मध्यप्रदेश में चुनावी बिगुल फूँका जा चुका है। सभी पार्टियां अपने वोटरों को लुभाने के लिए भरसक प्रयास करने में जुटी हुई हैं। विकास के मुद्दे से इतर अपनी विचारधारा के मद्देनज़र पार्टियां अपना-अपना वोट बैंक भी साधने का कार्य कर रही हैं। ऐसे में मध्यप्रदेश की कुल आबादी में 9% हिस्सेदारी रखने वाले मुस्लिम समाज के वोटरों को लुभाना भी पार्टियों के लिए ही आवश्यक है, जितना अन्य समाजों-समुदायों को।
सीटों के गणित की बात की जाए तो प्रदेश की 49 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी 10 प्रतिशत से ज्यादा है। जबकि 21 सीटें ऐसी हैं. जहाँ मुस्लिम वोटर ही तय करते हैं कि किसकी सरकार बनेगी। खंडवा, जावरा, शाजापुर, मंदसौर, देपालपुर, भोपाल उत्तर, जबलपुर उत्तर, इंदौर विधानसभा क्र. 1 और 3. ये कुछ इलाके हैं, जहाँ जीत में मुस्लिम वोटरों की भूमिका सर्वाधिक है।
2018 विधानसभा चुनावों में इन 49 सीटों में से 30 भाजपा, 18 कांग्रेस और एक सीट निर्दलीय प्रत्याशी के खेमे में आई थी। इस बार कांग्रेस ने केवल दो मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट दिया है, जबकि भाजपा ने एक को भी नहीं। मुस्लिम समाज द्वारा इस बात को लेकर जगह-जगह विरोध-प्रदर्शन किया गया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 23% मुस्लिम आबादी वाला क्षेत्र बुरहानपुर हो सकता है, जहाँ कांग्रेस से मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट न मिलने की वजह से 23 पार्षदों ने रातों-रात कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया। उनका कहना था कि अगर बुराहनपुर मुस्लिम बहुल इलाका है, तो उम्मीदवार मुस्लिम क्यों नहीं?
बता दें कि बुरहानपुर से इस बार कांग्रेस ने सुरेंद्र सिंह शेरा पर भरोसा जताया है। क्योकि, पिछली बार सुरेंद्र सिंह शेरा निर्दलीय चुनाव लड़कर जीते थे। इस वजह से कांग्रेस को उनसे बेहतर कोई चेहरा नहीं मिल पाया। वहीं भाजपा द्वारा मुस्लिम कैंडिडेट न उतारे जाने की सबसे कारण हिंदुत्व को बढ़ावा दिया जाना बताया जा रहा है। भाजपा ये समझ गई है कि हिंदुओं को साधना अत्यंत आवश्यक है। केवल भाजपा ही नहीं, बल्कि कांग्रेस ने भी इसी बात को आत्मसात करते हुए ही अपने प्रत्याशियों की लिस्ट तैयार की है। इस बात का अंदाजा ये देखकर लगाया जा सकता है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के सोशल मीडिया हैंडल्स से अभी तक उनके द्वारा छिंदवाड़ा में आयोजित की गई, पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्री की रामकथा के वीडियोस चलाए जा रहे हैं। इंदौर-1 से वर्तमान विधायक और कांग्रेस प्रत्याशी संजय शुक्ला भी प्रतिवर्ष अपने खर्च पर क्षेत्र के वृद्धजनों को तीर्थयात्रा पर भेजते हैं। राहुल गाँधी से लेकर प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे जब मध्यप्रदेश किसी राजनैतिक दौरे के लिए आते हैं, तो किसी न किसी मंदिर अवश्य जाते हैं। इसके अलावा कमलनाथ ने 2018 चुनावों के पूरे प्रदेश के गाँव-गाँव में गौशाला बनाने का वादा भी किया था, जिससे हिंदू वोटरों का साथ मिल सके।
कांग्रेस ने दोनों मुस्लिम कैंडिडेट भोपाल से ही उतारे हैं, जिनमें भोपाल मध्य से आरिफ मसूद और भोपाल उत्तर से आतिफ अकील को टिकट दिया गया है। आरिफ मसूद प्रदेशभर के मुस्लिम समुदाय के सबसे चर्चित नेता हैं। वे जब भी कोई ट्वीट करते हैं, तो कांग्रेस राष्ट्रीय अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष इमरान प्रतापगढ़ी उसे रीट्वीट जरूर करते हैं। दूसरा नाम आतिफ अकील का है, जिन्हें पिता आरिफ अकील की जगह टिकट दिया गया है।
देखा जाए तो भाजपा और कांग्रेस दोनों ने टिकटों के बंटवारे के दौरान मुस्लिम समाज पर ध्यान नहीं दिया। फ़र्क़ सिर्फ इतना है कि भाजपा की नीति सपष्ट है और कांग्रेस मुस्लिम समाज की हमदर्द होने का महज़ दिखावा करती है। इसी मौके का फायदा उठाकर मध्यप्रदेश में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने भी इस बार अपने प्रत्याशियों को चुनाव में उतारा है। बुरहानपुर से अमान मोहम्मद गोटेवाला और जबलपुर पूर्व से गजेंद्र गज्जू सोनकर AIMIM की टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। गजेंद्र सोनकर का हिंदू होकर AIMIM से चुनाव लड़ने का कारण कांग्रेस द्वारा उन्हें टिकट न दिया जाना बताया जा रहा है।
बीजेपी की हिंदुत्व वाली छवि के चलते मुस्लिम समाज का रुख कांग्रेस की ओर हो सकता है। इसके विपरीत मुस्लिम समाज कुछ समुदाय ऐसे हैं, जिन्हें आयुष्मान भारत और लाड़ली बहना योजना का लाभ मिला है, जिसके कारण उनका समर्थन बीजेपी को भी मिल सकता है।
इस पूरे मुद्दे से हटकर अगर वोट बैंक की बात की जाए तो पोलिटिकल पार्टियां और मीडिया हिंदुओं का तो जातिगत विभाजन जाट, खाती, ब्राह्मण, बनिया, अनुसूचित वर्ग आदि के आधार पर करते हैं। लेकिन, मुस्लिम समाज को केवल मुस्लिम समाज ही कहा जाता है। जबकि मुस्लिम समाज में भी शिया, सुन्नी, अहमदिया, सूफ़ी जैसे कई समुदाय हैं, जिनका चुनावी मत भिन्न हो सकता है।
अब ये देखना दिलचस्प होगा कि मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में मुस्लिम समाज किस पार्टी का दामन थामता है? इसके अलावा बड़े दलों द्वारा मुस्लिम नेताओं को टिकट न मिलने से मुस्लिम समाज AIMIM या किसी अन्य दल का समर्थन भी कर सकता है।