18 नवंबर को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक फैसले ने देशभर में हलचल मचा दी। योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में हलाल सर्टिफाइड उत्पादों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया। यूपी में अब कोई भी व्यक्ति या संस्था हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट्स बेचती पाई गई, तो उसके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इस फैसले से कई राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय इस्लामिक संगठनों में आक्रोश है, तो वहीं गैर-मुस्लिम यानी हिंदू व सिख धर्म के अनुयानियों ने इस फैसले का स्वागत किया है। इस आक्रोश की वजह क्या है? इसे समझने के लिए आपको ‘हलाल’ का मतलब समझना होगा। हलाल सर्टिफिकेशन के व्यापार और इससे आतंकवादी संगठनों को मिलने वाली फंडिंग को भी समझने होगा। तभी आप समझ पाएंगे कि हलाल पर यूपी सरकार ने प्रतिबंध क्यों लगाया?
हलाल मुस्लिमों में प्रचलित अरबी भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ है – ‘पवित्र’ या ‘स्वीकार्य’. इसके उलट ‘हराम’ शब्द इस्तेमाल किया जाता है। जिसका अर्थ है – ‘अपवित्र’ या ‘अस्वीकार्य’. इसका मतलब मुसलामानों के लिए जो वैध है वह हलाल, जो अवैध है वह हराम। भारतीय परिपेक्ष्य में देखें तो हलाल को महज़ जानवरों को मारने के तरीके के तौर पर देखा जाता है। लेकिन, क़ुरआन के अनुसार हलाल मुस्लिमों के जीवन के प्रत्येक आयाम से जुड़ा हुआ है। जैसे – शिक्षा, सौंदर्य प्रसाधन, सब्जियां, किराने का सामान, बैंकिंग-निवेश व दवाइयां-अस्पताल भी हलाल या हराम हो सकती हैं।
हलाल उत्पादों से बड़ी समस्या इस्लामिक देशों द्वारा दुनियभर के गैर-मुस्लिमों को हलाल प्रोडक्ट्स के उपयोग के लिए प्रेरित करना है और ऐसा एक निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जा रहा है। दरअसल, कई इस्लामिक देशों ने हलाल के इर्द-गिर्द है विश्व-व्यापी अर्थव्यवस्था तैयार की हुई है, जिससे किसी न किसी रूप में इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन और आतंकवाद को आर्थिक सहायता दी जा रही है। इस दावे के सबूतों पर हम आगे प्रकाश डालेंगे।
इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन चाहते हैं कि मुसलामानों में उम्मा की धारणा बनी रहे। उम्मा का अर्थ है अपने देश के संविधान की जगह इस्लामिक तौर-तरीकों व शरीयत को तवज्जो देना। ख्यात इस्लामिक स्कॉलर शोएब जमाई को आपने न्यूज़ चैनलों की डिबेट पर कई बार देखा होगा। उनसे भी जब पूछा कि आपके लिए पहले संविधान या क़ुरआन? तो उनका जवाब क़ुरआन ही था।
उत्तर प्रदेश में हलाल उत्पादों पर प्रतिबंध का फैसला राजधानी लखनऊ के हजरतगंज थाने में भारतीय जनता युवा मोर्चा के एक अधिकारी शैलेंद्र कुमार शर्मा द्वारा दर्ज एक एफआईआर के बाद आया, जिसमें कहा गया है कि कुछ कंपनियां एक ख़ास समुदाय में अपने प्रोडक्ट्स की सेल बढ़ाने के लिए हलाल सर्टिफिकेशन इस्तेमाल कर रही हैं। इसके अगले ही दिन यूपी सरकार ने हलाल उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया और पुलिस ने हलाल सर्टिफिकेशन देने वाली संस्थाओं के ख़िलाफ़ केस दर्ज कर लिया।
