धार्मिक नगरी उज्जैन में एक शब्द को लेकर वैचारिक विमर्श चल रहा है। विमर्श इस विषय पर है कि उज्जैन स्थित विश्वप्रसिद्ध बाबा महाकाल की प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के द्वितीय सोमवार को होने वाले नगर भ्रमण को “शाही सवारी” कहा जाये या “राजसी सवारी” कहा जाये।
विदित हो कि बाबा महाकाल की यह यात्रा वर्ष में एक ही बार आयोजित होती है, बाबा महाकाल को उज्जैन के राजा माना जाता है और वर्ष में एक बार बाबा अपने गर्भगृह से निकलकर प्रजा का हाल जानने निकलते है। भगवान महाकालेश्वर के दर्शन के लिए संपूर्ण देश से लाखों भक्त उनके दर्शन के लिए इस दिन उज्जैन आते है। शासन -प्रशासन और उज्जैनवासियों द्वारा इस यात्रा में आने वाले भक्तों के लिए बड़े स्तर पर व्यवस्थाएँ की जाती है।
इस वर्ष बाबा का यह नगर भ्रमण 2 सितंबर (सोमवार) को होने वाला है, इस नगर भ्रमण को सामान्य बोलचाल की भाषा में “शाही सवारी” कहा जाता है, किंतु इस वर्ष इस सवारी के आगे लगने वाले “शाही” शब्द पर बड़ा विमर्श चल रहा है। विद्वानों का मानना है कि “शाही” शब्द “शहंशाह” या “बादशाह” के लिए उपयोग किया जाता है। इसमें “सामंती” मानसिकता की बू आती है। इसलिए “शाही” सवारी शब्द का उपयोग नहीं करना चाहिये।
विद्वानों का मानना है कि “शाही” के स्थान पर राजसी, अमृत या दिव्य सवारी का उपयोग भी कर सकते है। बाबा महाकाल उज्जैन के राजा है इसलिए “राजसी सवारी” को सर्वाधिक उपयोग माना जा रहा है।
विद्वानों के द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि स्वयं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को इस पहल में अग्रेसर होकर प्रशासनिक दस्तावेजों से शाही शब्द को हटाना चाहिए।
इस वर्ष बाबा महाकाल की सवारी के लिए सोशल मीडिया पर राजसी सवारी भी ट्रेंड कर रहा है, साथ ही समाचार पत्रों में भी राजसी सवारी शब्द का उपयोग किया जा रहा है।
- अमन व्यास
युवा पत्रकार