हाल में पंकज त्रिपाठी अभिनीत फिल्म अटल बिहारी वाजपेयी रिलीज हुई, यह फिल्म श्रीराम प्राण प्रतिष्ठा के कारण सुर्खियों में कम ही पायी। फिल्म अटल जी के जीवन पर सुन्दर तरीके से बनाई गई है, फिल्म के लिए रिसर्च भी खूब किया गया है और कई वास्तविक दृश्यों (रियल फुटेज) के कारण फिल्म और अधिक जीवंत हो गई है, सबसे अधिक पंकज त्रिपाठी को अटल जी के चारित्र में देखना, अटल जी को पंकज त्रिपाठी ने ऐसा जिया है कि आपको लगेगा, आपके सामने अटल जी ही भाषण कर रहें, कविता सुना रहें है, पोखरण में कलाम साब के साथ परमाणु परीक्षण का निरीक्षण कर रहे है या बस से लाहौर जा रहें है, सबकुछ पूर्णतः जीवंत, पूर्णतः उत्कट और उत्कृष्ट !!!!
किन्तु मैं केवल यहाँ एक फिल्म के बारे में बात नहीं कर रही, मुझे तो यह बात रोमांचित कर रही है कि जब हमने सिनेमाघर में प्रवेश किया तो वहां तीन फिल्मो के पोस्टर लगे थे – अटल बिहारी और राम मंदिर संघर्षगाथा पर आधारित फिल्म ” ६-९-५” और “हनुमान” , एक साथ -एक ही समय पर चल रही तीन आवश्यक और जानकारी देने वाली फिल्म
कुछ बरस पहले जब मन होता था कि बच्छो को कोई फिल्म दिखाए तो दिखा नहीं पाते थे, हमारे समय में तो फिल्म देखना अपराध था, आज भी हम पुराने लोगो से सुनते है कि “हम घर -परिवार से छुपकर फिल्म देखने जाते थे” , इसका कारण था फिल्मो में आते केवल और केवल फूहड़ गाने -दृश्य और संवाद , एक ही तरह की व्यर्थ की कल्पनातीत कहानिया और भारत की संस्कृति को हींन – ढकोसलो से भरी हुई बताने का अंतहीन विमर्श (नैरेटिव)
किन्तु पिछले कुछ वर्षो में सिनेमा जगत में आये परिवर्तन के कारण आज हमारे बच्चो को तान्हाजी मालुसरे जैसे महान देशभक्त के बारे में जानकारी हुई है, उन्हें तान्हाजी की कहानी पता है । हमारे बच्चो को कश्मीर फाइल्स से यह पता चला कि कैसे देश के मूल समाज के लोग अपनी ही जमीन से खदेड़े गए थे। विद्वानों की धरती कश्मीर ( The इंटेलेक्टुअल लैंड ) में कैसे नरसंहार हुआ था और स्वर्ग को नरक बनाया गया था।
केरला स्टोरी ने तो देश में एक अलख सी जगा दी, जो बात माँ -बाप बेटियों को अनेकों प्रयत्नो के बाद भी नहीं समझा सकें वही बात एक फिल्म ने इस देश की बेटियों को तत्क्षण समझा दिया, सुना है कि माँ -बाप बेटियों और बेटो के मुकाबले अधिक दृष्टी रखते थे कि वह फिल्म न देखे , लेकिन केरला स्टोरी को तो माँ -पिता ही अपनी बेटियों को साथ में दिखाने ले गए और साथ ही दिखाई मणिकर्णिका जैसी फिल्म भी, कि तुम्हे बेटा देश के लिए इन्हे प्रेरणा बनाना है।
पिछले दिनों विवेक अग्निहोत्री की निर्देशित फिल्म “The Vaccine War ” आयी थी, जिसने कैसे भारत के डॉक्टर्स और वैज्ञानिकों कोरोना के समय अपनी स्वदेशी वैक्सीन बनाने के लिए अपनी जान पर खेलकर महान कार्य किया और भारत आगे न बढे इसके लिए विदेशो से बानी टूलकिट के आधार पर नेताओ -मीडिया और तथाकथित बुद्धिजियों के एक तंत्र ने षड्यंत्र का भरसक प्रयास किया, किन्तु भारत की जय हुई।
……….और ऐसा भी नही है कि केवल फिल्म में ही यह परिवर्तन आया है बल्कि कला के प्रत्येक क्षेत्र में यह परिवर्तन आ रहा है, राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के समय देश में कितने ही सुंदर -सुन्दर राम भजन बने, १ से २२ जनवरी तक प्रतिदिन इंस्टाग्राम पर लगभग ५ लाख रील्स बनी, कारसेवको के जीवन पर -मंदिर के संघर्ष पर हजारो शार्ट फिल्म -वीडियो -पॉडकास्ट -पोस्टर और क्या -क्या नहीं बने।
पुरखे सही ही कहते थे कि कला मुक्ति का मार्ग है, किन्तु कला ऐसे हाथो में जकड़ गई थी, जिसके कारण कला केवल मनोरंजन और फूहड़ता ही हो गई थी, किन्तु अब कला ही सबको सच दिखा रही है
………ये कार्य अनवरत चलता रहें
डॉ संध्या चौकसे
निदेशक – LNCT समूह