अब ये हलाल सर्टिफिकेशन क्या है? हलाल सर्टिफिकेशन यानी प्रामाणित करना कि फलां उत्पाद मुस्लिमों द्वारा उपयोग में लाने योग्य है या नहीं। मांस का उदाहरण लेकर समझा जाए तो हलाल सर्टिफिकेशन के तहत कंपनी को यह जानकारी प्रस्तुत करनी होती है कि मांस किस जानवर का है और उसे मारकर किस तरह से प्रोसेस किया गया है। इस्लाम के अनुसार मांस तो खाया जा सकता है, लेकिन उसमें खून नहीं होना चाहिए। हलाल के तरीके से जानवरों को मारने का मतलब उनकी गर्दन की नस पर कट लगाना, जिससे सारा खून बहकर निकल जाए। इस दौरान एक शोहदा भी पढ़ा जाता है, जिसका मतलब है अल्लाह में यकीन रखना। इसके उलट अन्य धर्मों के लोग झटका मांस या मटन खाते हैं, जिसमें चाक़ू से एक ही वार में जानवर को मार दिया जाता है। वहीं हलाल विधि से मारने पर जानवर तड़प-तड़पकर मरता है, जो अपेक्षाकृत ज्यादा हिंसक तरीका है।
इसी तरह आपने सुना होगा कि कई मुसलमान कैप्सूल खाने से बचते हैं। वजह ये है कि कैप्सूल जिलेटिन से बनते हैं, जिसमें सूअर की चर्बी का इस्तेमाल होता है। इसलिए क्या हलाल है और क्या नहीं, ये बताने के लिए प्रोडक्ट्स पर हलाल का मार्क लगाया जाने लगा। भारत में हलाल सर्टिफिकेशन देने वाली कोई मान्यता प्राप्त संस्था नहीं है, लेकिन कुछ संस्थाएं हैं, जिन्हें कई इस्लामिक देश मान्यता देते हैं कि इस संस्था द्वारा दिया गया सर्टिफिकेट सही ही होगा। ये कंपनियां अपनी वेबसाइटों पर उत्पादों का हलाल के मापदंडों के अनुसार लैब टेस्ट करने का दावा करती हैं। दुनिया की सबसे बड़ी फ़ास्ट-फ़ूड चैंस में से एक McDonald’s ने भी ये माना है कि उसके प्रोडक्ट्स हलाल सर्टिफाइड होते हैं।
दुनिया के सभी देशों में मुसलामानों की आबादी के साथ-साथ हलाल उत्पादों की मांग और हलाल सर्टिफिकेशन देने वाली संस्थाएं भी बढ़ती जा रही है। आज दावत, अमृतांजन, जोमाटो, हल्दीराम, बिकानो नमकीन, गोल्डी मसाले, पराग बेकरी, पार्ले, ब्रिटानिया जैसी कंपनियां हलाल सर्टिफाइड हैं, ताकि इस्लामिक देशों में इन कंपनियों के बनाए उत्पाद बेचे जा सकें भारत में उत्पादों को सर्टिफिकेशन देना गैर-कानूनी और असंवैधानिक दोनों है, क्योंकि हमारे यहाँ खाद्य सामग्री पर प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार सरकार के अंतर्गत आने वाले अन्न सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) और अन्न एवं औषधि प्रशासन (FDA) के ही पास है। भारत समेत अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, जर्मनी, स्विट्ज़रलैंड, फ्रांस जैसे देशों में धड़ल्ले से हलाल सर्टिफाइड उत्पाद बेचे जा रहे हैं, जिनसे कमाई के बड़ा हिस्सा इन हलाल सर्टिफिकेशन वाली संस्थाओं पर जाता है। आइए समझते हैं..
