हाल ही में प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने छिंदवाडा और पांडुर्ना जिले की कार्यकारिणी भंग कर दी है. यह दोनों ही जिले कमलनाथ का गढ़ कहलाते हैं. यह वह जिले हैं जहाँ ऐसा कहा जाता है कि कमलनाथ से बिना पूछे यहाँ पत्ता भी नहीं हिलता. यहीं से कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ लोकसभा जीतकर संसद तक गए थे. लेकिन इस कार्यकारिणी के भंग होने से सियासती गलियारे में कानाफूसी होने लगी है और बोला जा रहा है कि कहीं नए प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी कमलनाथ का प्रभाव कम तो नहीं कर रहे हैं.
विधानसभा चुनावों के पहले स्पष्ट देखा जा सकता था कि प्रदेश की कांग्रेस दो वर्चास्वों की लड़ाई में पीस रही थी. एक धड़ा कमलनाथ का था तो दूसरा दिग्विजय सिंह का. दोनों अपना दबदबा जताना कितना चाहते थे वह तो इसी से पता चल जाता है जब इन्होने एक-दूसरे के कपडे फाड़ने की बात तक कर दी थी. शायद इसी बिखरे हुए नेतृत्व के कारण विधानसभा में कांग्रेस को हार का मुंह चखना पड़ा था. मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद कांग्रेस में दायित्वों का परिवर्तन हुआ था. जिसके कारण नए प्रदेश अध्यक्ष के रूप में जीतू पटवारी सामने आए.
पटवारी के आने के बाद मानों कांग्रेस में जान आ गई है. वे लीग से हटकर काम कर रहे हैं. लेकिन उनके पास अभी भी टीम और अपने विश्वसनीय लोगों की कमी है. दरअसल लोकसभा चुनावों में जहाँ कांग्रेस ने देश भर में 99 सीटें जीती थी तो मध्यप्रदेश में सभी 29 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद से ही नए प्रदेश अध्यक्ष ने मार्गदर्शन में पार्टी के अंदरूनी परिवर्तन की मांग उठ रही थी. पटवारी इसी कारण से अब अपने विश्वसनीय लोगों को पार्टी के दायित्वों पर बिठाने का काम कर रहें हैं तो वहीँ उन सभी लोगों की छटनी की जा रही है पार्टी से ज्यादा किसी और के साये से लगाव रखते थे. छिंदवाडा और नए बने जिले पांडुर्ना की कार्यकारिणी भंग करना इसी के तहत समझा जा रहा है.
पिछले दिनों ही प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड्गे से मिले थे. उस के बाद से पटवारी लगातार प्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ जिलों में जा जाकर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. वहीँ दूसरी ओर पार्टी में गुट और गिरोहों को समाप्त करने के लिए छटनी भी की जा रही है. इन सभी बातों से सिद्ध होता है कि जीतू पटवारी अपनी टीम को खड़ा करने जैसे काम तो कर ही रहे हैं, साथ ही वह शक्ति प्रदर्शन के माध्यम से अपने शीर्ष नेतृत्व को यह भी बताने का प्रयास करना चाह रहे हैं कि वह दिग्विजय सिंह और कमलनाथ जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं से अधिक वफ़ादार, कर्मठ और समर्पित हैं.