Dhodhar, Ratlam। उज्जैन से ढोढर आए नौ युवकों का ढोढर में स्थानीय दुकान संचालक से विवाद और मारपीट के बाद एक युवक के लापता होने के मामले में एसपी अमित कुमार ने ढोढर चौकी कन्हैया अवश्या को निलंबित कर दिया है।
दरअसल उज्जैन निवासी सोमिक, रोहित, लोकेश (गुमशुदा), आनन्द, लखन, गोलु, गड्डु, कार्तिक, सौरभ 1 नवंबर की रात करीब 08.00 बजे परवलिया बांछडा डेरा चौकी ढोढर पहुंचे थे।
ढोढर मे ही किराना दुकान संचालक यश चौहान से सिगरेट खरीदने के दौरान सिगरेट महंगी देने की बात को लेकर लोकेश (गुमशुदा) तथा सोमिक के साथ दुकान संचालक से गाली गलौज झूमा झटकी हुई थी।
- सोमिक ने दुकान संचालक यश को चाकू दिखाकर डराया था और वहां से दोनों निकलकर अपने अन्य साथियों के साथ ठाकुर ढाबा परवलिया में खाना खाने चले गए थे।
- जहां कुछ देर बाद लगभग रात 09.00 बजे दुकान संचालक यश चौहान अपने साथियों के साथ तीन-चार बाइक पर आए और मारपीट करने लगे।
- उज्जैन से आए सभी लड़के जान बचाने के लिए फोरलेन पर परवलिया से ढोढर की तरफ भागने लगे। इस दौरान लोकेश कहीं गुम हो गया और शेष सभी साथी लोकेश को 3-4 घंटे तलाशने के बाद घर वापस चले गए।
- 3 नवंबर को लोकेश के भाई फरियादी रोहित ने पुलिस चौकी पर आकर घटना की जानकारी दी। इस पर गुमशुदगी दर्ज की गई।फरियादी पक्ष के साथ मारपीट होने संबंधी साक्ष्य प्राप्त होने पर एसपी ने प्रकरण दर्ज करने और एसपी राजेश खाखा के निर्देशन में एसआईटी गठित की। प्रथम दृष्टया मामले में चौकी प्रभारी को लापरवाही बरतने पर निलम्बित किया जाकर पुलिस लाईन अटैच किया गया।यह भी पढे —
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Narmadapuram के बाबई गाँव में जन्मे Makhanlal Chaturvedi की कहानी, जिनका लेखन के साथ पत्रकारिता में भी बड़ा योगदान
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Narmadapuram के बाबई गाँव में जन्मे Makhanlal Chaturvedi की कहानी, जिनका लेखन के साथ पत्रकारिता में भी बड़ा योगदान
हिंदी साहित्य की जाने माने नाम माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल, 1889 को मध्य प्रदेश के बाबई गांव में हुआ था। उनका जीवन साहित्य के प्रति समर्पण और स्वतंत्रता संग्राम की गाथा है। वित्तीय बाधाओं का सामना करने के बावजूद, उन्होंने अपनी शिक्षा उत्साह के साथ जारी रखी और अंततः संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में पारंगत हो गए।
चतुर्वेदी की साहित्यिक यात्रा कविता से शुरू हुई, जहाँ उनकी कविताएँ राष्ट्रवाद और सामाजिक सुधार के लोकाचार को प्रतिध्वनित करती थीं। उन्होंने “पुष्प की अभिलाषा” और “होली” जैसी प्रतिष्ठित कविताएँ लिखीं जो पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती हैं। उनकी काव्यात्मक क्षमता उनकी पत्रकारिता कौशल से मेल खाती थी, क्योंकि उन्होंने कई समाचार पत्रों और पत्रिकाओं का संपादन किया और उन्हें सामाजिक परिवर्तन और राजनीतिक स्वतंत्रता की वकालत करने के लिए मंच के रूप में उपयोग किया।
हिंदी पत्रकारिता के समर्थक, चतुर्वेदी ने 1919 में प्रसिद्ध हिंदी समाचार पत्र “माधुरी” की स्थापना की। वह जनता की राय को आकार देने और सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करने के लिए प्रेस की शक्ति में दृढ़ता से विश्वास करते थे। उनके संपादकीय साहस और सत्य के प्रति प्रतिबद्धता ने उन्हें सम्मान और प्रशंसा दिलाई।
अपने साहित्यिक और पत्रकारीय योगदान से परे, चतुर्वेदी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में गहराई से शामिल थे। उन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और अपनी राष्ट्रवादी गतिविधियों के लिए कारावास का सामना किया। उनकी देशभक्ति और साहित्यिक उत्कृष्टता को 1955 में मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।