मंगलवार को प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ ने दिल्ली में राहुल गाँधी से चर्चा की. इस आधे घंटे की मुलाक़ात में बताया जा रहा है कि मध्यप्रदेश की राजनीति पर तो चर्चा हुई ही सही, लेकिन राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इस मुलाक़ात का मतलब कमलनाथ का मध्यप्रदेश की राजनीति से दूर होना है. विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गाँधी कमलनाथ को मध्यप्रदेश की राजनीति से हटाकर केंद्र की राजनीति में लेकर जाना चाहते हैं और उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव का पद देना चाहते हैं. बता दें कि अभी कांग्रेस पार्टी में महासचिवों की नियुक्ति होने वाली है और चूँकि कमलनाथ बरसों से नेहरु-गाँधी खानदान के विश्वसनीय रहे हैं तो राहुल गाँधी उन्हें महासचिव बनाकर करीब रखने के प्रयास कर रहे हैं.
लेकिन इस घटना के पीछे जो अन्य कारण समझा जा रहा है, वह है कमलनाथ और जीतू पटवारी की आतंरिक कलह और कमलनाथ परिवार की अस्तित्व की लड़ाई. ऐसा माना जा रहा है कि जबसे जीतू पटवारी को मध्यप्रदेश कांग्रेस कमिटी का अध्यक्ष बनाया गया है, कमलनाथ से उनके रिश्ते मुंह पर कुछ और पीठ पीछे कुछ चलने वाले रहे हैं. ऐसा समझा जा रहा है कि पटवारी प्रदेश में नयी टीम खड़ी करना चाहते हैं लेकिन पहले से ही अनेक पदों पर पहले से बैठे कमलनाथ के विश्वसनीय पदाधिकारी उनके काम में अडंगा लगा रहे हैं. जिसके कारण कमलनाथ के इस अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप से पटवारी नाखुश हैं. पटवारी भी पार्टी के दायित्वों पर अपनी टीम बैठाने के प्रयास कर रहे हैं जिसके लिए वह कमलनाथ के प्रति अधिक झुकाव रखने वाले लोगों को हटा रहे हैं. अभी पिछले ही दिनों कमलनाथ के गढ़ छिंदवाडा और पांडुर्ना की कार्यकारिणी को भंग कर के इसके संकेत भी दे दिए थे.
वहीँ इस लोकसभा चुनावों में कमलनाथ के परिवार की राजनीति का अस्तित्व भी संकट में पड़ गया जब छिंदवाडा सीट से कमलनाथ के वारिस नकुलनाथ को हार का सामना करना पड़ा. यह हार कमलनाथ परिवार की राजनीति की हार थी क्योंकि मध्यप्रदेश विधानसभा में मिली हार के बाद जहाँ कमलनाथ की अगली बार मुख्यमंत्री बनने की उम्मीदें पूरी तरह से समाप्त हो गई थी तो वहीँ इस लोकसभा चुनाव में उनके वारिस की हार ने यह संकेत दे दिया था कि अब वह प्रदेश की राजनीति से दूर हो चुके हैं.
इन सभी घटनाओं से राहुल गांधी भी परिचित थे क्योंकि लगातार जीतू पटवारी दिल्ली में कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से मुलाकात कर रहे थे. इस समस्या का समाधान करने के लिए राहुल गांधी ने एक प्रकार का सेटेलमेंट किया है जिससे कमलनाथ को महासचिव बनाकर वह एक विश्वसनीय को अपने पास तो रखेंगे ही, साथ ही कमलनाथ के प्रदेश की राजनीति ने दूर होने के बाद जीतू पटवारी को भी फ्रीहैण्ड मिल जाएगा जिसकी वह काफी समय से इच्छा कर रहे थे. कुल मिलाकर इतना तय है कि कमलनाथ की प्रदेश की राजनीति से बिदाई लगभग संभव मानी जा रही है