हाल ही में मध्यप्रदेश में एक नवाचार देखने को मिला था. यह नवाचार सोशल मीडिया से आरम्भ हुआ लेकिन धीरे-धीरे एक सामाजिक परिवर्तन में ऐसा बदला कि स्वयं मुख्यमंत्री मोहन यादव भी इससे अछूते ना रह पाए. यह नवाचार था एक शब्द “शाही” के स्थान पर “राजसी” शब्द का उपयोग करना. उल्लेखनीय है कि उज्जैन के महाकालेश्वर भगवान् की भाद्रपद मास के दूसरे सोमवार को सवारी निकालनी थी. लेकिन इस सवारी के लगभग 4-5 दिन पहले सोशल मीडिया पर एक बात प्रचलन में आ गई कि “शाही सवारी को राजसी सवारी” कहा जाए. इसके बाद यह ट्रेंड करने लगी और सवारी के दिन तक प्रदेश भर में इस तरह फ़ैल गई कि स्वयं प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इसे “राजसी सवारी” कहकर संबोधित किया.
उल्लेखनीय है कि लोगों का मानना था कि ‘शाही’ शब्द हिन्दू संस्कृति का अंग नहीं है तथा यह शब्द मुग़ल आक्रान्ताओं एवं अन्य इस्लामिक लूटेरों के लिए उपयोग किया जाता था. इसलिए इसका हमारे त्योहारों में प्रयोग करना अनुचित एवं अधार्मिक है. इसलिए इसके स्थान पर इसका संस्कृत शब्द ‘राजसी’ का प्रयोग करना चाहिए.
अब इसी विचार को संत समाज भी आगे बढ़ा रहा है. संत समाज ने मांग की है कि सिंहस्थ में होने वाले स्नान को ‘शाही स्नान’ ना कहते हुए ‘राजसी स्नान’ ही कहा जाए. इस प्रकरण में अखाडा परिषद् के अध्यक्ष रविन्द्र पुरी महाराज ने जो बयान दिया है, उससे स्पष्ट होता है कि संत समाज इस शब्द को परिवर्तित करेगा और आने वाले कुम्भ में इसे “राजसी स्नान” या अन्य नाम से संबोधित करने की शुरुआत की जाएगी.
रविन्द्र पुरी महाराज का कहना है कि “शाही, उर्दू का शब्द है. शाही और राजसी में कोई अंतर नहीं है. इसे हिंदी में राजसी किया जाएगा. 13 अखाड़ों के प्रतिनिधियों से बातचीत कर राजसी या दूसरे नाम पर विचार किया जाएगा. आने वाले कुम्भ मेले से इसकी शुरुआत कर सकते हैं.