात्र को करवा कहा जाता है।
कब मनाई जाएगी करावा चौथ, मुहूर्त और समय जानिए
इस वर्ष 20 तारीख को कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी है। कालगणना और तिथि के अनुसार चतुर्थी सुबह 6 बजकर 46 मिनट से 21 अक्टूबर को सुबह 4 बजकर 16 मिनट तक रहेगी। वहीं करवा चौथ का व्रत खोलने और पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 46 मिनट से शाम 7 बजकर 2 मिनट तक रहेगा।
करवा चौथ का महत्व जानने के लिए अनेक व्रत कथाएं हैं जिनका महिलाएं इस दिन अनिवार्यता से पाठ करती हैं। उन्हीं में से एक व्रत कथा यहाँ पढ़िए –
प्राचीन काल एक द्विज नामक ब्राह्मण के 7 पुत्र और एक वीरावती नाम की कन्या थी। वीरवती नाम की एक सुंदर और धर्मनिष्ठ राजकुमारी थी। वह अपने सात भाइयों की इकलौती बहन थी। विवाह के बाद, वीरवती ने पहली बार अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। उसने दिनभर अन्न-जल ग्रहण नहीं किया और पूरी श्रद्धा के साथ व्रत का पालन किया। लेकिन दिन ढलते-ढलते भूख और प्यास के कारण वह अत्यधिक कमजोर हो गई। वीरवती की यह दशा देखकर उसके भाई चिंतित हो गए। वे अपनी बहन की हालत देखकर दुखी हो गए और उसे व्रत तोड़ने के लिए मनाने लगे, लेकिन वीरवती ने कहा कि जब तक चंद्रमा उदित नहीं होता, वह व्रत नहीं तोड़ेगी।
वीरवती के भाइयों ने अपनी बहन की हालत देखकर एक उपाय सोचा। उन्होंने पेड़ की आड़ में छल से एक दर्पण का उपयोग करके नकली चंद्रमा बना दिया। भाइयों ने वीरवती से कहा कि चंद्रमा निकल आया है और उसे देखकर व्रत तोड़ लो। वीरवती ने वह नकली चंद्रमा देखकर व्रत तोड़ दिया और जल ग्रहण कर लिया। जैसे ही उसने व्रत तोड़ा, उसे यह सूचना मिली कि उसका पति गंभीर रूप से बीमार हो गया है।
वीरवती को तुरंत आभास हुआ कि उसने चंद्रमा की पूजा किए बिना और सही समय से पहले व्रत तोड़ दिया, जिसके कारण यह अनहोनी हुई। वह अत्यधिक दुखी हुई और पश्चाताप करने लगी। अपने पति की लंबी आयु के लिए वीरवती ने दृढ़ संकल्प किया और पूरी श्रद्धा के साथ करवा चौथ का व्रत फिर से रखा। उसकी भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उसे आशीर्वाद दिया और उसका पति स्वस्थ हो गया।