11 दिसंबर 2023 के दिन भोपाल में भारतीय जनता पार्टी की एक बड़ी बैठक होती है। विधानसभा चुनावों में ऐतिहासिक जीत के सप्ताह भर बाद बुलाई गई इस बैठक में मध्यप्रदेश के नए सीएम के नाम की घोषणा होनी थी। पूर्व सीएम शिवराज माइक पर कहते हैं कि “मैं नए मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. मोहन यादव के नाम का प्रस्ताव रखता हूँ।” ये सुनते ही पूरा सदन तालियों से गूंज उठता है। कई लोग अचंभित भी होते हैं, क्योंकि भाजपा की जीत के बाद मुख्यमंत्री पद की दावेदारी में प्रह्लाद पटेल, नरेंद्र सिंह तोमर और कैलाश विजयवर्गीय जैसे नाम आगे चल रहे थे। शिवराज सीएम नहीं होंगे, ये तो सब जानते थे। लेकिन, उज्जैन दक्षिण से विधायक और पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव मुख्यमंत्री बनेंगे, इसका किसी को अंदाज़ा तक नहीं था। खुद मोहन यादव को भी नहीं। वो तो पीछे की पंक्ति में बैठे अपने किसी काम मे व्यस्त थे।
खैर, शिवराज सिंह चौहान ने यह घोषणा तो कर दी। लेकिन, उस दिन के डेढ़ महीने बाद भी लगता है कि शिवराज इस घोषणा से संतुष्ट नहीं हैं। शायद सीएम न रहने का दर्द, वे अब तक भुला नहीं पाएं हैं। इसलिए, वे आए दिन सुर्खियों में रहने की कोशिश कर रहे हैं। कभी अपने रिजेक्शन पर बयान देकर, कभी लाड़ली बहनों को गले लगाकर, कभी मोहन सरकार के फैसलों के खिलाफ खड़े होकर तो कभी ट्रेन में भजन गाते हुए वीडियो बनाकर। शिवराज की पीआर टीम आज भी उसी मुस्तैदी के साथ काम में लगी है, जैसे चुनाव के पहले लगी थी। लेकिन, शिवराज की इस बेचैनी का कारण क्या है? सुर्खियों में बने रहकर शिवराज आलाकमान को क्या संदेश देना चाह रहे हैं? शिवराज का भविष्य क्या होगा? और क्या सचमुच भाजपा ने शिवराज को किनारे लगा दिया है? आइए विस्तार से जानते हैं इस खास रिपोर्ट में
रिकॉर्ड 18 सालों तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहने के बाद भी शिवराज संतुष्ट नहीं दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने मोहन यादव को सीएम बनने पर शुभकामनाएं तो दी, लेकिन कहीं न कहीं जिस स्मूथ ट्रांसफर ऑफ पावर की बात की जाती है, वह मध्यप्रदेश में होता दिखाई नहीं दिया। सीएम पद छोड़ते ही अपनी इस कथित असंतुष्टि को जाहिर करते हुए उन्होंने कहा था कि “पार्टी से अपने लिए कुछ मांगने से बेहतर मैं मरना पसंद करूंगा”। उनका वो बयान भी खूब वायरल हुआ, जिसमें उन्होंने सीएम पद छूटने के बाद नेताओं के पोस्टरों से अपना फोटो गायब होने पर आपत्ति जताई थी। फिर उन्होंने कहा कि कभी कभी राजतिलक होते-होते वनवास भी हो जाता है। इतने से भी बात नहीं बनीं, तो युवा दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए उन्होंने ये तक कह दिया कि मैं रिजेक्टेड नहीं हूँ। इसी तारतम्य में शिवराज के पुत्र कार्तिकेय चौहान का बयान भी उल्लेखनीय है, जब उन्होंने कहा था कि “अगर आपके लिए नई सरकार से लड़ना भी पद तो कार्तिकेय तैयार है”।
अब शिवराज रिजेक्टेड हैं या नहीं? इसपर तो कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन, बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व का यह फैसला था कि तीनों राज्यों में नए चहरों को मौका दिया जाए। इसलिए मध्यप्रदेश में मोहन यादव, छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय और राजस्थान में भजनलाल शर्मा जैसे बिल्कुल नए नामों को मौका दिया गया। शिवराज खुद जानते थे कि वे फिर से सीएम नहीं बनेंगे। इसलिए नए सीएम की घोषणा के पूर्व 9 दिसंबर को उन्होंने अपने ट्विटर पर एक फोटो पोस्ट की थी, जिसमें लिखा था – “सभी को राम-राम”। हालांकि, मध्यप्रदेश में भाजपा की जीत में शिवराज सिंह चौहान