आज की तारीख में हलाल प्रमाण-पत्र जारी करना आय का बहुत बड़ा माध्यम बनता जा रहा है। उदाहरण के तौर पर अगर इस्लामिक फूड एण्ड न्यूट्रिशन कौंसिल ऑफ़ अमेरिका (IFANCA) की बात की जाए, तो इस संस्था ने 17,381,596 अमेरिकी डॉलर की कमाई की। भारत में हलाल प्रमाण पत्र जारी करने वाली सबसे बड़ी संस्था जमियत उलेमा-ए-हिन्द को माना जाता है, जो सैकड़ों कंपनियों को हलाल सर्टिफिकेट देकर हर साल तकरीबन 14 लाख डॉलर की कमाई करती है।
हलाल प्रमाणन संस्थाओं का पैसा आतंकवादी संगठनों की आर्थिक सहायता के लिए किया जाता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है मुंबई पर हुए 26/11 हमले, जिन्हें अंजाम देने के लिए पैसा एक हलाल प्रमाणित बूचड़खाने से इकठ्ठा किया गया था। इस बात का खुलासा लश्कर-ए-तैयबा के एक प्रमुख आतंकी तहव्वुर राणा की गिरफ्तारी के बाद हुआ, जो अमेरिका में एक हलाल प्रमाणित बूचड़खाना चलाकर उससे होने वाली आय लश्कर को भेजता था। इसी तरह 2011 के पुणे बॉम ब्लास्ट और 2010 के बैंगलोर बॉम ब्लास्ट, जिसमें सैंकड़ों भारतियों ने अपनी जानें गंवाई थी। इन दोनों घटनाओं की तफ्तीश के बाद पता चला की पैसा हलाल उत्पाद व्यापार और सर्टिफिकेशन से जुड़े लोग शामिल थे। इसके अलावा 9/11 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले और फिलिस्तीन द्वारा इस्राएल पर हुए कई हमलों के लिए आर्थिक सहायता भी हलाल फंडिंग से ही आई थी।
हलाल उत्पादों के इस्तेमाल को बढ़ावा मिलने के पीछे एक और बड़ा उद्देश्य छुपा हुआ है, जो है दुनिया के सभी देशों पर इस्लाम की हुक़ूमत स्थापित करना। घरेलू उपयोग की वस्तुओं पर हलाल का मार्क होने से हिंदू-सिख व अन्य गैर मुस्लिमों की भावनाएं आहत होती हैं। बात यहाँ तक आ पहुंची है कि सनातन ज्ञान परंपरा के अंग आयुर्वेदिक अस्पतालों पर भी हलाल सर्टिफिकेशन लगाया जा रहा है।
भारत में हलाल की शुरुआत कब हुई, इसके ठोस सबूत मौजूद नहीं हैं। लेकिन, 2008 की UPA सरकार में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग राज्यमंत्री रहे जयराम रमेश ने इसका पाकिस्तान से आयातित वस्तुओं की जानकारी देते हुए हलाल का जिक्र किया था। लेकिन, आज भारत मे भी हलाल को प्रचारित करने के लिए बड़े-बड़े सेमिनारों और एक्सपो आयोजित होने लगे हैं। पहला एक्सपो 18 से 20 जनवरी, 2020 को हुआ था, जिसका उद्घाटन तेलंगाना सरकार के मंत्री टी. श्रीनिवासन ने किया था। मुंबई, बेंगलूरु और हैदराबाद धीरे-धीरे ऐसे आयोजनों का केंद्र बनते जा रहे हैं। हलाल एक्सपो में तुर्की, इंडोनेशिया समेत कई इस्लामिक देशों के स्कॉलर शामिल होते हैं।
हलाल न सिर्फ मानवता के विरुद्ध है, बल्कि गैर मुस्लिम आबादी के अधिकारों का हनन भी है। हलाल की अनदेखी जिहाद और आतंकवाद के वित्तपोषण को बढ़ावा देना है। इस पर देशभर में प्रतिबंध वर्तमान की आवश्यकता है। ऐसा लोकतांत्रिक मूल्यों और हमारी जागरूकता के बूते किया जा सकता है।