मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में अब तक किसी पार्टी को बहुमत मिलता दिखाई नहीं दे रहा है। पार्टियां तो बड़े आत्मविश्वास के साथ अपनी जीत की पुष्टि कर रही हैं। लेकिन, हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। पूरे प्रदेश में जमकर प्रचार में जुटी दोनों बड़ी पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस बागियों से परेशान है। हाल ये हैं कि जिन सीटों पर बीजेपी ने मंत्रियों को उतारा है, वहां भी जीत के आसार कम ही लग रहे हैं। ऐसा ही खेल इंदौर संभाग की महू विधानसभा सीट में चल रहा है। जहाँ भाजपा से कैबिनेट मंत्री उषा ठाकुर फिर से मैदान में है। विरोधी प्रत्याशी भी वही है, जो पिछले चुनाव में थे, लेकिन कांग्रेस से नहीं बल्कि निर्दलीय। महू की सियासत में ऐसे ही कई और मोड़ हैं, जिन्हें डिकोड करने की कोशिश हम आज इस ख़ास रिपोर्ट में करने वाले हैं।
महू विधानसभा सीट के सियासी समीकरण एक बड़े बदलाव की ओर इशारा कर रहे हैं। इस सीट पर पिछले 5 वर्षों से बीजेपी की उषा ठाकुर विधायक हैं, जो पिछले चुनावों में मात्र 7200 वोटों से जीती थीं। दीदी शिवराज सरकार में मंत्री भी हैं। लेकिन, सभी कैबिनेट मंत्रियों से जनता की यह शिकायत रहती है कि वे चुनाव जीतने के बाद मुँह भी नहीं दिखाते। यहाँ भी कुछ ऐसा ही है। विधायक जी कहती हैं कि महू में 2000 करोड़ से ज्यादा का काम हुआ, लेकिन काम क्या हुआ? ये न जनता को पता है न ही भाजपा कार्यकर्ताओं को। यही वजह है कि उषा ठाकुर को प्रचार के दौरान भयंकर विरोध का सामना करना पड़ रहा है। उषा ठाकुर के बाहरी होने का दावा इस बार भी उतना ही मजबूत है, जितना पिछले चुनावों में था। कार्यकर्ताओं का कहना है कि पहले कैलाश विजयवर्गीय फिर उषा ठाकुर, ऐसे में स्थानीय कार्यकर्ताओं का क्या होगा जो बरसों से महू की राजनीत में सक्रीय भूमिका निभा रहे हैं।
इस सीट से टिकट के लिए भाजपा जिलाध्यक्ष मनोज ठाकुर और शिवराज के करीबी और युवा आयोग के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. निशांत खरे का नाम भी चला था। लेकिन, अनुभवी होने के कारण टिकट उषा ठाकुर को मिला, जिनका रिकॉर्ड है कि वे एक सीट से दो बार नहीं जीतती। संस्कृति मंत्री बनने के बाद उषा ठाकुर नाट्य मंच और कवि सम्मलेन जैसे कई कार्यक्रम इंदौर से महू तो लेकर आ गईं, लेकिन इससे महू की जनता को कोई फर्क नहीं पड़ा। कवियों ने भी यही कहा कि ये आयोजन तो इंदौर में ही होना चाहिए। इसके अलावा कहने को उषा ठाकुर ने क्षेत्र में महाराणा प्रताप शौर्य स्थल, ऑक्सीजन पावर प्लांट, सड़क निर्माण और सिंचाई परियोजना जैसे कार्य करवाए हैं, लेकिन जनता फिर भी असंतुष्ट ही नजर आ रही है। कई कार्यों को स्वीकृति दिलवाई, भूमिपूजन किया, पर काम नहीं हुआ।
कांग्रेस से इस बार राम किशोर शुक्ला को टिकट दिया है, जो महू के बड़े नेता हैं। पार्टियां बदलते रहते हैं। पहले कांग्रेस में थे, 2 दशक पूर्व भाजपा में शामिल हुए। तब से अब तक महू में बीजेपी की जीत के सूत्रधार बने हुए थे। पार्टी को निर्णायक वोट इन्हीं के इलाके से मिलते रहे हैं। इस बार भी वे बीजेपी से टिकट मिलने की उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन पार्टी ने दीदी को ही प्राथमिकता दी। राम किशोर शुक्ला यूं तो ज़मीनी स्तर पर कार्य करने वाले नेता हैं, लेकिन एक और उम्मीदवार है, जो उनका खेल बिगाड़ सकता है।
हम बात कर रहे हैं महू के पूर्व विधायक एवं निर्दलीय उम्मीदवार अंतर सिंह दरबार की, जो पिछले तीन बार से चुनाव हार रहे हैं। इस कारण कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया। कांग्रेस ने महीने भर पूर्व कांग्रेस में शामिल हुए शुक्ला को उम्मीदवार बनाया, जिसके चलते दरबार ने कांग्रेस का दामन छोड़ निर्दलीय लड़ने का फैसला किया। 25 वर्षों से महू की राजनीति में सक्रीय होने की वजह से दरबार की महू में अच्छी पकड़ है। उनके विश्वसनीय कार्यकर्ता ही उनका सामर्थ्य हैं, दरबार स्थानीय भी हैं। पिछले 3 चुनाव हार चुके हैं, लेकिन ज़मीनी पकड़ बरकरार है। इसलिए कांग्रेस के वोट काटने का काम तो बखूबी करेंगे।
महू भगवान परशुराम के साथ-साथ बाबा साहेब आंबेडकर की भी जन्मस्थली है। इसलिए यहाँ एससी-एसटी वोटरों की भी ख़ासी आबादी है, जिस वजह से जयस भी मैदान में है। लेकिन, केवल नाम के लिए। इसी क्रम में आम आदमी पार्टी के सुनील चौधरी भी चुनाव लड़ रहे हैं, जिनके लिए कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटाना मुश्किल हो रहा है।
अब बात ये निकलकर आती है कि अंतर सिंह दरबार निर्दलीय खड़े होकर कांग्रेस के राम किशोर शुक्ला के वोट काट सकते हैं, जिससे बीजेपी को बढ़त मिलने के पूरे-पूरे आसार हैं। लेकिन, उषा दीदी के वोट काटने के लिए उनका पिछले 5 वर्षों का कार्यकाल ही काफी है। फिर भी, उषा दीदी की कुंडली में राज योग तो है ही, कि वे अपने क्षेत्र का विकास किए बिना भी दबंग राष्ट्रवादी नेत्री होने की छवि के चलते टिकट पा ही लेती हैं। इसलिए, महू के रुझानों पर कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी। बस ये बात पक्की है कि जो होगा, करीबी होगा।