मध्यप्रदेश में मतदान हो चुका है। इस बार मुकाबला इतना करीबी है कि प्रत्याशियों और पार्टियों के साथ जनता भी नहीं जानती कि किसी बनेगी सरकार और कौन करेगा अगले 5 बरस इंतजार। परिणाम तो 3 दिसंबर की शाम को पता चल ही जाएंगे। लेकिन, उसके पहले प्रदेश के विभिन्न सीटों के ग्राउंड जीरो पर उतरकर, गलियों-चौराहों पर लोगों का मत जानते और जनमत-गम्मत करते हुए, वोटिंग के दिन का माहौल और कई मीडिया रिपोर्टों का विश्लेषण करते हुए The Journalist की टीम ने जो देखा वो आपको बताते हैं। एक-एक कर मध्यप्रदेश की सभी सीटों के नतीजों का अनुमान आपको बताएंगे। रिपोर्ट से पहले डिस्क्लेमर बस इतना ही कि ये अनुमान है, अनुभव है – ये सच हों, इनका हम दावा नहीं कर सकते।
मध्यप्रदेश की कुछ विधानसभा सीटें शुरू से ही VVIP बनी हुई हैं। वजह है – उनपर चुनाव लड़ने वाले चेहरे और बनते-बिगड़ते जातिगत समीकरण। ऐसी सीटों में बुरहानपुर सीट का नाम भी आता है। बुरहानपुर सीट की कहानी इतनी सरल नहीं है। यहाँ भाजपा से कैबिनेट मंत्री अर्चना चिटनीस मैदान मे है, कांग्रेस से सुरेंद्र सिंह शेर ने दावेदारी पेश की है। निर्दलीय उम्मीदवार हर्षवर्धन सिंह चौहान भी हैं, जिनके पिता का बड़ा नाम है। इसी के साथ कांग्रेस के मुस्लिम पार्षदों की असंतुष्टि और ओवैसी की पार्टी AIMIM की एंट्री भी है।
बुरहानपुर में लड़ाई केवल भाजपा और कांग्रेस की नहीं है। यह एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। यहाँ की राजनीति में मुस्लिमों का दबदबा इतना है कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस द्वारा मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट न दिए जाने के चलते 23 मुस्लिम पार्षदों ने इस्तीफा दे दिया था। इस आतंरिक गुटबाजी के चलते और बुरहानपुर की मुस्लिम आबादी को देखते हुए ओवैसी ने भी इस सीट से अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया है।
भाजपा प्रत्याशी और पूर्व में कैबिनेट मंत्री अर्चना चिटनीस के हालात इस बार भी वही हैं, जो 2018 चुनावों में थे। हालांकि, कोरोना के समय क्षेत्र में सक्रियता और प्रदीप मिश्रा की कथा के चलते उन्होंने अपनी धाक बनाए रखी है। यही कारण था कि पिछले चुनाव हारने के बाद भाजपा ने उन्हें एक बार फिर मौका दिया। इस बार अर्चना चिटनीस अगर जीतीं भी, तो भाजपा के नाम के चलते जीतेंगी। क्योंकी, अन्य कैबिनेट मंत्रियों की तरह उन्होंने भी चुनाव जीतने के बाद अपने क्षेत्र के विकास पर ध्यान नहीं दिया।
अर्चना चिटनीस की फिर से टिकट मिलने के कारण, जिसे टिकट नहीं मिला, वो हैं हर्षवर्धन सिंह चौहान, जो पूर्व में सांसद और मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष नंदकुमार चौहान के बेटे हैं। कोरोनाकाल मे पिता के देहांत के बाद से ही हर्षवर्धन क्षेत्र मे ऐक्टिव थे। अर्चना चिटनीस की हार के बाद वे सोचकर बैठे थे कि टिकट उन्हें ही मिलेगा। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। टिकट न मिलने से नाराज हर्षवर्धन के सब्र का बांध टूट गया, उन्होंने निर्दलीय लड़ने का फैसला किया। उनका दावा मजबूत इसलिए माना जा रहा है क्योंकि उनके साथ कई कार्यकर्ताओं का समर्थन है। हर्षवर्धन युवा हैं, नन्द कुमार चौहान के बेटे हैं, इसलिए अगर जीते नहीं फिर भी अर्चना चिटनीस के वोट काटने का काम तो करेंगे ही।
वहीं कांग्रेस ने पिछली बार निर्दलीय चुनाव लड़कर जीते सुरेंद्र सिंह शेरा को टिकट दिया है। शेरा जमीनी नेता हैं, पूर्व में विधायक रह चुके हैं,जिसका फायदा उन्हें मिलेगा। जैसे हर्षवर्धन की नाराज़गी भाजपा से थी, वैसे ही नाराज़गी यहाँ भी है। नाराज़गी है मुस्लिम आबादी की, उनका कहना है कि अगर क्षेत्र मुस्लिम बहुल है, तो उम्मीदवार मुस्लिम क्यों नहीं? इसी के चलते बुरहानपुर के 23 मुस्लिम पार्षदों ने अपनी कौम को प्राथमिकता देते हुए कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया था।
इस असंतुष्टि से फायदा AIMIM के प्रत्याशी को हो सकता है। क्योंकि, देशभर में यही पैटर्न देखने को मिलता हे कि मुस्लिम समाज के वोट भाजपा को नहीं मिलते। कांग्रेस ने सुरेंद्र सिंह शेर को उतारा है, इसलिए कांग्रेस के वोट भी बंट जाएंगे। बुरहानपुर के मुस्लिम वोटर सामाजिक सुरक्षा का हवाला देकर AIMIM के प्रत्याशी को भी वोट दे सकते हैं।
कुल मिलकर अर्चना चिटनीस को 30%, हर्षवर्धन को 40%, शेरा को 20% और AIMIM के प्रत्याशी को 10% वोट मिलने की आशंका व्यक्त की जा सकती है। लेकिन, नतीजा जो भी, बेहद करीबी होगा।