की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने अनुसूचित जाति-जनजातीय समाज को साधने, महिला वोटों को पूरी तरह अपने पाले में करने, युवाओं को लुभाने और आखिरी के 3 महीनों में लगभग सभी जिलों में जमकर प्रचार करने जैसे सराहनीय कार्य किए हैं। जनजातीय वोटों को लेकर तो शिवराज इतने संवेदनशील थे कि सीधी में जब एक भाजपा कार्यकर्ता ने आदिवासी दशमत रावत के सिर पर पैशाब किया, तो सीएम ने अगले ही दिन दशमत को भोपाल बुलाकर उसके पैर तक धोए। और इसी बदौलत जनजातीय बाहुल्य क्षेत्र मालवा-निमाड़ से भाजपा को 60 में से 48 सीटें मिली।
अब आते हैं शिवराज के सोशल मीडिया पर। शिवराज की पीआर टीम आज भी उसी तरह उनके प्रचार में लगी है, जैसे की वे मुख्यमंत्री ही हों। उनके इंस्टा ट्विटर पर अब भी दिन की 10 से ज्यादा पोस्ट्स डाली जा रही हैं। उनके ऐसे भी कई वीडियो वायरल हुए हैं, जिनमें वे लाड़ली बहनों को गले लगाकर भावुक होते दिख रहे हैं। बहनें ये भी कह रही हैं कि “हमारे भैया के साथ अन्याय हुआ है”। सीएम मोहन द्वारा लाउडस्पीकर बैन की घोषणा से परेशान कुछ बैंड-बाजे वाले, जब शिवराज के पास शिकायत लेकर पहुंचे, तो शिवराज ने उन्हें कहा कि “बजाओ जितना बजाना है, मैं देखता हूँ कौन रोकता है।” एक और वीडियो वायरल हुआ, जहां शिवराज भर्ती परीक्षा के अभ्यर्थियों की मांगें सुन रहे हैं, उनमें से एक अभ्यर्थी कहता है कि ममाजी! आप ही हमारे मुख्यमंत्री हैं। ऐसे वीडियो माहौल बनाते हैं कि शिवराज के मन में अब भी कहीं कोई कसक बाकी रह गई है।
शिवराज का ये दावा “मैं सरकार नहीं पारवार चलता हूँ” कई मायनों में सच भी है। लेकिन, उन्हें ये समझना चाहिए कि वे अब सीएम नहीं हैं। पार्टी उन्हें कोई नया दायित्व सौंपेगी तो बात अलग है। लेकिन, तब तक उन्हें संयम बनाए रखना होगा। ऐसा करके वे सीएम मोहन के सामने भी चुनौतियाँ खड़ी कर रहे हैं। और इसका असर भी होता दिखाई दे रहा है। सीएम मोहन यादव की इंदौर आभार यात्रा में, जब द जर्नलिस्ट की टीम ने महिलाओं से बात की, तो कुछ ने कहा कि हम तो अब भी चाहते हैं कि सीएम शिवराज वापस आ जाएं। हालांकि, ऐसा किसी सूरत में नहीं हो सकता।
सीएम पद छोड़ने के बाद अपनी आगे की जिम्मेदारियों को जानने के लिए शिवराज दिल्ली जाकर बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिले, वहाँ उन्हें दक्षिण भारतीय राज्यों में भाजपा की विकसित भारत संकल्प यात्रा का मोर्चा संभालने का दायित्व सौंपा गया। वरिष्ठ नेता होने के नाते वे चाहते तो भाजपा की दृष्टि से संवेधनशील उन राज्यों में लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी के पक्ष में माहौल बना सकते थे। लेकिन, कुछ दिनों बाद ही शिवराज मध्यप्रदेश लौट आए। यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि शिवराज मध्यप्रदेश के साथ साथ देश के बड़े भाजपा नेताओं की सूचि में गिने जाते हैं। 2014 लोकसभा चुनावों के दौरान लालकृष्ण आडवाणी ने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी से ऊपर शिवराज सिंह चौहान को रखा था। ये भी कहा था कि वे पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपाई जैसे विनम्र हैं।
इसी साल मई में लोकसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। चर्चाएं हैं कि शिवराज को लोकसभा लड़वाकर केंद्र में कोई बड़ा मंत्रालय सौंपा जा सकता है। वे बड़ी कुशलता से नर्मदा घाटी विकास या कृषि मंत्रालय संभाल सकते हैं। वहीं दूसरी ओर शिवराज के ऐसे रवैये से प्रदेश भाजपा और आलाकमान के कई नेताओं में नाराजगी है। अगर ये नाराज़गी ठीक नहीं हुई, तो पार्टी उन्हें कोई नया प्रभार देने के बजाए मार्गदर्शक मंडल में भी डाले जा सकते हैं।