इंदौर में ही नहीं बल्कि Dubai के शेखों के बीच भी प्रसिद्ध है यह मिठाई और मिठाईवाला। एक ऐसी दुकान जिसकी शुरुआत तो महू से हुई, लेकिन आज इंदौर में उसके 3 आउटलेट हो चुके है, जहां दूर-दूर से लोग उनकी मिठाई का अतुलनीय स्वाद चखने आते हैं। यह आउटलेट है इंदौर का प्रसिद्ध Bhanwarilal Mithaiwala, जो कई सालों से इंदौर को मिठाइयों खिला रहा है। आज व्यंजनों के क्षेत्र में स्थापित Bhanwarilal Mithaiwala का यह सफर आसान ना था, यह कई वर्षों की कड़ी मेहनत और संघर्षों का मीठा प्रतिफल है। यह मिठाई की दुकान भँवरीलाल जी के नाम पर है जिन्होंने इसे पाई-पाई जोड़कर खड़ा किया था। चलिए जानते हैं इनकी संघर्षों से भरी Motivational Story –
इंदौर से कुछ ही दूरी पर स्थित महू में भँवरीलाल की मुख्य मिठाई की दुकान है जिसके चर्चे दूर-दूर तक हैं और इसका कारण है इनके स्वाद से परिपूर्ण मिठाई जो लोगों को न केवल भारत में लुभा रही है परंतु पूरे विश्व में फेमस है | एक समय ऐसा भी था, जब भँवरीलाल जी कुछ ऐसे समय से भी गुज़रे जब उन्हें कोलकात्ता जाकर मज़दूरी करनी पडी थी।
यह बात है 1930 की, जब भावरीलाल जी राजस्थान के दोसा जिले के एक विराटनगर नाम के गाँव से निकलकर नौकरी की तलाश में खण्डवा पहुंचे थे। यहाँ आकार उन्होंने एक मिठाई की दुकान डालकर अपना गुजारा करना आरंभ किया, परंतु तभी भारी वर्षा की वजह से शक्कर खराब हो गई और उन्हें अपनी यह दुकान मजबूरन बंद करनी पड़ी।
1931 का समय नजदीक था और यह वह समय था जब कलकत्ता में नौकरी मिलना आसान था। इस मौके का फायदा उठाने bhanwarilal कलकत्ता की ओर निकल गए और वहाँ पहुंचकर उन्होंने एक छोटी सी दुकान किराये पर ली और दूध बेचने का कार्य शुरू कर दिया। काम अच्छा चल रहा था, लेकिन किसी वजह से भंवरीलाल की बुआ का देहांत हो गया और वे बुआ के घर यानी महू में 15 दिन के लिए ठहर गए। इसी समय भंवरीलाल की कोलकात्ता वाली दुकान बंद पडी थी, जिसको देख कर दुकान के मालिक ने दुकान किसी और को किराये पर दे दी।
खण्डवा की मिठाई की दुकान के बाद अब यह दूसरी बार था जब उन्हें मजबूरी में दुकान बंद करना पड़ी। अपनी दुर्गति देख भंवरीलाल ने गुजर-बसर करने हेतु कलकत्ता में रहकर मजदूरी करके पैसा कमाना ही सही समझा। जब यह बात महू में रहनेवाले एक रिश्तेदार को पता चली तो उन्होंने भंवरीलाल को महू आकर बताशे बेचने की सलाह दी। जिसके बाद भंवरीलाल जी के एक मिठाई वाले के जीवन के रूप में एक नई यात्रा शुरू हुई। यहां उन्होंने बताशे बेचना शुरू किया, जहां उनकी मुलाकात बालकृष्ण से हुई और दोनों ने मिलकर एक मिठाई की दुकान खोली, जिसका नाम था बालकृष्ण भंवरीलाल मिठाईवाला।
1970 आते-आते उनकी यह दोस्ती भी टूट गई जिससे दुकान आधे-आधे दो हिस्सों में बंट गई। एक तरफ जहां बालकृष्ण की दुकान थी तो वहीं दूसरी ओर भंवरीलाल मिठाई वाले की दुकान। दोनों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा होने लगी। लेकिन इसी समय भंवरीलाल जी के बड़े बेटे ने ऐतिहासिक संकल्प लिया और विवाह ना करके अपना जीवन पिता के व्यवसाय को खड़ा करने के लिए समर्पित कर दिया, जिससे आगे चलकर व्यवसाय को बहुत ऊँचाइयाँ भी मिली। कुछ ही समय में बालकृष्ण भी bhanwarilal जी को दुकान बेचकर चले गए | जिसके बाद bhanwarilal mithaiwala नाम से दुकान ने महू में प्रसिद्धि हासिल की जो धीरे-धीरे इंदौर, आसपास के क्षेत्रों से होते हुए आज देश-विदेश तक पहुँच गई है। आज उनकी तीसरी पीढ़ी इस व्यवसाय को संभाल रही है और इसे ब्रांड बनाने की ओर अग्रसर है। जिसके लिए वे इसकी फ्रेंचाईजी भी खोल रही हैं। आपको बता दें कि आज भंवरीलाल स्वीट्स की 1 फ्रेंचाइजी इंदौर, 2 महू और 1 महू इंदौर आउटर पर स्थित है।
इनकी मिठाई न केवल इंदौर और महू के आसपास के क्षेत्रों में फेमस है बल्कि इनका स्वाद दुबई के शेखों को भी बेहद पसंद आता है। आज यहाँ की मिठाइयों का export अमेरिका जैसे बड़े-बड़े देशों सहित भारत के मुंबई, बैंगलोर, हैदराबाद, दिल्ली जैसे शहरों तक होता है | आपको बता दें कि यहाँ के मक्खनबड़े को विश्व के सबसे स्वादिष्ट मिठाई का अवार्ड भी मिला है | यहां लोगों का जमघट आए दिन लगा ही रहता है। यहाँ तक कि महू में रहते सैनिक जवान भी अपने अन्य साथियों के लिए यहां से मिठाइयां ले जाते है।
यह थी भंवरीलाल मिठाईवाला की संघर्षशील कहानी जो आए दिन लोगों को अच्छे स्वाद के साथ साथ जीवन में कभी हार न मानने का अनुभव भी करवाती है।