मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से एक बेहद चर्चित सीट है – मंडला। केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते यहाँ से 6 बार के सांसद हैं। क्षेत्र की आबादी का 52% हिस्सा आदिवासियों का है। इसलिए जो उनका दिल जीतता है, वही चुनाव भी जीतता है। कुलस्ते आदिवासी समुदाय से आने वाले सबसे बड़े भाजपाई नेताओं में से एक रहे हैं। पिछले चुनावों के आँकड़े तो कुलस्ते की जीत की ओर ही संकेत कर रहे हैं। लेकिन, कहानी इतनी आसान होती, तो यह सीट चर्चित कैसे कहलाती?
हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में कुलस्ते की हार के बाद समीकरण काफ़ी हद तक बदल गए हैं। तो आइए, इस खास रिपोर्ट में जानते हैं मंडला लोकसभा सीट का पूरा इतिहास। पिछले चुनावों का विश्लेषण भी करेंगे और आपको ये भी बताएंगे कि मंडला की गलियों, नुक्कड़ों और बाज़ारों की जनता ने द जर्नलिस्ट की टीम को क्या बताया।
मंडला लोकसभा सीट की राजनीति 3 चेहरों के आस-पास घूमती है। कांग्रेस के मगरू गनु उइके, मोहनलाल झिकराम और भाजपा के फग्गन सिंह कुलस्ते। उईके ने 1952 से 1971 तक यहाँ कांग्रेस का झंडा फहराया। फिर कुछ वर्षों तक जनता दल के श्यामलाल धुर्वे सांसद रहे। उसके बाद 1980 में फिर कांग्रेस के ही मोहनलाल झिकराम सांसद बने और 4 बार चुनाव जीते। बात पहुंची 1996 में, जब निजी स्कूल के शिक्षक से राजनेता बने फग्गन सिंह कुलस्ते पहली बार सांसद बने। तब से लेकर आज तक यदि 2009 का चुनाव छोड़ दिया जाए, तो लोकसभा चुनावों में मंडला सीट पर निर्विरोध एक ही नाम चलता है और वो है – फग्गन सिंह कुलस्ते।
मंडला सीट ने कुलस्ते को इतनी लोकप्रियता दिलाई कि वे कई बार के केंद्रीय मंत्री भी बने और दो बार भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी। साल दर साल कुलस्ते मंडला और मध्यप्रदेश के अनुसूचित क्षेत्रों में एक आदिवासी हितैषी चेहरे के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब होते चले गए।
हाल ही में हुए मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रह्लाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, राकेश सिंह जैसे बड़े नेताओं को चुनाव लड़वाया। बड़े नेताओं की इस सूची में फग्गन सिंह कुलस्ते का भी नाम शामिल था, जिन्हें मंडला के ही अंतर्गत आने वाली निवास सीट से चुनाव लड़ने की ज़िम्मेदारी दी गई थी। कुलस्ते अपनी जीत को लेकर बेफिक्र थे। वे यह सोचकर रह गए कि जो नेता क्षेत्र से 6 बार का सांसद है, उसे जनता विधायक तो बना ही देगी। स्थानीय लोगों के अनुसार तब कुलस्ते ने प्रचार में भी ज्यादा रुचि नहीं दिखाई। लेकिन, वे ये भूल गए कि निवास पर कांग्रेस पार्टी का 2013 से दबदबा है। लिहाज़ा, कुलस्ते कांग्रेस के चैनसिंह वरकड़े को शिकस्त नहीं दे पाए।
इस हार से ये तथ्य निकलकर सामने आया कि क्षेत्र में कुलस्ते का वर्चस्व कम होता दिखाई दे रहा है। यही वजह है कि जहां एक ओर प्रदेशभर में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत से चुनाव जीता, वहीं मंडला के अंतर्गत आने वाली 8 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस 5 सीटें जीतने में सफल हो गई। लोकसभा चुनाव 2024 में मंडला की जनता का रुख क्या है, यह जानने के लिए द जर्नलिस्ट की चुनावी यात्रा मंडला पहुंची। मंडला के जनसाधारण से बात करके ये बात तो मालूम हुई कि लोगों में कुलस्ते के प्रति नाराज़गी तो है। उनका मानना है कि इस बार अगर वे जीते भी तो प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और भाजपा की लहर के चलते जीतेंगे। और तो और बीजेपी के क्षेत्रीय नेताओं में भी उनके प्रति असंतुष्टि है। वे कहते हैं कि अनुसूचित जनजाति मोर्चा राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री बनने के बाद कुलस्ते की क्षेत्र में आवाजाही ना के बराबर ही रही है। ऐसे में जनता वोट दे भी तो किस आधार पर?
अब आपके मन में ये सवाल आएगा कि क्या आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इस बात का फायदा उठाएगी? चलिए इस बात का जवाब भी जान लेते हैं। दरअसल, कांग्रेस ने इस बार मंडला सीट की कमान डिंडौरी से 3 बार के विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री ओमकार सिंह मरकाम को सौंपी है। मरकाम 2014 में भी कुलस्ते के खिलाफ़ चुनाव लड़ चुके हैं। लेकिन, तब उन्हें हार का मुँह देखना पड़ा था।
कैबिनेट मंत्री और मध्यप्रदेश आदिवासी कांग्रेस के अध्यक्ष होने के बाद भी कई लोग मरकाम को जानते तक नहीं है। इसकी एक वजह ये भी है कि क्षेत्र की ज्यादातर आबादी आदिवासियों के है। आदिवासी समाज में अभी भी शिक्षा का अभाव है और चुनावी प्रक्रिया के बारे में जागरूकता की भी कमी है। वैसे ओमकार सिंह मरकाम की एक आदत बड़ी गज़ब है। लोगों का कहना है कि मरकाम जी सरकार द्वारा करवाए हुए कार्यों के लोकार्पण समारोह में पहुँच जाते हैं और कहते हैं कि ये काम मैंने ही कराया है। इस बात से कई लोग उन्हें बीजेपी का ही समझ बैठते हैं। अन्य उम्मीदवारों की बात करें, तो मंडला से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भी अपना उम्मीदवार उतारती है, लेकिन 4% से ज्यादा वोट हासिल नहीं कर पाती।
सोशल मीडिया अकाउंट बताते हैं कि दोनों प्रत्याशी अपने जनसंपर्क कार्यक्रम के माध्यम से मंडला के अलग-अलग गांवों में जनसभाओं का आयोजन कर रहे हैं। लेकिन, इसके विपरीत मंडला के लोगों ने एक बात ये भी बताई कि इस बार लोकसभा चुनाव को लेकर क्षेत्र में कुछ खास माहौल बनता नज़र नहीं आ रहा। न प्रत्याशियों की सभाएं, न रैलियाँ न कोई अन्य कार्यक्रम। घरों और दुकानों की छतों पर अब तक पार्टियों के झंडे तक नहीं लगे हैं। बहरहाल, लोकसभा चुनाव 2019 में मंडला सीट पर जीत का अंतर 1 लाख वोटों के आस-पास का था। इस बार देखना होगा कि मंडला सीट पर कौन बाज़ी मारता है? 6 बार के सांसद और केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते की विरासत या 2014 की हार के बाद फिर उनके सामने चुनाव लड़ रहे ओमकार सिंह मरकाम