देश मे दीपावली का उत्सव चल रहा है, बाजार रोशन है, अयोध्या मे भी भव्य दीपोत्सव मनाया गया है, लेकिन इंदौर ओर उज्जैन के पास स्थित गौतमपुरा (Goutampura) गाँव मे अलग ही तरह से दीपावली मनाई जाती है। यहाँ दीपावली के अगले दिन युद्ध होता है, इस युद्ध मे कई लोग घायल भी होते है, लेकिन शौर्य का ये युद्ध वर्षों से चल रहा है।
उज्जैन ओर इंदौर (Ujjain) के निकट एक ग्राम है गौतमपुरा। यहाँ की एक बेहद रोचक लोक परंपरा है। इसे हिंगोट hingot युद्ध कहा जाता है। इसका नाम सुनकर लोग चौंक जाते हैं कि आखिर यह कैसा युद्ध है और किनके बीच होता है। बता दें कि यह युद्ध दो गांवों के बीच होता है, और प्रत्येक वर्ष दीपावली (Deepawali) के अगले दिन यानि धोकपड़वा के दिन आयोजित किया जाता है। इसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। यह युद्ध मालवा (Malwa) की अद्भुत परंपरा का उदाहरण है।
आइए जानते हैं गौतमपुरा के हिंगोट युद्ध के बारे में पूरी जानकारी
सैंकड़ों साल पुरानी है परंपरा, युद्ध में चलते हैं अग्निबाण
स्थानीय लोग बताते हैं कि हिंगोट युद्ध की परंपरा सैंकड़ों साल पुरानी है। पुरखों के समय से यह परंपरा चल रही है। यहाँ गौतमपुरा gautampura और रुणजी गांवों के योद्धा एकत्रित होते हैं और हिंगोट नाम के एक विशेष प्रकार के जंगली फल को हथियार बनाकर एक-दूसरे पर फेंकते हैं। हिंगोट एक गोल आकार का जंगली फल होता है जिसे जंगल से लाया जाता है। नवरात्रि से ही इसे हथियार के रूप में तैयार करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। हिंगोट में बारूद gunpowder भरकर एक बत्ती लगाई जाती है, जिसके बाद इसमें आग लगाने के बाद यह अग्निबाण की तरह तेज गति से जाता है।
बता दें कि गौतमपुरा और रुणजी गांवों के योद्धा ‘तुर्रा’ और ‘कलंगी’ नाम के दो दलों में बंटकर एक मैदान में एकत्रित होते हैं और युद्ध के आरंभ होते ही एक-दूसरे पर हिंगोट फेंकते हैं। यह युद्ध बहुत रोमांचक होता है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते है।
धोक-पड़वा के दिन होता है आयोजन
धोक-पड़वा के दिन होता है आयोजन
प्रत्येक वर्ष यह परंपरा का निर्वहन दीपावली के अगले दिन धोकपड़वा के दिन किया जाता है। दीपावली के अगले दिन सभी लोग अपने स्वजनों का आशीर्वाद लेने जाते हैं, और उनके पैर छूते यानि धोक देते हैं। इसीलिए इस तिथि को धोक-पड़वा कहा जाता है। इस लोक परंपरा के बारे में स्थानीय मानते हैं कि यह शौर्य, साहस, पराक्रम के साथ-साथ बंधुत्व और प्रेम की भी परंपरा है। जहां लोग इसमें हिंगोट के अग्निबाणों में अपने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन करते हैं तो वहीं इसके बाद युद्धकाल के सभी बैरों को भूलकर पुनः गले मिलकर खुशियां बांटते हैं। बता दें कि यह हिंगोट युद्ध शाम 5 से 7:30 बजे तक आयोजित किया जाता है।
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